लो फिर ऋतु बसंत है आई

लो फिर ऋतु बसंत है आई

केदार गुप्ता

लो फिर ऋतु बसंत है आई

लो फिर ऋतु बसंत है आई

मौसम में मादकता मदमाई,

प्रकृति ने फिर ली अंगड़ाई।

फूल खिले है उपवन-उपवन,

लो फिर ऋतु बसंत है आई।।

नव तरु पल्लव पनप रहे हैं,

भँवरे राग अलाप रहे हैं।

रंग बिरंगी तितली उड़ती,

मन मयूर सब नाच रहे हैं।

सब के मन को है यह भाई,

 लो फिर ऋतु बसंत है आई।।

खेतों में फूली है सरसों,

पीली-पीली है कंचन सम।

फूल पलाश के दहक रहे हैं,

नहीं प्रज्ज्वलित अग्नि से कम।

कोयल कूक उठी मधुवन में,

महक उठी है फिर अमराई।

लो फिर ऋतु बसंत है आई।।

इसका महिमा गान अनंत है,

ऋतुओं का राजा बसंत है।

हृदयों में उल्लास भरा है,

तम-निशि का समझो बस-अंत है।

जाग उठी है फिर तरुणाई,

लो फिर ऋतु बसंत है आई।

लो फिर ऋतु बसंत है आई।।

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