इमोशनल कहानी बांझ

शबनम

इमोशनल कहानी बांझबांझ

घर पर कोई नहीं था। फरीदा अपने कमरे में इधर से उधर घूम रही थी। वह कभी पंखे को देखती तो कभी अपने दुपट्टे को और फिर कुछ सोचने लग जाती। बीच बीच में उसकी मुट्ठियां भिंच जातीं।

उसके और अब्दुल के निकाह को तीन बरस हो गए थे, लेकिन अभी उसकी गोद सूनी थी। घर का वातावरण तनावपूर्ण हो चला था। सास के ताने सुन सुनकर फरीदा का दिल छलनी हो गया था। उस दिन तो हद ही हो गई, जब अब्दुल की बहन रेशमा अपने बच्चों समेत घर आई। फरीदा ननद के स्वागत में दरवाजे पर आई और उसने बड़े दुलार से ननद के बच्चे को गोद में उठा लिया। तभी अब्दुल की मॉं ने उसे बांझ कहते हुए लगभग झपट्टा मारकर उसकी गोद से बच्चा छीन लिया। फरीदा सन्न रह गई। बांझ शब्द उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने गर्म शीशा उसके कान में उड़ेल दिया हो।

वह जानती थी खोट उसमें नहीं है। जब वह 15 बरस की थी, तब सौतेले अब्बू ने उसके साथ ज्यादती की थी। अम्मी उसे दवाखाने ले गई थीं और उसका बच्चा गिरवा दिया गया था। लेकिन अपनी सास को कैसे बताए कि वह बांझ नहीं है। अब्दुल से भी कैसे कहे कि वह एक बार अपनी जॉंच करवा ले। इसी उहापोह में दो दिन निकल गए। अब्दुल काम के सिलसिले में दूसरे शहर गया हुआ था। फरीदा ने निश्चय कर लिया था कि आज अब्दुल आएगा तो वह जरूर इस बारे में रात को उससे बात करेगी।

उस दिन उसने अब्दुल की पसंद का सलवार सूट पहना, मन को संयमित किया। घर का काम समाप्त करके अपने कमरे में चली गई और अब्दुल की प्रतीक्षा करने लगी। अब्दुल सुबह के दो बजे कमरे में आया और आते ही तीन बार बोला तलाक तलाक तलाक। एक काफिर से दोस्ती करने की तुम्हारी यही सजा है। फरीदा को काटो तो खून नहीं। अब्दुल के पांव लड़खड़ा रहे थे, वह नशे में था। फरीदा को समझ गया, अम्मी ने उसके कान भरे हैं। पड़ोसन सुमन से उसका बात करना उन्हें बिल्कुल नहीं सुहाता था। परसों सुमन का बच्चा फरीदा के घर के सामने खेल रहा था। घर के बाहर खाकर फेंकी गई हड्डियों के लिए कुछ कुत्ते लड़ रहे थे। कुत्तों की लड़ाई से डरकर बड़े बच्चे तो वहॉं से भाग गए, लेकिन सुमन का बच्चा सड़क पर गिर गया और उसे चोट लग गई। फरीदा शोर सुनकर बाहर आई और उसने बच्चे को रोते हुए देखा तो ममतावश उसे उठा लिया और सुमन के घर छोड़ आई। उसे क्या पता था सुमन और उसका पति दोनों कृतज्ञता जताने उसके घर जाएंगे। बस सास को बहाना मिल गया और उसने अब्दुल को भड़का दिया। फरीदा को कुछ समझ नहीं आया, वह रोने लगी। खाविंद के पॉंव पकड़े, सास से माफी मांगी, लेकिन तलाक तो हो चुका था।

सुबह अब्दुल का नशा उतरा तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। अब क्या हो? बिना हलाला दोनों पति पत्नी की तरह साथ तो रह नहीं सकते। फरीदा को उसके अम्मी अब्बू के घर पहुंचा दिया गया। महीना गुजरते गुजरते अब्दुल को फरीदा की याद सताने लगी। वह किसी भी सूरत में उसे वापस पाना चाहता था। लेकिन बिना हलाला यह सम्भव नहीं था। पहले तय हुआ पास की मस्जिद के मौलवी से हलाला कराया जाए, पता चला वह दो लाख रुपए मांग रहा है और साल भर से पहले तलाक भी नहीं देगा। घर में विचार विमर्श हुआ, फिर तय किया गया कि अब्दुल के अब्बू से हलाला कराना ठीक रहेगा। बात घर की घर में रह जाएगी और पैसे भी नहीं देने पड़ेंगे। अल्लाह ने चाहा तो इसकी गोद भी भर जाएगी। फरीदा को अपनी अम्मी से जब यह पता चला तो उसकी आत्मा कांप गई। …….फिर अब्बू! उसे लगा सैकड़ों कीड़े उसके शरीर पर रेंग रहे हैं। अब उसे घिन आने लगी अपने आप से। अचानक उसके हाथ दुपट्टे का फंदा बनाने लगे। वह मुक्ति चाहती थी, इस जिल्लत से….जहालत से…. और इस जिंदगी से….

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