इंडिया नहीं भारत
चर्चा है कि संसद के विशेष सत्र में देश का नाम “रिपब्लिक ऑफ इंडिया” से बदल कर “रिपब्लिक ऑफ भारत” करने का बिल लाया जा रहा है। यदि ऐसा है तो इसमें गलत क्या है? और भी अच्छा हो यदि रिपब्लिक के स्थान पर संस्कृत-निष्ठ शब्द गणतंत्र का प्रयोग किया जाए।
इस देश का नाम महाराज भरत के नाम पर भारत पड़ा। प्राचीन काल से भारत को हम आर्यावर्त या भारतवर्ष कहते आए हैं। भारतवर्ष ही देश का मूल नाम है। इंडिया नाम “इंडस वैली” से आया जो अंग्रजों ने दिया, इसी कारण आज का विश्व भारत को इंडिया के नाम से जानता है।
हमारा इतिहास भारत के नाम से है। हमारी परंपराएं व मान्यताएं भारत के नाम से हैं। अंग्रेजों को भारत शब्द समझ नहीं आता था, उन्हें सिंधु घाटी सभ्यता समझ नहीं आती थी तो इसको उन्होंने नाम दिया इंडस वैली और अपनी सुविधा के लिए इंडस से इंडिया बनाया।
जैसे जैसे हम स्वाधीन से समर्थ भारत की और बढ़ रहे हैं, देश की युवा पीढ़ी के सामने कठोर प्रश्न आता है कि ‘इंडिया’ नाम ‘भारत’ से अधिक महत्वपूर्ण क्यों हैं?
सांस्कृतिक और साहित्यिक जगत में भारत की पहचान कभी भी ‘इंडिया’ नहीं रही। हम प्रणाम भी करते हैं तो ‘वन्दे भारत मातरम्’, जयतु भारतं, ‘भारत वन्दे’, ‘जय भारत वन्दे’ आदि ही उच्चारित करते हैं। कुछ लोगों के अनुसार इंडिया’ और ‘भारत’ कहने में क्या अंतर है। तो यह केवल अंतर की बात नहीं, अस्मिता की बात है, स्वाभिमान की बात है।
वहीं दूसरी ओर क्रिकेट खिलाड़ी वीरेंद्र सहवाग ने बीसीसीआई अध्यक्ष जय शाह से मांग की है कि भारतीय खिलाड़ियों की टी-शर्ट्स से इंडिया नाम हटाकर भारत लिखा जाए। खिलाड़ी भारत लिखी टी-शर्ट पहनेंगे तो उनका मनोबल ऊंचा रहेगा। सहवाग ने कहा कि इंडिया नाम अंग्रेजों ने दिया और दासता का प्रतीक है।
यदि हमारे देश का नाम इंडिया हटाकर पूर्व नाम भारत कर दिया जाए तो इसमें गलत क्या है? हम कब तक स्वाधीन भारत में परतंत्रता का बोझ ढोएंगे?
परंतु विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने जी 20 बैठक के निमंत्रण “रिपब्लिक ऑफ भारत” के नाम से डर के कारण भेजे हैं क्योंकि विपक्षी गठबंधन का नाम I.N.D.I.A रखा गया है अतः इस नाम का उद्घोष करते हुए सरकार डर रही है। आरोप है कि रिपब्लिक ऑफ इंडिया नाम संवैधानिक है, इसे संसद ही बदल सकती है।