अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान ने आयोजित किया कथाकार सम्मेलन

अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान ने आयोजित किया कथाकार सम्मेलन

अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान ने आयोजित किया कथाकार सम्मेलनअखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान ने आयोजित किया कथाकार सम्मेलन

जयपुर, 18 दिसम्बर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान ने आज जयपुर में कथाकार सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमें पूरे राजस्थान से चुने हुए 60 कथाकार उपस्थित हुए। सम्मेलन का विषय “कथा लेखन: चुनौतियां और दायित्व” था।

प्रातः 10:00 बजे मां भारती एवं सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर सम्मेलन का उद्घाटन किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. कमला गोकलानी (अजमेर) ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में प्रमोद कुमार गोविल उपस्थित रहे। डॉ. अन्नाराम शर्मा ने कहा कि आज सभी प्रकार के भेदों को समाप्त करने के लिए साहित्य लिखे जाने की आवश्यकता है। विशिष्ट वक्ता प्रो. कैलाश कौशल एवं राजेंद्र शर्मा मुसाफिर ने भी विचार व्यक्त किए।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान ने आयोजित किया कथाकार सम्मेलन

प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन विष्णु शर्मा हरिहर, कोटा द्वारा किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता समाज चिंतक एवं साहित्यकार हनुमान सिंह राठौड़ ने की एवं विशिष्ट वक्ता के रूप में शिवराज भारतीय, शारदा शर्मा एवं मनीषा आर्य सोनी ने विचार रखे। अध्यक्षीय भाषण में हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा कि कथाओं का लेखन वर्तमान परिपेक्ष्य में भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं को दृष्टिगत रखते हुए किया जाना चाहिए। पूर्व में साहित्यकारों द्वारा एक विशेष विचारधारा स्थापित की गई। कुछ शब्द जैसे यथार्थवाद, अति यथार्थवाद आदि गढ़े गए और आम भारतीय जन को दिग्भ्रमित किया गया। इन लोगों ने भारतीय संस्कृति, परंपराओं एवं साहित्य को धूमिल करने वाला साहित्य लिखा। जिससे इस प्रकार का भ्रम उत्पन्न हुआ कि आम भारतीय को संस्कृत भाषा से आये शब्द ठीक से समझ नहीं आते, परंतु अरबी और फारसी शब्द सब समझ लेते हैं। पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित इन लेखकों के साहित्य ने भारत के गौरव और वैभवशाली परंपरा का ज्ञान नई पीढ़ी को होने ही नहीं दिया। माय बॉडी इज माय चॉइस जैसे उच्छृंखल डायलॉग गढ़ना एवं अश्लील भाषा का प्रयोग करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बन गया। इस प्रकार के साहित्य से हमारी पीढ़ियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? वर्तमान में राष्ट्रीय विचार से ओतप्रोत प्रत्येक साहित्यकार को इस पर चिंतन करना होगा। पुरातन ग्रंथों पर वर्तमान वातावरण को दृष्टिगत रखते हुए लिखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप का निर्माण उनके पिता ने नहीं, माता जयवंती ने किया। शिवाजी को संस्कार भी उनकी माता जीजाबाई ने दिए। इसीलिए भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान बहुत ऊंचा है। इसीलिए उसे पूज्य माना गया है। नारी व्यक्ति को कर्मनिष्ठ बनाने के साथ-साथ शक्तिवर्धक बनाती है। दूसरी ओर एक विशेष विचारधारा वाले लोग नारी विमर्श उत्पन्न करते हैं।

तकनीकी सत्र में किरण बाला, बसंती पवार, गौरी कांत एवं रतन लाल मेनारिया ने भाग लिया। अध्यक्षीय भाषण देते हुए  गोविंद भारद्वाज ने कहा कि वर्तमान में समाज को जोड़ने वाला साहित्य लिखा जाना चाहिए। इसी सत्र में जिज्ञासाएं भी रखी गईं, जिनका समाधान हनुमान सिंह राठौड़ ने किया।

अंतिम सत्र समारोप के रूप में आयोजित किया गया।जिसका संचालन आशा शर्मा ने किया। इस सत्र के मुख्य अतिथि विजय जोशी रहे एवं विशिष्ट वक्ता के रूप में इंजी. आशा शर्मा, सुधा आचार्य, राजाराम स्वर्णकार एवं डॉ. केबी भारतीय ने विचार रखे। अध्यक्षता प्रो. नंद किशोर पांडे ने की। प्रो. पांडे ने कहा कि साहित्यकारों को अब इस प्रकार की कहानियां लिखनी चाहिए, जिनमें पर्यावरण, सागर और हिमालय विमर्श सम्मिलित हो। सम्मेलन में अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान के क्षेत्रीय संगठन मंत्री डॉ. विपिन चंद्र भी उपस्थित रहे।

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