आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवचन सम्पूर्ण विश्व के लिए शाश्वत हैं : सरसंघचालक डॉ. भागवत

आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवचन सम्पूर्ण विश्व के लिए शाश्वत हैं : सरसंघचालक डॉ. भागवत

आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवचन सम्पूर्ण विश्व के लिए शाश्वत हैं : सरसंघचालक डॉ. भागवतआचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवचन सम्पूर्ण विश्व के लिए शाश्वत हैं : डॉ. भागवत

  • दो संघ प्रमुखों के मिलन का गवाह बना रतनगढ़ का गोलछा विद्या मंदिर

चूरू, 4 जुलाई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि जैन श्वेताम्बर आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवचन व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्र के लिए ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के लिए शाश्वत हैं। तेरापंथ धर्म संघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अनुशासन की एकरूपता है।

सरसंघचालक डॉ. भागवत रविवार को चूरू जिले के रतनगढ़ स्थित गोलछा विद्या मंदिर में तेरापंथ के आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री के समक्ष ज्ञान की बातें करने की धृष्टता तो मैं नहीं कर सकता हूं। मैं तो आचार्यश्री की वाणी से ही प्रेरणा लेता हूं और उसके अंश को ही लोगों के बीच बताने का प्रयास करता हूं। मैं आप जैसे देश के अन्य संतों के सानिध्य में रिचार्ज होने के लिए पहुंचता हूं। आपसे हमें सदैव प्रेरणा मिलती रहे।

इससे पहले आचार्यश्री महाश्रमणजी जिले के छापर कस्बे में चातुर्मासिक प्रवेश के लिए निरंतर गतिमान रहते हुए अपनी श्वेत सेना के साथ रविवार को रतनगढ़ पहुंचे। इस अवसर पर रतनगढ़ का जन-जन शांतिदूत के स्वागत में उमड़ पड़ा। भव्य स्वागत रैली के साथ आचार्यश्री रतनगढ़ स्थित गोलछा ज्ञान मंदिर में पहुंचे। इसके कुछ समय पश्चात ही सरसंघचालक डॉ. भागवत भी महा तपस्वी आचार्यश्री के मंगल सानिध्य में पहुंचे। रतनगढ़ की धरा पर दो संघ प्रमुखों का मिलना  रतनगढ़वासियों के उत्साह और उल्लास को बढ़ाने वाला था। डॉ. भागवत ने पहुंचते ही आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस अवसर पर महाश्रमणजी ने कहा कि इच्छा इतनी बड़ी है कि वह आकाश की तरह अनंत हो सकती है। यदि किसी को सोने का पर्वत भी प्राप्त हो जाए तो उसे संतोष की प्राप्ति नहीं हो सकती। इच्छा, कामना और लोभ की भावना जितनी प्रबल होती है, आदमी उतना ही दु:खी बन जाता है। आदमी को अपनी कामनाओं व इच्छाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए। इच्छाएं जितनी कम होती जाएंगी, दु:ख उतना कम होता जाएगा। आदमी को कामनाओं का त्याग कर संतोष को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष को धारण करने से परम सुख की प्राप्ति हो सकती है।

आचार्यश्री के नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। रतनगढ़ तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का गान किया। स्थानीय तेरापंथी सभा की ओर से कमल बैद व प्रवास व्यवस्था समिति रतनगढ़ के अध्यक्ष जोधराज बैद ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। उपस्थित जनता को साध्वीप्रमुख विश्रुतविभाजी ने उत्प्रेरित किया।

कार्यक्रम में डॉ. सरिता शर्मा के निर्देशन में डॉ. रश्मि बैद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडेगवार पर लिखी अपनी शोध पुस्तक डॉ. भागवत व आचार्यश्री को भेंट की।

कार्यक्रम के बाद आचार्यश्री व डॉ. भागवत के मध्य वार्तालाप का भी क्रम रहा। आचार्यश्री से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने के बाद भागवत अपने गंतव्य को रवाना हुए।

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