निर्बल का बल भगवान कृष्ण, उनका जीवन एक पाठशाला

निर्बल का बल भगवान कृष्ण, उनका जीवन एक पाठशाला

कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष

निर्बल का बल भगवान कृष्ण, उनका जीवन एक पाठशाला

भगवान विष्णु के सभी अवतारों में, कृष्ण और राम इस भारत भूमि पर वे अवतार हैं, जिन्होंने अपने कर्मों के माध्यम से लोगों को धर्मसम्मत आचरण का मार्ग दिखाया है। यह वह भूमि है, जहां जब भी धर्म का क्षरण होता है, तो भगवान धर्म की पुनर्स्थापना हेतु परिस्थिति के अनुकूल अवतार लेते हैं। त्रेता युग में, लोग धर्म का पालन आदर्श जीवन के उदाहरण को देखकर करते थे, इसलिए उस युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अवतरण हुआ। द्वापर युग में, केवल उदाहरण दिखाना पर्याप्त नहीं था, अधर्मियों को दंडित करने का मार्ग सिखाया जाना भी आवश्यक था। इसलिए कृष्ण धर्म के पक्ष में खड़े हुए और पांडवों को कुरुक्षेत्र में जीतने में सहायता की। भगवान कृष्ण का जीवन हम सब के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके जीवन से हमें अनेक बातें सीखने को मिलती हैं। जैसे,

प्रेम का संचार करो, अंततः वह लौटकर आपके पास वापस आएगा
मथुरा आने के बाद, कृष्ण ने कई लीलाएँ करके लोगों के बीच दृढ़ संबंध स्थापित किए। स्वयं कृष्ण नाम का अर्थ है “कर्षयति इति कृष्णः अर्थात जो आकर्षित करता है।” दूसरों के घरों से मक्खन, दूध आदि चुराने जैसे शरारती आचरण करके, उन्होंने गृहिणियों को आकर्षित किया। कई राक्षसों को मारकर उन्होंने अपने मित्रों व अन्य लोगों को आकर्षित किया, मित्रों की सहायता की और मुरली की मधुर ध्वनि से गायों तक को आकर्षित किया।

एक नेता को अपने लोगों के लिए खड़ा होना चाहिए
मथुरा के गोपालक हर वर्ष भगवान इंद्र की पूजा करते थे। कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ी की पूजा करने का सुझाव दिया जो उन्हें उनकी गायों के लिए भोजन उपलब्ध कराकर कई तरह से मदद करता है लेकिन इंद्र इस कृत्य से क्रोधित हो गए और उन्हें दंडित करना चाहते थे। उन्होंने समवर्तक बादलों को भेजा और उन्हें भारी वर्षा करने का आदेश दिया। लगभग सात दिनों तक भयानक गरज के साथ बारिश हुई। भगवान कृष्ण ने पहाड़ी को उठा लिया और लोगों को आश्रय दिया। इससे इंद्र का मिथ्या अभिमान टुकड़ों में बिखर गया और सभी बादलों को वापस बुला लिया।

प्रकृति का सम्मान करें और उसकी रक्षा करें
मथुरा में यमुना नदी के उप भाग में कालिंदी नामक एक झील है। इस झील में कालिया नाम का एक सर्प रहता था, जिसके जहर ने झील के पानी को गर्म कर दिया था। पानी के गरम होने से बनी वाष्पों ने नदी को बेकार कर दिया था। जो गलती से उस पानी को पी लेते थे, मर जाते थे। कृष्ण उस झील की ओर गए और उस विशाल सांप के सिर पर सवार होकर और नाचने लगे, जिससे वह नाग बेहोश हो गया। उन्होंने उसे जीवित कर दिया और उसे नदी से दूर जाने के लिए प्रेरित किया, जिससे किसी को कोई परेशानी न हो, ऐसा करने से उस सर्प की पत्नियां भी प्रसन्न हो गयीं और कृष्ण की प्रशंसा की।

धर्म के पक्ष में खड़े हों, भले ही वह कमजोर हो
कौरवों ने साम्राज्य का आधा हिस्सा पांडवों को नहीं दिया, जिसके वे वैधानिक अधिकारी थे। दुर्योधन सम्पूर्ण राज्य पर अपना प्रभुत्व चाहता था। कृष्ण ने पांडवों का पक्ष लिया और हर तरह से उनका साथ दिया। उन्हें अपने पक्ष को सुदृढ़ करने और बढ़ाने में सहायता की। इसमें छोटे दुश्मनों को मारना, पांडवों के लिए नए मित्र बनाना और राजनीतिक रणनीतियों द्वारा युद्ध को जिताऊ बनाना सम्मिलित था।

अपने पूरे जीवन में, कृष्ण ने सदैव महिलाओं की रक्षा की।

अष्टावक्री की कथा
मथुरा में कंस को मारने से पहले, कृष्ण एक महिला से मिलते हैं, जो अपने बदसूरत शारीरिक आकार के कारण अत्यंत कुरूप थी। वह उसे गले लगाकर उसे सुंदर बना देते हैं।

विवाह उससे जो प्रेम करे
रुक्मिणी कृष्ण से अत्यधिक प्रेम करती थीं। जबकि उनका भाई रुक्मी उनकी उपेक्षा करता था। वह उन्हें किसी और से विवाह के लिए विवश कर रहा था। रुक्मिणी कृष्ण के पास एक ब्राह्मण के माध्यम से प्रेम का संदेश भेजती हैं। कृष्ण रुक्मिणी के राज्य में आते हैं और उनसे विवाह करते हैं।

कई महिलाओं को जीवनदान
नरकासुर ने 16 हजार महिलाओं का अपहरण कर उन्हें गुलाम बना लिया था। कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और उन सभी महिलाओं से विवाह कर उन्हें समाज में एक सम्मानपूर्ण स्थान दिया।

द्रोपदी के स्वाभिमान की रक्षा
कृष्ण ने द्रोपदी के स्वाभिमान को कई बार बचाया। चीर हरण के समय कृष्ण ने कपड़े बढ़ाकर उनकी सहायता की। अरण्य वास में, दुर्योधन महान क्रोधी दुर्वासा महर्षि को एक यात्रा के बहाने पांडवों के पास भेजता है। अन्नपात्र के खाली होने के कारण द्रोपदी उनके लिए भोजन उपलब्ध कराने में असमर्थ थीं। वह कृष्ण से प्रार्थना करती हैं। अन्नपात्र में चावल के एक दाने से दुर्वासा और उनके सभी शिष्यों का पेट भर जाता है। अपने पूरे जीवन में, कृष्ण ने हमेशा महिलाओं की रक्षा की।

जीवन में चाहे जो भी ऊंचाई प्राप्त कर लें, अपने मित्रों को कभी न भूलें
कृष्ण के एक सहपाठी, सुदामा बेहद गरीब थे। अपनी पत्नी की सलाह पर, वह कृष्ण से मिलने के लिए पैदल चलकर द्वारका पहुंचे। उन्हें आशा थी कि कृष्ण उनकी गरीबी दूर करने में कुछ सहायता अवश्य करेंगे। कृष्ण ने उनका स्वागत और सम्मान किया तथा बिना मांगे धन धान्य से सम्पन्न बनाकर उनका जीवन बदल दिया।

कठिन और जटिल लोगों से निपटने की कला
महाभारत युद्ध के आरंभ से पहले अर्जुन और दुर्योधन दोनों कृष्ण से अनुरोध करते हैं कि वे उनके पक्ष में रहें। दुर्योधन पहले आता है। कृष्ण तब विश्राम ले रहे थे। जागने के बाद, कृष्ण अर्जुन और दुर्योधन दोनों को देखते हैं और पांडवों के पक्ष में चुनकर धर्म का पक्ष लेते हैं। दुर्योधन ने कहा, “आप यह कैसे कर सकते हैं? सबसे पहले मैं आपके पास मिलने के लिए आया था। आपको मेरी तरफ होना चाहिए”
कृष्ण ने कहा, “आप पहले आए लेकिन मैंने अर्जुन को पहले देखा”। निरुत्तर हो दुर्योधन वहाँ से चला गया।

सदैव उसकी ओर रहें जो आप पर भरोसा करता है
कृष्ण ने पांडवों को हर तरह से उनका अधिकार दिलाने में सहायता की। उन्हें रास्ता दिखाया, अपनी ताकत का एहसास कराया, उनका संपर्क बढ़ाकर अपनी सेना बनाने में सहायता की और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।

कृष्ण का जीवन बहुत कुशल तरीके से जीवन के विभिन्न पहलुओं में जीवन को संभालने के लिए जीवित पाठशाला और शिक्षाओं का गुच्छा है।

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