कल के जल के लिए आज अपनाना होगा ‘एएमसी’ – आर्य

कल के जल के लिए आज अपनाना होगा ‘एएमसी’ - आर्य

कल के जल के लिए आज अपनाना होगा ‘एएमसी’ - आर्यकल के जल के लिए आज अपनाना होगा ‘एएमसी’ – आर्य

उदयपुर, 29 अगस्त। हमें यदि कल जल चाहिए तो आज अपनी जीवनचर्या में एएमसी के नियम को अपना होगा। यह आह्वान पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के राष्ट्रीय संयोजक गोपाल आर्य ने रविवार को उदयपुर वाटर फोरम (उदयपुर डेनमार्क शोध योजना), विद्या भवन पॉलिटेक्निक व पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय जल मंथन के दूसरे दिन खुले जल संवाद कार्यक्रम में किया। उन्होंने कहा कि ‘ए’ का अर्थ एक्सेस यूज पर नियंत्रण से है, वहीं ‘एम’ का अर्थ जल के मिनिमम यूज से है तथा ‘सी’ का अर्थ क्रिएटीविटी से है। उन्होंने कहा कि हम आवश्यकता से अधिक जल का दोहन न करें, प्रयास यह करें कि किसी भी कार्य में किस प्रकार जल का कम से कम उपयोग हो सकता है और जीवनचर्या में जल को बचाने की रचनात्मकता का संचरण हो। अन्यथा हम उस स्थान पर आ चुके हैं, जहां से लौटना संभव नहीं है। वह दिन दूर नहीं जब सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण चक्र की पुनर्स्थापना की बात कहने को मजबूर हो जाएगा।

आर्य ने यह भी कहा कि हम स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, देश के 75 वर्षों के विकास की चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने इस बात के चिंतन पर जोर दिया कि 75 वर्ष में गंगा मैली कर चुके हैं हम, सबसे ऊंचे कचरे के पहाड़ वाले देश हैं हम, पानी को बचाने के लिए संगोष्ठियां करने को विवश हैं हम, यह किसकी गलती है। जीव-जंतुओं ने पर्यावरण नहीं बिगाड़ा है, वह मनुष्य ही है, जिसके कारण ये स्थितियां बनी हैं। उन्होंने कहा कि नागरिक कर्तव्यों को हमें पुनः परिभाषित करना होगा। स्वाधीनता के समय वह परिभाषा कुछ और हो सकती थी, लेकिन अब परिस्थितियों के अनुरूप उन्हें परिभाषित करना आवश्यक हो गया है।

विद्या भवन के सीईओ अनुराग प्रियदर्शी ने सभी जल विशेषज्ञों का स्वागत करते हुए कहा कि विद्या भवन एक समावेशी संस्थान है। जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण इसके मूल सिद्धांतों में है। उन्होंने कहा कि विद्या भवन देश भर में जाग्रति के लिए एक वाटर सेंटर बनाने के लिए प्रयत्नशील है।

जल शक्ति मंत्रालय के सलाहकार व राजस्थान रिवर बेसिन अथॉरिटी के पूर्व अध्यक्ष श्रीराम वेदिरे ने कहा कि 20 वर्ष पहले किसी ने नहीं सोचा था कि पानी बोतलों में बिकेगा, अब यह कोई नहीं सोच रहा कि पेट्रोल पम्प की तरह पीने का पानी भी खरीदना न पड़े। हर कोई यह सोचता है कि सरकार सब कुछ करेगी, लेकिन सरकार के पास पानी पैदा नहीं होता। जो पानी मौजूद है, उसी के मर्यादित उपयोग के लिए जागरूक होना होगा।

कर्नाटक पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष डॉ. श्रीहर्षा ने हर मोर्चे पर वाटर रिसाइक्लिंग की आवश्यकता पर जोर दिया। सीकर के डॉ. खेताराम कुमावत ने कहा कि जब हम पीने के पानी को तरसेंगे, तब खेती के लिए पानी कहां से लाएंगे। पानी को घी की तरह समझना होगा। पर्यावरणविद व सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता पुनीत शोरण ने कहा कि शुरुआत घर से करेंगे, तब हम अपने बच्चों को भी सीख दे सकेंगे। नर्मदा समग्र के कार्तिक सप्रे ने कहा कि जिस तरह हमारा स्वास्थ्य होता है, उसी तरह नदियों का भी स्वास्थ्य होता है। उन्हें इस रूप में देखेंगे तब स्वतः ही उनकी चिंता होगी।

कार्यशाला के संयोजक विद्या भवन पॉलिटेक्निक कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने बताया कि खुले जल संवाद में देश भर से आए जल चिंतकों के साथ उदयपुर में जल संरक्षण को लेकर निरंतर कार्यरत जागरूक नागरिकों ने भी विचार व्यक्त किए।

उदयपुर के डॉ. नंदकिशोर शर्मा ने कहा कि हमें पहले अपना एटीट्यूड बदलना होगा, अवेयरनेस का क्रम तो बाद में आता है। उन्होंने कहा कि 1950 में उदयपुर ‘फैनलेस’ था, अब क्या हो गया। उन्होंने हर विभाग में सुरक्षित अधिकारों सहित एक पर्यावरण विशेषज्ञ की आवश्यकता बताई।

जर्मनी में एडवोकेट उदयपुर मूल की भाग्यश्री पंचोली ने कहा कि उन्हें अचरज होता है कि स्मार्ट सिटी में वॉल टू वॉल सीमेंटीकरण कर दिया गया। जमीन में पानी जाने की जगह ही नहीं रखी गई। एनजीटी के निर्देशों के बावजूद इस पर कोई गंभीर नहीं है। यहां हर कोई यही कहता है, ‘आपणे कई करणो’। उदयपुर के युवा कुशल ने प्लास्टिक का उपयोग कम करने के लिए सुझाव दिया कि बच्चों के टिफिन स्टील के काम में लेने शुरू किए जाने चाहिए। यदि एक स्कूल भी ऐसा कर देता है तो कितना बड़ा बदलाव दृष्टिगत होगा। प्लास्टिक के टिफिन का चलन अभी कुछ वर्षों में ही बढ़ा है, पहले तो स्टील के टिफिन ही चलन में हुआ करते थे।

जल संवाद के आरंभ में डॉ. विलास जानवे के निर्देशन में उनकी टीम ने जल के महत्व को दर्शाती ‘मूक’ नाटिका प्रस्तुत की। कलाकारों ने मूकाभिनय में ही इतनी गहराई से जल का महत्व प्रस्तुत किया कि उपस्थित जल विशेषज्ञों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया। इससे पूर्व, रविवार सुबह जल शक्ति मंत्रालय के सलाहकार वेदिरे, ग्राउंड वाटर बोर्ड, सेंट्रल वाटर कमीशन के अधिकारियों सहित देश भर के जल विशेषज्ञ फतहसागर झील पर गए और वहां इधर-उधर बिखरे पॉलिथीन व अन्य कूड़ा-करकट को साफ किया।

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