कठुआ और मुजफ्फरनगर की घटनाओं पर दोहरा मापदंड क्यों?
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कठुआ और मुजफ्फरनगर की घटनाओं पर दोहरा मापदंड क्यों?
पीड़ित मुस्लिम है तो हो हल्ला, हिन्दू है तो चुप्पी…। कठुआ और मुजफ्फरनगर की घटनाओं पर लेफ्ट लिबरल का दोहरा मापदंड एक बार फिर सामने आया है। एक ही दिन में दो घटनाएं अलग अलग स्थानों पर घटित हुईं। लेकिन लिबरल गैंग की प्रतिक्रिया सिलेक्टिव है…ऐसा क्यों?
25 अगस्त, कठुआ, जम्मू-कश्मीर
मामला कठुआ के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का है। विद्यालय में एक छात्र ने कथित रूप से ब्लैकबोर्ड पर “जय श्री राम” लिख दिया, इसके लिए विद्यालय के प्रधानाध्यापक मोहम्मद हाफिज और अध्यापक फारुक अहमद पर छात्र को पीटने का आरोप है। पुलिस के अनुसार घटना 25 अगस्त शुक्रवार की है। पिटाई के कारण छात्र को गंभीर आंतरिक चोटें आईं और उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया।FIR में यह भी लिखा गया है कि पिटाई के बाद प्रिंसिपल ने एक कर्मचारी को भेजकर बोर्ड को पानी से धुलवाया ।
25 अगस्त, मुजफ्फरनगर, उप्र
दूसरी घटना उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरगनर की है। यहॉं से एक वीडियो 25 अगस्त को वायरल हुआ। इस वीडियो में एक महिला टीचर अपनी क्लास के एक छात्र को दूसरे बच्चों से थप्पड़ लगवा रही है, क्योंकि वो होमवर्क करके नहीं लाया था। इसके लिए आरोपी टीचर तृप्ता त्यागी ने उसे सजा स्वरूप कक्षा के दूसरे बच्चों से उसे थप्पड़ लगवाए। इस दुर्व्यवहार का वीडियो सामने आने के बाद छात्र के परिजनों ने निर्णय लिया कि अब वे अपने बच्चे को इस स्कूल में नहीं पढ़ाएंगे।
ये दो मामले हैं। दोनों में एक टीचर है और एक बच्चा। लेकिन मुजफ्फरनगर का मामला जिसमें टीचर हिन्दू है और बच्चा मुस्लिम… लगातार सुर्खियों में है। दूसरी ओर कठुआ की घटना जिसमें टीचर मुस्लिम है और बच्चा हिन्दू, कोई मुंह खोलने को तैयार ही नहीं है। मुजफ्फरनगर की घटना पर राजनीतिक दलों सहित विभिन्न संगठनों के लोगों के द्वारा सोशल मीडिया पर ट्वीट करने से लेकर विभिन्न प्रकार के बयान देने की एक लंबी सूची है। वहीं जम्मू कश्मीर के कठुआ मामला तो जैसे हुआ ही नहीं। जो लोग बढ़ चढ़कर मुजफ्फरनगर पर बयान दे रहे हैं और ट्वीट कर रहे हैं वे कठुआ की घटना पर चुप हैं।
यह दोहरा मापदंड क्यों??
पीड़ित के प्रति रवैया इतना सिलेक्टिव क्यों? प्रश्न केवल यही है कि एक मामले पर इतना चिल्ला चिल्ला कर बखान करने वाले लोग उसी प्रकार के दूसरे मामले पर चुप क्यों हो जाते हैं? जबकि दोनों ही घटनाएं निंदनीय हैं। जो कठुआ के विद्यालय में हुआ वह भी गलत है और जो मुजफ्फरपुर में हुआ वह भी गलत है। यदि विरोध करना है तो हमें इन दोनों ही घटनाओं का करना चाहिए। मुजफ्फरनगर की घटना को सांप्रदायिक रंग देकर, मुस्लिमों को प्रताड़ित बताना लेफ्ट लिबरल गिरोह के एजेंडे का ही एक रूप है, जो अब नया नहीं रहा। ये लोग यह दिखाना चाहते हैं कि भारत में ऐसी घटनाएं सिर्फ मुसलमानों के साथ हो रही हैं, जबकि सत्य सामने है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। दोनों ही घटनाएं निंदनीय हैं, इसके लिए आरोपियों को उचित सजा मिलनी चाहिए।