गिरनार (जूनागढ़) का अनोखा महाशिवरात्रि मेला
गिरनार (जूनागढ़) का अनोखा महाशिवरात्रि मेला
एकात्मता स्तोत्र में उल्लिखित रैवत्तक (गिरनार) पर्वत, सौराष्ट्र प्रांत के जूनागढ़ शहर में विराजित है। धार्मिक दृष्टि से ऐसा माना जाता है कि गिरनार पर्वत के घने जंगलों में अनेक संत-महात्मा एवम् साधु-अघोरी गुफाओं में भगवान शिव की साधना में लीन रहते हैं। सदियों से अविचल – अडिग ऐसे गिरनार पर्वत की गोद में भगवान भवनाथ महादेव का मंदिर, जहां शिवलिंग स्वयं प्रकट है, वहां हर महाशिवरात्रि के दो दिन पहले से ही मेला प्रारंभ हो जाता है। देशभर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस मेले में भाग लेने हेतु आते हैं। इतना ही नहीं सच्चे साधु-संतों की खोज में विदेशों से भी श्रद्धालु यहां आते हैं। देश भर के विविध अखाड़ों के साधु-संत एवम् ‘नागा बाबा’ (दिगंबर साधु) यहां आते हैं और तीन दिनों तक महादेव की आराधना करते हैं। मेले की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस वर्ष भी इस मेले में भाग लेने हेतु दो – दिनों में ही 7 -8 लाख से अधिक श्रद्धालु पंहुचे।
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि 12 बजे दिगंबर साधुओं ने प्राचीनतम मृगीकुंड में स्नान करने हेतु डुबकी लगाई। कहते हैं, ऐसा करते समय कुछ साधु विलीन हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा-विष्णु-महेश और भगवान शिव के गण जो साधु स्वरूप में मेले में आते हैं, वे अंतर्ध्यान हो जाते हैं। बाद में भवनाथ महादेव का लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में अभिषेक होता है और दिगंबर साधुओं की शोभायात्रा निकलती है, जिसमें परंपरागत भारतीय युद्ध कला का प्रदर्शन होता है। यहां आने वाले सभी लोगों के लिए निवास एवम् भोजन की नि:शुल्क व्यवस्था होती है और देश के जाने माने संगीतकार संतवाणी प्रस्तुत करते हैं।