जाग जा हिन्दू (कविता)

निर्मला वैष्णव

जाग जा हिन्दू (कविता)जाग जा हिन्दू

 

जाग जा हिन्दू, चैतन्य हो जा, समय की दरकार है।

अब भी तेरी नींद न टूटी, फिर तो सब बेकार है॥

सब ज्ञान पड़ा रह जाएगा, जब गलियों में बम फूटेंगे।
तर्क धरे रह जाएंगे जब, तुर्की शत्रु लूटेंगे॥

धन दौलत जितनी जोड़ी, सब तुर्क बांध ले जाएंगे।
महंगी कारें, नये फोन तब कुछ भी काम न आएंगे॥

सब ठाठ धरे रह जाएंगे, यदि हाथ नहीं हथियार लिए।  महल खड़े रह जाएंगे…, सब अल्लाहु अकबर चिल्लाएंगे॥

धनुष राम का न दीखे, न चक्र कृष्ण का दीखै है।
न मुरली घण्टी याद रही, न गदा भीम की सीखै है॥

तो नाम नहीं बाकी होगा, तुम शेष नहीं रह पाओगे।
एक बार तो बोलो तब, तुम दोष किसे दे पाओगे?

जोर जोर से बाज रहा है, कब से जंगी नंगाड़ा।
गूँज रहा पूरब पश्चिमी बस, असुर निशाचर का नारा॥

आधा पंजाब गया, कश्मीर गया, बंगाल लगे जाता सारा।
गाय काट कर दावत हो, नहीं हृदय ने धिक्कारा???

मरना तो तेरा पक्का है, घर में मर ले, रण में मर ले।
या तो घुट घुट कर मर ले, या तू समरांगण को वर ले॥

किन्तु शस्त्र नहीं थामा तो आन नहीं बच पाएगी।
सब धी बेटी मात बहू, नीलाम कराई जाएंगी॥

पांच पांच डॉलर में जैसे, नारी बगदादी बिकती।
भारत भू पर भी ऐसी ही, हाट लगाई जाएगी॥

इतिहास का शौर्य दिखा के क्या, तू शत्रु को डरा पाएगा।
जब वर्तमान में तू पंथनिरपेक्षता की बीन बजायेगा॥

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