चर्च के एजेन्ट के तौर पर भारत में कन्वर्जन को बढ़ावा देने वाले मिशनरी थे मैक्समुलर

चर्च के एजेन्ट के तौर पर भारत में कन्वर्जन को बढ़ावा देने वाले मिशनरी थे मैक्समुलर

आशीष कुमार ‘अंशु

चर्च के एजेन्ट के तौर पर भारत में कन्वर्जन को बढ़ावा देने वाले मिशनरी थे मैक्समुलर

मैक्समुलर जो संस्कृत ग्रंथों पर पूरे अधिकार से लिख रहे थे। उनके संबंध में आज तक पता नहीं चला कि उन्होंने संस्कृत की पढ़ाई किस गुरुकुल में की? 

अधिक समय नहीं हुआ इस बात को जब फैज अहमद फैज की नज्म ‘बस नाम रहेगा अल्लाह का’ पर विवाद हुआ था। उन दिनों फैज के पक्ष में यह लिखा जा रहा था कि एक नज्म अपने अंदर कई अर्थ छुपाए रखती है। उसे शाब्दिक अर्थों से नहीं समझा जा सकता। जबकि ‘बस नाम रहेगा अल्लाह का’ को पढ़कर स्पष्ट होता है कि इससे अधिक साफ शब्दों में कोई शायर क्या इस्लामिक स्टेट के संबंध में लिख सकता था? जब फैज अहमद फैज के बचाव में कई कम्युनिस्ट इतिहासकार भी सामने आए और उन्होंने कुतर्क कर—करके पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक फैज की वकालत की। उनकी इस बात पर हंसी आनी स्वाभाविक थी क्योंकि रोमिला थापर से लेकर इरफान हबीब तक वही सारे लोग हैं, जिन्होंने भारतीय इतिहास के साथ छेड़छाड़ की। जिन्होंने तथ्यों को किनारे लगाकर अपने मुताबिक कहानी को इतिहास का नाम दे दिया। इन इतिहासकारों का सच जानना हो तो यूट्यूब पर नीरज अत्री (Neeraj Atri) को सुनना चाहिए। जिन्होंने इतिहास के नाम पर पाठकों और छात्रों के आंखों पर डाली जा रही धूल को साफ करने का एक सार्थक प्रयत्न अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से किया है। पढ़ने की बात हो तो त्रिभुवन सिंह को पढ़ा जाना चाहिए।

मैक्समुलर जो संस्कृत ग्रंथों पर पूरे अधिकार से लिख रहे थे। उनके संबंध में आज तक पता नहीं चला कि उन्होंने संस्कृत की पढ़ाई किस गुरूकुल में की? अब ऐसे कई तथ्यों को केन्द्र में रखकर डॉक्टर त्रिभुवन सिंह ने ‘तथ्यों के आलोक में डॉक्टर अंबेडकर, शूद्र कौन थे, अवलोकन और समीक्षा’ के नाम से एक पुस्तक लिखी है। यह पुस्तक अनामिका प्रकाशन, तुलाराम बाग, प्रयागराज से आई है।

जैसा कि इस पुस्तक के शीर्षक से अनुमान लगाया जा सकता है कि इसको लिखने की प्रेरणा लेखक को डा. अम्बेडकर को पढ़ते हुए मिली होगी। डॉ. अम्बेडकर अपनी किताब शूद्र कौन थे में गलत व्याख्या/अनुवाद के शिकार हुए। बहरहाल, डॉ. अम्बेडकर की पुस्तक शूद्र कौन थे की चर्चा से पहले थोड़ी बात मैक्समुलर की कर लेते हैं। पुस्तक के अनुसार मैक्समुलर की नीयत उसके द्वारा 1868 में आरगोइल के ड्यूक को लिखे पत्र से स्पष्ट हो जाती है जो भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी आफ स्टेट के पद पर नियुक्त थे। मुलर ने दिसम्बर 16, 1868 को लिखा — ”भारत का प्राचीन धर्म विनाश के कगार पर है और ऐसे में ईसाइयत अपने पांव नहीं पसारती, कन्वर्जन नहीं होता तो यह गलती किसकी होगी?

इससे स्पष्ट होता है कि मैक्समुलर की भारत में भूमिका अकादेमिक ना होकर पूरी तरह से राजनैतिक थी। चर्च के एजेन्ट के तौर पर भारत में कन्वर्जन को बढ़ावा देने वाले मिशनरी की थी। वह भारतीयों के ईसाई रिलिजन में कन्वर्जन के प्रबल समर्थकों में था।

सन 1492 के बाद भारत की खोज में निकले यूरोप के आक्रांताओं ने विश्व भर के गैर ईसाई देशों पर आक्रमण किया और उनकी जर-जोरू-जमीन पर जबरन कब्जा किया। बहुत से देशों के ‘देसी निवासियों’ का उन्होंने समूल विनाश किया और उन पर भी आज मालिक की तरह काबिज हैं। जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया।

1757 में ब्रिटिश आक्रांताओं ने भारत पर कब्जा करने के उपरांत यहां की धन संपदा लूटी और उसके कृषि, शिल्प, वाणिज्य का भी विनाश किया। इसके साथ ही साथ अपने अपराधों पर पर्दा डालने हेतु उन्होंने भारत के बारे में गलत सूचनाओं, भ्रांतियों, फेंटेसी और अफवाहों के माध्यम से उसके इतिहास और समाजशास्त्र की मनमानी और गलत व्याख्या की। इन फेंटेसी और सूचनाओं पर आधारित गलत व्याख्या को उन्होंने विश्व एकेडेमिया में, फिनोलॉजी, इंडोलॉजी या साइंस ऑफ लैंग्वेज के नाम से वैज्ञानिक सत्य का आवरण चढ़ाकर प्रसारित और प्रचारित किया।

तत्कालीन शिक्षित भारतीय उनके द्वारा एकत्रित सूचनाओं को अंतिम सत्य मानकर, उसकी व्याख्या करने में लग गए।अनेक ग्रंथ स्वतंत्रता के बाद भारत में उन वामपंथी अंग्रेजों ने लिखे, जो गोरे अंग्रेजों को विस्थापित कर भारतीय तंत्र पर कब्जा किए बैठे थे। वहां तर्क और तथ्यों के लिए कोई जगह नहीं थी। जगह थी तो पूर्वाग्रहों के लिए। इसलिए वामपंथी अंग्रेजों द्वारा लिखा गया इतिहास—साहित्य आज भी भारत में धर्म और जाति के नाम पर डाली गई दरार को चौड़ी खाई में परिवर्तित करने में सहायक सिद्ध हो रहा है। डॉक्टर अंबेडकर की 1946 में लिखी गई पुस्तक शूद्र कौन थे भी उन्हीं फेंटेसी और अफवाहों से प्रभावित नजर आती है।

डॉक्टर त्रिभुवन सिंह की ‘तथ्यों के आलोक में डॉक्टर अंबेडकर, शूद्र कौन थे, अवलोकन और समीक्षा’ पढ़ी जानी चाहिए। इससे बाबा साहब के साहित्य को पढ़ने और समझने की एक नई दृष्टि पाठकों को मिलेगी।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *