कोरोना से लड़ाई में पश्चिमी देश हांफ रहे हैं लेकिन भारत अग्रिम चौकी पर खड़ा है

कोरोना से लड़ाई में पश्चिमी देश हांफ रहे हैं लेकिन भारत अग्रिम चौकी पर खड़ा है

प्रणय कुमार

कोरोना से लड़ाई में पश्चिमी देश हांफ रहे हैं लेकिन भारत अग्रिम चौकी पर खड़ा है

लेकिन इस चीनी वायरस से पूर्ण मुक्ति के लिए जन-आंदोलन समय की माँग है। हम सभी को विशेष सतर्कता एवं सावधानी बरतनी होगी।

जीवन की सबसे बड़ी सुंदरता ही यह है कि वह प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी निरंतर गतिशील रहता है। अपितु यह कहना चाहिए कि गति ही जीवन है, जड़ता व ठहराव ही मृत्यु है। विनाश और विध्वंस के मध्य भी सृजन और निर्माण कभी थमता नहीं। संपूर्ण चराचर सृजनधर्मा है। और मनुष्य की तो प्रधान विशेषता ही उसकी संवेदनशीलता एवं सृजनधर्मिता है। यों तो भारतीय जीवन-दृष्टि प्रकृति के साथ सहयोग,सामंजस्य एवं साहचर्य का भाव रखती आई है। पर यह भी सत्य है कि मनुष्य की अजेय जिजीविषा एवं सर्वव्यापक कालाग्नि के बीच सतत संघर्ष छिड़ा रहता है। जीर्ण और दुर्बल झड़ जाते हैं, परंतु वे सभी टिके, डटे और बचे रहते हैं जिनकी चेतना उर्ध्वगामी है, जिनकी प्राणशक्ति मज़बूत है, जो अपने भीतर से ही जीवन-रस खींचकर स्वयं को हर हाल में मज़बूत और सकारात्मक बनाए रखते हैं।

यह कोविड-काल ऐसे ही योद्धाओं का साक्षी रहा है। इस कोविड काल में ऐसे तमाम योद्धा समय के सारथी रहे हैं। उन्होंने प्राणार्पण से मानवता की सेवा और रक्षा की। वे कर्त्तव्यपरायणता के ऐसे कीर्त्तिदीप रहे जिन्होंने स्वयं को गला-जला मनुष्यता का पथ प्रशस्त किया। इन अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं ने इस महामारी की चपेट से जनजीवन को बचाए रखने में कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं रखी। शिक्षा, सेवा, कृषि, सुरक्षा, सफाई, स्वास्थ्य, यातायात जैसे तमाम क्षेत्रों में लड़ते-जूझते ये योद्धा सचमुच किसी महानायक से कम नहीं! उन्होंने एड़ी टिका, सीना तान, बुलंद हौसलों से उम्मीदों के सूरज को डूबने से बचा लिया। समय के इन सारथियों ने संपूर्ण तत्परता एवं कुशलता से अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया।

दुनिया में किसी को नहीं लगता था कि भारत जैसा विशाल जनसंख्या वाला देश कोरोना जैसी महामारी से  लड़ सकता है। पर हम लड़े और ख़ूब लड़े। तमाम विकसित देशों की तुलना में इस महामारी से मरने वालों की संख्या भारत में बहुत कम रही और स्वास्थ्य-दर में भी निरंतर सुधार देखने को मिल रहा है। अब तो स्वस्थ होने वालों का प्रतिशत 87 तक पहुँच गया है। यह संभव हुआ इन फ्रंट वॉरियर्स के बल पर। उन्होंने अपना काम बख़ूबी किया है, अब हमारी बारी है। सरकारों ने भी इस मोर्चे पर कमोवेश बेहतर प्रदर्शन किया है। जहाँ पश्चिमी देशों की सरकारें कोरोना से लड़ते हुए हाँफती दिखीं, वहीं भारत के तमाम राज्यों एवं केंद्र की सरकार इस दिशा में लगातार सतर्क एवं सक्रिय दिखीं। नीति, निर्णय एवं कामकाज के स्तर पर शासन-प्रशासन में पंगुता या किसी प्रकार की शिथिलता नहीं के बराबर दिखाई दी। सदियों में कभी-कभार आने वाली ऐसी महामारी के दौरान सरकारों का यह रवैय्या न केवल संतोषजनक है, अपितु उत्साहवर्द्धक भी है।

किसी भी सरकार की शक्ति का मुख्य स्रोत वहाँ का नागरिक-समाज ही होता है। उसके सामूहिक मनोबल पर ही सरकार का बल निर्भर करता है। सामान्य जनजीवन एवं जीविकोपार्जन के लिए कोरोना के प्रकोप, उसके भय एवं आशंकाओं से बाहर आना अत्यंत आवश्यक है। लॉकडाउन के पश्चात कोरोना संबंधी हर प्रकार के नियमों एवं पाबंदियों से सरकार हमें पूर्णतया मुक्त करने जा रही है। अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने तथा रोज़गार के संकट दूर करने के लिए सरकार के पास इसके अलावा कोई और विकल्प भी नहीं है। अब कोरोना से बचने का सारा दारोमदार समाज पर है। एक परिपक्व समाज के रूप में हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। हमें पहले से अधिक गंभीरता एवं परिपक्वता के साथ कोविड-19 के संक्रमण से बचने के लिए सावधानी एवं सतर्कता बरतनी होगी। हमें कोविड-19 के विरुद्ध प्रधानमंत्री द्वारा आहूत राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान का हिस्सा बनना पड़ेगा। कोविड-19 के विरुद्ध उनके इस आंदोलन को जन-आंदोलन में परिणत करना होगा। जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती हमें अपने-अपने स्तर पर, अपने-अपने दायरे में सुरक्षा-कवच बनकर कोविड की रोकथाम करनी होगी। प्रत्येक नागरिक को संयम एवं अनुशासन का पालन करना होगा। ‘दो गज दूरी, मास्क है ज़रूरी’, ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ जैसे वाक्यों को जीवन-मंत्र बनाना होगा। बार-बार हाथ धोने को आदतों और संस्कारों में शामिल करना होगा।

त्योहारों और ठंड का मौसम शीघ्र ही प्रारंभ होने जा रहा है। ऐसे में हम सभी को विशेष सतर्कता एवं सावधानी बरतनी होगी। उत्सवधर्मिता हम भारतीयों की प्रमुख विशेषता है। पर हमारी उत्सवधर्मिता अनियंत्रित उपभोग एवं स्वेच्छाचार पर आधारित कभी नहीं रही। वह त्याग, संयम, अनुशासन और इन सबसे अधिक लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित-संचालित रही है। केवल अपने ही नहीं औरों के भी सुख और कल्याण की भावना अमूल्य है। किसी के प्राणों की रक्षा से अधिक कल्याणकारी और कौन-सा कार्य हो सकता है! समय आ गया है, जब समस्त देशवासियों को दृढ़ इच्छाशक्ति एवं सामूहिक संकल्पशक्ति के बल पर कोरोना जैसी महामारी को निश्चित पराजित करना होगा और अपने तथा अपने पड़ोसियों-सहकर्मियों के स्वास्थ्य एवं आयुष्य की यथासंभव रक्षा करनी होगी।

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