आज गुस्से में क्यों है हिन्दू?

आज गुस्से में क्यों है हिन्दू?

रामस्वरूप अग्रवाल

आज गुस्से में क्यों है हिन्दू?आज गुस्से में क्यों है हिन्दू?

इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया पर आ रही रिपोर्ट्स बता रही हैं कि जगह-जगह हिन्दू हजारों की संख्या में सड़क पर उतर रहा है। उसका गुस्सा साफ झलक रहा है। वह जेहादी मानसिकता के विरुद्ध अपनी नाराजगी प्रकट कर रहा है। राजस्थान में कई दिनों तक ‘नेट-बंदी’ के बावजूद प्रदेश के लगभग सभी शहरों में बाजार बंद रहे। गलियों के छोटे दुकानदार तक इसमें शामिल रहे। सभी जगह तिरंगा यात्रा या शांति मार्च के रूप में हजारों लोगों के जुलूस भी निकले।

शायद पिछले 75 वर्षों की कुंठा आज प्रकट हो रही है। अखण्ड भारतवर्ष की स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने और बलिदान देने के बाद 1947 में जो कटा हुआ भारत मिला था, उसमें भी उसे ‘स्वतंत्रता’ का अहसास नहीं हुआ है। अपने मान बिंदुओं, राम-कृष्ण-शिव के प्रमुख स्थानों को गुलामी से पहले का भव्य स्वरूप देने के लिए उसे फिर से संघर्षरत होना पड़ रहा है। वह अपने द्वारा स्थापित और सरकार द्वारा पोषित स्कूल-कॉलेजों में अपनी सभ्यता-संस्कृति के आधार ग्रंथों- गीता, महाभारत, रामायण, वेद-उपनिषदों की शिक्षा नहीं दे सकता, परन्तु मुसलमान व ईसाई अपने स्कूल-कॉलेजों में कुरान-बाइबिल पढ़ा सकते हैं। हिन्दू को लगता है कि यह कैसी स्वतंत्रता है? उसके साथ यह दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों? वह अपने आराध्यों- राम-कृष्ण के जन्मदिवसों पर शोभायात्रा निकालता है तो उस पर पत्थर फेंके जाते हैं। “शोभायात्रा मस्जिद के सामने से नहीं निकलेगी, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से नहीं निकलेगी।”- प्रशासन उस पर ऐसे नियम लगा देता है तो उसे लगता है कि लगभग आधा हिन्दुस्तान देने के बाद भी बचे-खुचे हिन्दुस्तान के हर रास्ते से उसके आराध्य की शोभायात्रा नहीं निकल सकती। उसके आराध्यों को गाली देने पर कोई रोक नहीं है। ठीक है, वह सहिष्णु है, परंतु उसके आराध्यों का कोई मजाक तो ना उड़ाए। उसके आराध्य ‘राम’ के अस्तित्व तक को सरकार के स्तर पर न्यायालय में नकारा गया। क्या इससे उसके मन में पीड़ा नहीं हुई होगी? वह दबी हुई कुंठित पीड़ा आज प्रकट हो रही है। उसके बच्चों को, नई पीढ़ी को राम-कृष्ण, शिवाजी, प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, लाचित बड़फूकन जैसे वीरों का इतिहास पढ़ाने के बजाए अकबर, शाहजहाँ का इतिहास, अंग्रेजों द्वारा भारत में किए गए सुधार जैसा इतिहास पढ़ाया जाने लगा। वह देख रहा था कि सत्ता में बैठे लोग ‘दीपावली-मिलन’ नहीं ‘ईद की इफ्तार’ पार्टियां दे रहे हैं। उन्हें मस्तक पर तिलक लगाने में शर्म आने लगी है। परंतु वे गोल टोपी गर्व से पहनते हैं, तो उसे कुंठा होती थी। अब वह इन कुंठाओं से मुक्त होना चाहता है।

आज हिन्दू को लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय तक उसके ही विरुद्ध खड़ा हो रहा है। देश में लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या में होने के बावजूद उसे अनुभव होता रहा है कि राजनैतिक दल भी उसके साथ नहीं हैं।

कन्हैयालाल की हत्या जैसी घटनाओं ने जैसे उसके सब्र का बांध तोड़ दिया है। गुस्सा फूट रहा है उसका। यही कारण है कि आज हिन्दू हजारों-हजारों की संख्या में सड़क पर उतर रहा है। यहां तक कि कन्हैयालाल के हत्यारों को जब न्यायालय लाया-ले जाया जा रहा था तो वकीलों का धैर्य भी टूट गया। वकीलों द्वारा उनके साथ की गई हाथापाई के वीडियो सामने आए हैं।

एक हिन्दू ही है जो सबके लिए ‘सॉफ्ट टारगेट’ बना हुआ है। कोई भी-कभी भी उसके देवी-देवताओं की हंसी उड़ा कर उसे अपनी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ बता देता है। क्योंकि वह न तो ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाता है और न ही मंदिरों से निकल कर पत्थरबाजी, लूट व आगजनी करता है। यह उसके स्वभाव में ही नहीं है।

हिन्दू को अपने अंदर झांककर देखना होगा। क्या उसे जाति से ऊपर उठकर ‘हिन्दू’ के नाते संगठित नहीं होना चाहिए? सही है कि हिन्दू शांति का पुजारी है। उसकी हर पूजा- हर मंत्र के अंत में ‘ऊँ शांति, शांति, शांति’ का ही उच्चारण होता है। परंतु शांति की स्थापना क्या शक्ति के बिना संभव है? हिन्दू क्यों भूल जाता है कि उसके सभी देवी-देवताओं के हाथों में जहां शास्त्र और फूल वगैरह हैं तो उनके हाथों में शस्त्र भी हैं। कृष्ण के सुदर्शन चक्र को वह क्या हिन्दू भूल गया है? देवी-देवताओं के हाथ में शास्त्र के साथ शस्त्र होने का एक ही निहितार्थ है कि तुम शांति चाहते हो तो तुम्हारे पास शस्त्र की शक्ति भी चाहिए, संगठन की शक्ति चाहिए। एक संगठित और शक्तिशाली हिन्दू समाज ही भारत की सभी समस्याओं का हल है। एक संगठित और शक्तिवान हिन्दू समाज ही भारत में शांति की गारंटी होगा। हिंदू समाज संगठित और शक्तिवान बने इसके लिए क्या-क्या करना होगा, वर्तमान परिस्थितियों में समाज सुरक्षित रहे इसके लिए क्या आवश्यक है, आज इस पर चर्चा होनी चाहिए। हर गांव, हर मोहल्ले में लोग इकट्ठे आकर चर्चा करें। उस चर्चा से निकले निष्कर्षों के अनुरूप अपना व्यवहार बदलें, तभी हिन्दू अपने अस्तित्व को बचा पाएगा। •

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