गाय को लेकर आखिर कब गम्भीर होगी सरकार

गाय को लेकर आखिर कब गम्भीर होगी सरकार

मनीष गोधा

गाय को लेकर आखिर कब गम्भीर होगी सरकार
जयपुर। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने अखबार यंग इंडिया में गाय के बारे में लिखा था कि “ गाय करुणा का काव्य है। यह सौम्य पशु मूर्तिवान करुणा है। यह करोड़ों भारतीयों की मां है। गाय के माध्यम से मनुष्य समस्त जीवजगत से अपना तारतम्य स्थापित करता है। भारत में गाय मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र है। गाय केवल दूध ही नहीं  देती, बल्कि उसकी वजह से कृषि सम्भव हो सकी है।” गाय के बारे में यह उन गांधी के विचार हैं जिन्हें हम राष्ट्रपिता मानते हैं। जो पूरे देश के लिए पूजनीय हैं और हमारी सरकारें विशेषकर कांग्रेस की सरकारें हर काम गांधी के नाम पर करती हैं। लेकिन जैसे हमने गांधी जी के अन्य विचारों को भुला दिया है, उसी तरह हम गाय के बारे में उनके विचारों को भी भूल चुके हैं। सरकारें गाय के नाम पर कहने को बहुत कुछ कहती हैं, लेकिन असल में वैसा कुछ होता नहीं दिखता है।
राजस्थान की ही बात करें तो गाय के नाम पर अलग विभाग है, निदेशालय बना हुआ है, लेकिन गो संरक्षण और संवर्धन को लेकर आज भी कोई बड़ी नीति, विचार या कार्यक्रम नजर नहीं आता है। गाय के नाम पर जनता से सेस वसूला जाता है, लेकिन उस इकट्ठा हुई राशि को दूसरे कामों में लगा दिया जाता है। दो वर्ष में इस सेस के जरिए सरकार ने करीब 1252 करोड़ रुपए वसूले हैं, लेकिन 647 करेाड़ के आसपास ही खर्च किए गए हैं। यही नहीं अब तो राजस्थान की विधानसभा गो संरक्षण के नाम पर वसूल किए जाने वाले सेस की आधी राशि कोविड जैसी बीमारियों के प्रबंधन और अन्य आपदाओें में इस्तेमाल किए जाने का कानून पारित कर चुकी है। इसके अलावा गोशालाओं को मिलने वाले अनुदान की  राशि भी आधी की जा रही है। गोशालाओं को छह माह मिलने वाला 90 दिन का अनुदान अब सिर्फ 42 दिन के लिए दिए जाने के आदेश दिए गए हैं। यानी अनुदान भी पूरा नहीं दिया जाएगा।
बात सिर्फ अनुदान की ही नहीं है, गोवंश के उपयोग और उसे बचाने के लिए जिस तरह के प्रयास किए जाने की जरूरत है, वो भी नजर नहीं आते। गाय ऐसा जीव है जो जब तक दूध देता है, तब तक तो काम का है ही, दूध देना बंद कर दे तो भी काम का है। महात्मा गांधी ने गाय को जन्म देने वाली माता से भी बड़ा माना है। उनके अनुसार गौमाता अनेक अर्थों में जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है। वो हमें जीवन भर कुछ न कुछ देती है। गाय कभी भी अनुपयोगी नहीं होती, लेकिन सरकार के पास ऐसी कोई नीति नजर नहीं आती है जो गाय का संरक्षण करते हुए उसके उत्पादों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती हो। बल्कि हालत यह है कि जब तक गोशालाएं या गोसंरक्षण के काम सरकारी क्षेत्र में रहते हैं, उनकी स्थिति बहुत खराब रहती है। जयपुर की हिंगोनिया गोशाला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यह गौशाला जब तक जयपुर नगर निगम के हाथ में रही इसका हाल बेहाल रहा। दो माह में पांच हजार गायों की मौत तक यहां देखी गई और इसके बाद जब से यह गोशाला अक्षयपात्र फाउंडेशन को मिली है, न सिर्फ इसकी स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि यहां की गायों से मिलने वाले दूध और गोबर से कई तरह के उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। अब यहां से गायों की मौत की खबरें हमें सुनने को नहीं मिलती हैं। यानी सिर्फ सोच का फर्क था। जो काम आज अक्षयपात्र फाउंडेशन कर रहा है, वही काम सरकारी तंत्र भी कर सकता था, लेकिन किया  नहीं गया।
कई निजी संस्थाएं गाय के गोबर, मूत्र आदि से नए नए तरह के उत्पाद बना रही हैं। गौकाष्ठ ऐसा ही उत्पाद है जो न सिर्फ लकडी की बचत करता है, बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है। जयपुर की कई गोशालाएं आज गोकाष्ठ का निर्माण कर रही हैं, लेकिन सरकार की ओर से इसे प्रोत्साहित करने की कोई नीति नजर नहीं आती है। शवों के अंतिम संस्कार के लिए गोकाष्ठ को बहुत उपयोगी माना गया है। कुछ लोग इस्तेमाल कर भी रहे हैं। सरकार की ओर से इसे धीरे-धीरे अनिवार्य किया जाए तो गायों के चारें के लिए धन की समस्या बहुत हद तक खत्म हो सकती है। गोबर से कागज बन रहा है, गोबर से ही गमले और अन्य उत्पाद बन रहे हैं। गौमूत्र के औषधीय गुणों की बात तो सभी करते हैं, लेकिन सरकार का आयुष विभाग तक कभी इन गुणों को ढंग से प्रचारित नहीं करता। बेसहारा गोवंश के सडकों पर घूमने से होने वाली दुर्घटनाएं तो चर्चा का विषय बन जाती है, लेकिन बेसहारा गोवंश को तुरंत किसी गोशाला में पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था हम आज तक नहीं कर पाए हैं। गोवंश को इस तरह खुला छोड़ देने वालों पर भी कोई बड़ी कार्रवाई होते हमने नहीं देखी है।
गाय को लेकर राजस्थान में जब भी बात होती है तो प्रदेश के एक हिस्से में हुई कथित माॅब लिचिंग को मुद्दा बना दिया जाता है,  लेकिन गो संरक्षण से जुडे सकारात्मक पहलुओं पर कोई बात नहीं होती है। गाय के बारे में बात करना पिछड़ेपन और कट्टर हिन्दूपन की निशानी मान लिया जाता है। यह सोच सरकार पर भी हावी है, यही कारण है कि गो संरक्षण को लेकर गम्भीर प्रयास नजर नहीं आते हैं।
Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *