कुरुक्षेत्र

दीप्ति शर्मा

कुरुक्षेत्रकुरुक्षेत्र

हस्तिनापुर की हस्ती मिट गई, स्त्री के अपमान में

शकुनि के पासे हारे यहां, जंग के मैदान में

शस्त्रों का विनाश हुआ, महानता के भान में

अच्छे-बुरे सब बलि चढ़ गये, मिट्टी के मैदान में।

न मिला कुछ, न खोया गिन पाए, इस मृत्यु श्मशान में

मोह, मान, मर्यादा, ताकत, धन सब कम पड़ा धर्म की आन में

विश्वेश्वर भी स्वयं आ डटे, अधर्मियों के ज़हान में

अर्थ अनर्थ का पाठ पढ़ाया, भगवन ने गीता महान में।

धर्म की विजय हो सदैव, अधर्मियों का हो नाश
मां भारती के सम्मान में।

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