एक हजार वर्ष पूर्व तक हिन्दू राज्य था अफगानिस्तान

एक हजार वर्ष पूर्व तक हिन्दू राज्य था अफगानिस्तान

एक हजार वर्ष पूर्व तक हिन्दू राज्य था अफगानिस्तान

अफगानिस्तान पर फिर से कट्टरपंथी मुस्लिम आतंकी गुट तालिबान का अधिकार हो गया है। लम्बे समय से वहां हिंसा का तांडव चल रहा है।

आज का मुस्लिम अफगानिस्तान कोई एक हजार वर्ष पूर्व तक हिन्दू राजाओं द्वारा शासित एक हिन्दू बहुल राज्य था। इसके बाद यद्यपि वह क्षेत्र पूर्ण मतांतरण (धर्मांतरण) के कारण मुस्लिम राज्य बन गया था, तो भी 1807 में महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानिस्तान के कसूर पर अफगान शासक कुतुबुद्दीन को हराकर कब्जा कर लिया था। 1818 में मुलतान भी महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। 1837 के जमरूद के युद्ध में वीर हरिसिंह नलवा बलिदान हो गए। तब फिर कबीलाई संस्कृति के शासकों का अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया।

यह क्षेत्र 1880 में अंग्रेजों द्वारा संरक्षित क्षेत्र बना।अफगानिस्तान 1919 तक अखण्ड भारत का हिस्सा था। 19 अगस्त, 1919 को ब्रिटिश शासन ने अफगानिस्तान को भारत से अलग करते हुए पूर्ण आजादी दे दी।

सांस्कृतिक दृष्टि से प्राचीन काल से ही अफगानिस्तान भारतवर्ष का एक भाग रहा है। तब भारतवर्ष में 18 महा जनपद हुआ करते थे। आज का अफगानिस्तान एक महा जनपद था। उस समय इस क्षेत्र का नाम अफगानिस्तान नहीं था। इस्लाम के आने से पूर्व यह क्षेत्र आर्याना, आर्यानुम्र, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह आदि नामों से जाना जाता था। आज भी अफगानिस्तान में कई बच्चों के नाम आर्यान, आर्य, वेद, कनिष्क आदि मिल जाएंगे। कनिष्क इसलिए कि इस राजा का राज्य भी वहां रहा है। अफगानिस्तान के कई होटलों के नाम आर्याना तथा हवाई कंपनी का नाम भी आर्याना था।

आज का कंधार पहले गांधार महा जनपद हुआ करता था। 5500 वर्ष पहले वहां राज करते थे राजा सुबाला। इन्हीं की पुत्री थी गांधारी और बेटा था शकुनी, जो सुबाला के बाद वहां का राजा बना। माना जाता है कि उस काल में भगवान शिव की पूजा वहां प्रमुख रूप से होती थी।

संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनी और गुरु गोरखनाथ भी अफगानिस्तान के बताए जाते हैं। ॠग्वेद में पख्तूनों (पठानों) का वर्णन ‘पक्त्याकय’ नाम से मिलता है।

अफगानिस्तान के क्षेत्र में 600 ई.से 780 तक जुनबिल वंश का राज्य रहा। जुनबिल हिन्दू ही थे। यद्यपि 7वीं शताब्दी से अरब-तुर्कों के आक्रमण शुरु हो गए थे। जहां-तहां उनका थोड़ा बहुत कब्जा होता तो वे मतांतरण (धर्मांतरण) करते थे। सन 843 में कल्लार राजा ने अफगान-इलाके पर हिन्दुशाही की स्थापना की। कल्लार राजा के बाद सामंतदेव, भीमपाल, अष्टपाल, जयपाल, त्रिलोचनपाल आदि उल्लेखनीय राजा हुए। इन राजाओं ने लगभग 350 वर्षों तक अरब आक्रमणकारियों व लुटेरों को जबरदस्त टक्कर दी। इन हिन्दू राजाओं को ‘काबुलशाह’ या ‘महाराज धर्मपति’ भी कहा जाता था।

सन 1019 में महमूद गजनी ने आक्रमण किया। इस युद्ध में राजा त्रिलोचनपाल परास्त हुए। इसके बाद महमूद गजनी ने वहां लूटपाट की और भारी तांडव मचाया। वहां के लोगों को इस्लाम में मतांतरित किया जाने लगा। अब वह क्षेत्र इस्लामी राज्य में बदल रहा था। उसके बाद वहां फिर से कबीलाई संस्कृति के गुटों का शासन चलता रहा। उनमें आपसी संघर्ष भी होता रहा।

ऊपर वर्णित महाभारत काल और हिन्दूशाही राज्य के बीच भी अफगान क्षेत्र में कई हिन्दू राजा हुए, तो बौद्ध राजा भी। कुषाण राजवंश के प्रतापी राजा कनिष्क जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, के काल (98 ईसा पूर्व से 44 ई.तक) में अफगान में बौद्ध धर्म का बड़ा प्रचार हुआ। कहते हैं स्वयं भगवान बुद्ध भी 6 माह अफगान क्षेत्र में जाकर रहे थे। बामियान में बुद्ध की विशालकाय विश्‍व प्रसिद्ध प्रतिमाएँ पहाड़ों को काटकर बनाई गई थीं, जिन्हें तालिबान ने अपने प्रथम काल में नष्ट कर दिया था। सूर्ख कोतल में कनिष्क के भव्य खंडहर आज भी दिख जाएंगे। पेशावर, लाहौर आदि के संग्रहालयों में बौद्ध-हिन्दूकाल की कलाकृतियाँ संग्रहित थीं। बामियान, जलालाबाद, बगराज, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियाँ, स्तूप, मंदिर, विश्‍वविद्यालय आदि के अवशेष थे। आसामाई का दो हजार वर्ष पुराना मंदिर भी। तालिबान ने इनका क्या हश्र किया और जो बच गए उनका क्या हश्र करेंगे!

भारत के इतिहासकारों, समाज चिंतकों, विद्वानों तथा नेतृत्व के साथ ही साधारण जन को भी अफगानिस्तान के इतिहास पर विचार करना होगा। समाज जीवन में क्या कमी आ गई थी कि हजारों वर्षों तक हिन्दू, बौद्ध, सिख बहुल क्षेत्र रहा अफगान क्षेत्र पूर्णतः मुस्लिम राज्य में परिवर्तित हो गया? इस चिंतन में से भविष्य के लिए अवश्य ही कुछ पाथेय निकलेगा।

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