उपन्यास सूखा पत्ता (पुस्तक परिचय)

उपन्यास सूखा पत्ता (पुस्तक परिचय)

अरुण सिंह

उपन्यास सूखा पत्ता (पुस्तक परिचय)उपन्यास सूखा पत्ता (पुस्तक परिचय)

कुछ दिनों से अमरकांत विरचित “सूखा पत्ता” पढ़ रहा था। यह उपन्यास स्वाधीनता से पहले के वर्षों में उत्तर भारतीय परिवेश में अवस्थित है। तीन भागों में विभक्त यह उपन्यास समकालीन जनमानस में उपजे राष्ट्रप्रेम और दासता के प्रति घृणा को सजीव अभिव्यक्ति देता है। मनमोहन की मानसिक विकृति की उपेक्षा नहीं की जा सकती, परंतु इसकी आड़ में उसकी बौद्धिक और शारीरिक योग्यता और देशप्रेम को नहीं नकारा जा सकता। नायक कृष्ण के व्यक्तित्व पर मनमोहन का बहुत बड़ा प्रभाव है और उसका विकास इसी परिपाटी पर होता है। अंग्रेजों से लड़ने हेतु अहिंसा कोई काम की नहीं थी। इस लड़ाई हेतु शक्ति की आवश्यकता थी। शरीर और मन दोनों की। यह मनमोहन और कृष्ण दोनों के चरित्र में परिलक्षित है। किशोरवय भावनाओं में भी सत्य विद्यमान होता है, भले ही तार्किक धरातल पर उनको महत्व न दिया जाए। एक व्यक्ति के लिए राष्ट्र, अस्तित्व और आवश्यकता दोनों है। कृष्ण और उसके मित्र तभी हैं, जब राष्ट्र है। वे भावनाओं से प्रेरित होकर संगठन निर्माण करते हैं। आपस में सहयोग और एकता का भाव विकसित होता है। इस से यह भी प्रमाणित होता है कि अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रामक होना महती आवश्यकता थी। अंग्रेज़ी कुशासन में भारत के क्रांतिकारी युवकों की थाने में ले जाकर पिटाई करना एक आम बात थी। कृष्ण और उसके मित्र देश के प्रति निष्ठावान हैं। यद्यपि अन्य लोग तदनंतर दूसरे रास्ते पकड़ लेते हैं, परंतु कृष्ण की ज्वाला नहीं बुझ पाती। समाजवादी विचार उसे प्रभावित करता है, परंतु उसका एक दायरा है। अखिलानंद वर्मा के समाजवादी सिद्धांत जीवन की श्रृंखला में एक कड़ी भर हैं। कृष्ण उन्हें पूर्णतया “हृदयंगम” नहीं कर पाता। समाजवाद उसे संतुष्टि नहीं दे पाता, मन में टीस छोड़ जाता है।

उर्मिला कृष्ण के जीवन का अंत नहीं है। प्रेम तो प्रारंभ है। यह कसौटी है, जहां कृष्ण के व्यक्तित्व की परीक्षा होती है। वह अपनी निष्ठा को प्रमाणित करता है। उर्मिला उसकी निश्छल प्रेरणा है। प्रेम में वह बार बार नैराश्य में डूबता है, परंतु यह जीवन का अंत नहीं है, अंतराल मात्र है। उर्मिला से विछोह उसे नया प्रारंभ देता है। रूढ़ि को वह नकार तो देता है, परंतु उसके यथार्थ को भली भांति स्वीकार कर लेता है। कृपाशंकर उसे फिर से जागृत करता है। “राष्ट्र” और समाज हेतु फिर से खड़ा होना कृष्ण को पूर्ण अस्तित्व देता है।

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