कालगणना का सबसे प्राचीन साधन है चंद्रमा, चंद्रयान 3 कल उतरेगा चंद्रमा पर

कालगणना का सबसे प्राचीन साधन है चंद्रमा, चंद्रयान 3 कल उतरेगा चंद्रमा पर

 कालगणना का सबसे प्राचीन साधन है चंद्रमा, चंद्रयान 3 कल उतरेगा चंद्रमा परकालगणना का सबसे प्राचीन साधन है चंद्रमा, चंद्रयान 3 कल उतरेगा चंद्रमा पर

23 अगस्त को चंद्रयान-3 चंद्रमा पर उतरेगा, ये हमारे लिए ऐतिहासिक और गर्व के पल होंगे। ऋग्वेद और शतपथ ब्राह्मण ये दो ग्रंथ बताते हैं कि प्राचीनतम काल से चंद्रमा इंसानों के लिए कालगणना का साधन रहा है। भारतीय कालगणना चंद्रमा आधारित है। प्राचीनकाल में चंद्रमा के घटने व बढ़ने की स्थिति के अनुसार समय का अनुमान लगाया जाता था।आज भी भारतीय ज्योतिष कैलेंडर चंद्रमास से ही बनाया जाता है। भारत में चंद्रमा की कलाओं से कैलेंडर (lunar calender) बनाने का सबसे सटीक गणित है। अन्य कई देशों जैसे चीन और अरब आदि ने भारत से ही लूनर कैलेंडर बनाना सीखा।

भारतीय कालगणना इतनी सटीक है कि इसमें सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर अब तक सेकेंड के सौवें भाग का भी अंतर नहीं आया है। चन्द्रमा पृथ्वी का चक्कर जितने समय में लगा लेता है, वह समय साधारणतः एक “चन्द्र-मास’ होता है। चन्द्रमा की गति के अनुसार तय किए गये महीनों की अवधि नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार कम या अधिक भी होती है। जिस नक्षत्र में चन्द्रमा बढ़ते-बढ़ते पूर्णता को प्राप्त होता है, उस नक्षत्र के नाम पर चन्द्र वर्ष के महीने का नामकरण किया गया। एक वर्ष में चन्द्रमा चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, आषाढ़ा, श्रवण, भाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा और फाल्गुनी नक्षत्रों में पूर्णता को प्राप्त होता है। इसीलिये चन्द्र-वर्ष के महीनों के नाम चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन रखे गये हैं। यही महीने भारत में सर्वाधिक प्रचलित हैं। मास के जिस हिस्से में चन्द्रमा घटता है, वह कृष्ण-पक्ष तथा बढ़ने वाले हिस्से को शुक्ल-पक्ष कहा जाता है।

सबसे छोटी व बड़ी इकाई- वर्ष, महीने, दिन आदि की गणना के साथ-साथ प्राचीन भारत के वैज्ञानिकों ने समय की सबसे छोटी इकाई “त्रुटि’ का भी आविष्कार किया। महान्‌ गणितज्ञ भास्कराचार्य ने आज से 1400 वर्ष पहले लिखे अपने ग्रन्थ में समय की भारतीय इकाइयों का विस्तृत विवेचन किया है। ये इकाइयां इस प्रकार हैं-

225 त्रुटि = 1 प्रतिविपल
60 प्रतिविपल = 1 विपल (0.4 सेकेंड)
60 विपल = 1 पल (24 सेकेंड)
60 पल = 1 घटी (24 मिनट)
2.5 घटी = 1 होरा (एक घण्टा)
5 घटी या 2 होरा = 1 लग्न (2 घण्टे)
60 घटी या 24 होरा या 12 लग्न = 1 दिन (24 घण्टे)

इसी “होरा’ से अंग्रेजी में हॉवर / आवर बना ।
सृष्टि का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल एकम् रविवार के दिन हुआ। इस दिन के पहले “होरा’ का स्वामी सूर्य था, उसके बाद के दिन प्रथम होरा का स्वामी चन्द्रमा था। इसलिये रविवार के बाद सोमवार आया। इसी तरह सातों वारों/ दिनों के नाम सात ग्रहों पर रखे गए। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि इतने सूक्ष्म काल (1/33,750 सेकेंड) की गणना भी भारत के आचार्य कर सकते थे। इसी तरह समय की सबसे बड़ी इकाई “कल्प’ को माना गया। जिसका वर्णन श्रीमद्भागवत कथा में भी किया गया है। एक कल्प में 432 करोड़ वर्ष होते हैं। एक हजार महायुगों का एक कल्प माना गया। जो निम्न प्रकार है –

1 कल्प = 1000 चतुर्युग या 14 मन्वन्तर
1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी
1 चतुर्युग = 43,20,000 वर्ष

प्रत्येक चतुर्युगी के सन्धि-काल में कुछ “सन्धि-वर्ष’ होते हैं, जो किसी भी युग में जोड़े नहीं जाते। उन्हें जोड़ने पर 14 मन्वन्तरों के कुल वर्ष 1000 महायुगों ( चतुर्युगियों) के बराबर हो जाते हैं। इस समय श्वेतवाराह “कल्प’ चल रहा है।इस कल्प का वर्तमान में सातवां मन्वन्तर है, जिसका नाम वैवस्वत है। वैवस्वत मन्वन्तर के 71 महायुगों में से 27 बीत चुके हैं तथा 28 वीं चतुर्युगी के भी सतयुग, त्रेता तथा द्वापर बीत कर कलियुग का 5116 वां वर्ष आगामी वर्ष-प्रतिपदा से प्रारंभ होगा। इसका अर्थ है कि श्वेतवाराह कल्प में 1,97,29,49,115 वर्ष बीत चुके हैं। अर्थात्‌ सृष्टि का प्रारम्भ हुए 2 अरब वर्ष हो गये हैं।

वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 2 वर्ष की है। जिस समय यूरोप के लोग हजार से ऊपर की संख्या की गणना नहीं कर पाते थे, उस समय भारतीय गणितज्ञों को विराट संख्या तल्लाक्षण का ज्ञान था। इसका मान है 1053 अर्थात 1 के आगे 53 शून्य लगाने से जो संख्या बने। गणित के ग्रन्थ ललित विस्तर में भगवान गौतम बुद्ध और गणितज्ञ अर्जुन की बातचीत का वर्णन है। इसमें बोधिसत्व सौ करोड़ से आगे की संख्याओं के नाम बताते हैं। सौ कोटि (करोड़) का मान एक अयुत, सौ अयुत = एक नियुत, 100 नियुत = 1 कंकर। इसी प्रकार आगे बढ़ते-बढ़ते गौतम बुद्ध बताते हैं कि 100 सर्वज्ञ का मान एक विभुतंगमा (1051) और सौ विभुतंगमा का मान एक तल्लाक्षण (1053) के बराबर होता है।

प्रोफेसर कोलब्रुक और बेवर ने अपनी पुस्तक “लेटर्स ओन इंडिया” में लिखा है कि भारत को ही सबसे पहले चंद्रकला, ग्रह व नक्षत्रों का ज्ञान था।

जर्मन स्कॉलर प्रोफेसर मैक्स मूलर ने अपनी पुस्तक “इंडिया व्हाट कैन इट टीच अस” में लिखा कि भारत ग्रह, नक्षत्र, ज्योतिष आदि के बारे में जानने के लिए किसी भी देश का ऋणी नहीं है।

इस प्रकार कालगणना के क्षेत्र में भारत का स्वर्णिम इतिहास रहा है। चंद्रयान 3 के चंद्रमा पर लैंड होने पर अब भारत अन्य नए कीर्तिमान रचेगा।

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