सड़क से संसद तक एक ही आवाज, मतांतरण करने वालों को जनजातीय समाज से बाहर करो

सड़क से संसद तक एक ही आवाज, मतांतरण करने वालों को जनजातीय समाज से बाहर करो

रामस्वरूप अग्रवाल

सड़क से संसद तक एक ही आवाज, मतांतरण करने वालों को जनजातीय समाज से बाहर करोसड़क से संसद तक एक ही आवाज, मतांतरण करने वालों को जनजातीय समाज से बाहर करो

हिंदू जनजातीय समाज से मतांतरित होकर इस्लाम या ईसाइयत अपनाने वाले लोग दोहरा लाभ ले रहे हैं। इसके कारण जनजातीय समाज टूट रहा है तथा जनजाति के वास्तविक पात्र योजनाओं के लाभ से वंचित हो रहे हैं। यही कारण है कि जनजातीय समाज आज सड़कों पर है और पूरे देश में मतांतरित लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने के लिए जबरदस्त आंदोलन चला रहा है।

अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षण का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 में किया गया है। इन समुदायों के कल्याण हेतु अनुच्छेद 15 विशेष प्रावधान बनाए जाने की अनुमति देता है।

राष्ट्रपति ने जारी की थी सूची
ये दोनों वर्ग हिंदू समाज का हिस्सा हैं, परन्तु हिंदू समाज जाति आधारित होने के कारण कौन-कौन सी जातियां एससी व एसटी वर्ग में आएंगी, इसके लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत अनुसूचित जातियों (एससी) की सूची जारी की गई थी तथा अनुच्छेद 342 के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की सूची जारी की गई थी। ये सूचियां 1950 में जारी हुईं।

एससी से मतांतरितों को नहीं माना जाता एससी
एससी व एसटी दोनों ही वर्ग हिंदू समाज का हिस्सा होने के कारण स्वाभाविक ही था कि इन वर्गों की सूची में हिंदू-जातियों का उल्लेख हो। एससी वर्ग के जो लोग मतांतरित (कन्वर्ट) होकर ईसाई या मुसलमान बन गए, वे स्वतः ही इस सूची से बाहर हो जाते हैं। यह उचित ही है, क्योंकि अब वे संविधान द्वारा संरक्षित अल्पसंख्यक वर्ग में आ गए, जिनके कल्याण के लिए भी केन्द्र और राज्यों ने अपने कोषागार खोल रखे हैं। ऐसे कन्वर्टेड लोग एससी और अल्पसंख्यक दोनों के लिए तय अधिकार व सुविधाएं तो नहीं ले सकते।

एसटी से मतांतरित हुए लोग अभी हैं एसटी में ही, हड़प रहे हैं सारा लाभ
परन्तु एसटी जातियों की जो सूची जारी की गई, उसमें, पता नहीं कैसे, मतांतरित (कन्वर्टेड) ईसाई और मुसलमानों को भी एसटी वर्ग में ही शामिल रखा गया। परिणाम यह हुआ कि हिंदुओं की किसी एसटी जाति से ईसाई या मुसलमान बनने वाला व्यक्ति दोहरे लाभ व सुविधाएं लेने लगा। 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव (पूर्व सांसद) ने एक विस्तृत अध्ययन इस संबंध में किया था। उन्होंने पाया कि 5 प्रतिशत मतांतरित (कन्वर्टेड) ईसाई अखिल भारतीय स्तर पर एसटी वर्ग की कुल 62 प्रतिशत से ज्यादा नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं सरकारी अनुदान (आर्थिक लाभ) ले रहे हैं। इसके कारण एसटी वर्ग के वास्तविक पात्र लाभ से वंचित हो रहे हैं।

इस विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने अनुशंसा की कि कन्वर्टेड लोगों को अनुच्छेद 342 की एसटी सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति आवश्यक संशोधन आदेश जारी करें। इस अनुशंसा (मुद्दे) पर तत्कालीन 348 सांसदों का समर्थन था। परन्तु इस विषय पर आवश्यक कानून बनाने से पूर्व ही संसद 1970 में भंग हो गई। इसके साथ ही उक्त प्रस्ताव भी रद्द हो गया।

कन्वर्टेड लोग त्याग देते हैं एसटी की संस्कृति
सन् 2000 की जनगणना और 2009 के सामने आए डॉ. जेके बजाज के अध्ययन में भी इस बात की पुष्टि हुई कि कन्वर्टेड ईसाई और मुसलमान एसटी वर्ग की अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं।

जनजातीय वर्ग की एक विशिष्ट संस्कृति रही है। उनकी यह संस्कृति उनके प्रकृति पूजक होने, उनके नृत्य-संगीत में, उनकी वेशभूषा और रीति-रिवाज तथा विश्‍वासों में प्रकट होती है। परन्तु जैसे ही कोई जनजातीय व्यक्ति ईसाई या मुसलमान बन जाता है, तो उनकी संस्कृति की उपरोक्त सभी बातों को वह व्यक्ति त्याग कर एक नई ईसाइयत या इस्लामिक संस्कृति में आ जाता है। कह सकते हैं कि वह अब किसी भी प्रकार से अपनी पूर्व जनजाति का सदस्य नहीं रहा। तब प्रश्‍न उठता है कि उसे एसटी वर्ग का आरक्षण एवं सुविधाएं क्यों दी जाएं? ऐसे लोगों को एसटी वर्ग की सूची से हटाने के लक्ष्य को लेकर ही 2006 में ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ का गठन किया गया।

28 लाख लोगों ने दिया ज्ञापन

जनजाति सुरक्षा मंच ने 2009 में देश के 28 लाख लोगों के हस्ताक्षर से युक्त ज्ञापन राष्ट्रपति को देते हुए मांग की थी कि मतांतरित ईसाई व मुसलमानों को एसटी सूची से बाहर किया जाए।

सन् 2020 में डॉ. कार्तिक उरांव के जन्म दिवस (29 अक्टूबर) पर व्यापक जनसंपर्क अभियान मंच द्वारा चलाया गया था। इस अभियान के अंतर्गत 288 जिलों के जिला कलेक्टर या संभागीय आयुक्तों के माध्यम से राष्ट्रपति को पुनः ज्ञापन दिया गया। इस संबंध में 14 राज्यों के राज्यपाल या मुख्यमंत्रियों से भी मिला गया।

पूरा देश हो रहा है आंदोलित
एक बार फिर अक्टूबर 2021 से अभियान आरंभ किया गया है और पुरजोर मांग की जा रही है कि मतांतरितों को एसटी की सूची से हटाया जाए। इस अभियान में सड़क से संसद तक तथा सरपंच से सांसद तक सम्पर्क किया जा रहा है। गांव-गांव में संपर्क कर जिला सम्मेलनों को अयोजित करते हुए जनजागरण भी किया जा रहा है और सरकार पर भी दबाव बनाया जा रहा है।

एसटी की सूची से मतांतरितों को बाहर निकालने यानि ‘डिलिस्टिंग’ का कानून बनाने के लिए, अब तक 442 सांसदों से सम्पर्क कर आग्रह किया जा चुका है। इस संबंध में राजस्थान राज्य के भी 37 सांसदों से ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ के कार्यकर्ता मिल चुके हैं। राजस्थान के 5 हजार 500 सौ जनजातीय ग्रामों में संपर्क व जनजागरण का कार्य मंच द्वारा हो रहा है।

हो रहे हैं व्यापक कार्यक्रम
राजस्थान के जिला केन्द्रों पर विशाल सम्मेलन हो रहे हैं, रैलियां निकाली जा रही हैं, हजारों-हजार महिलाओं की कलश यात्राएं निकल रही हैं। सब जगह एक ही मांग उठ रही है कि जो लोग जनजातीय समुदाय को छोड़कर चले गए, उन्हें अब अनु. जनजाति के नाम का आरक्षण व सुविधाएं क्यों?

जनजाति सुरक्षा मंच के केन्द्रीय सदस्य बंशीलाल कटारा ने कहा कि जनजाति समाज अनादिकाल से धर्म की रक्षा करता आया है। यह समुदाय देश की संस्कृति और सभ्यता का सेवक है। इस जनजातीय समाज की सुरक्षा के लिए मतांतरितों को सूची से बाहर करना आवश्यक है।

पन्नालाल मीणा ने कहा कि मुगल आक्रांताओं ने भी जनजातीय समाज के धर्म और संस्कृति को नष्ट करने को प्रयास किया था। अब स्वाधीन भारत में राष्ट्रपति के 1950 के आदेश से जनजातीय समाज की धर्म-संस्कृति पर संकट आ गया है। जो लोग एसटी समाज को छोड़कर चले गए उनको एसटी के नाम का लाभ क्यों?

शिक्षाविद् डॉ. राकेश डामोर का कहना है कि जनजातीय मान बिंदुओं की रक्षा के लिए समाज के शिक्षित वर्ग को आगे आना होगा। जन-जन के दबाव से ही अपेक्षित कानून बनेगा। एसटी वर्ग के लिए किए गए आरक्षण का लाभ धर्म परिवर्तन करने वाले उठा रहे हैं, यह बंद होना चाहिए।

लोकसभा में उठा था मुद्दा
दिसम्बर, 2021 में झारखंड से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने एसटी से मतांतरितों का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि कन्वर्जन का विकल्प चुनने वाले एसटी लोगों को आरक्षण व अन्य लाभों से वंचित कर दिया जाना चाहिए, ताकि कन्वर्जन को रोका जा सके। उन्होंने कहा कि उनके गृह राज्य (झारखंड) में कन्वर्जन एक प्रमुख मुद्दा है। प्रलोभन के माध्यम से लोगों को कन्वर्ट किया जा रहा है।

श्री दुबे को जवाब देते हुए केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा, “सरकार कन्वर्जन के बाद अनुसूचित जनजातियों (के लोगों) को आरक्षण के लाभ के संबंध में जनता की भावनाओं के प्रति जागरूक है- ऐसे अनुरोधों पर किसी भी निर्णय में जनता की राय और सभी संबंधित प्रासंगिक मामलों को ध्यान से रखना होगा।”
इसलिए ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ देश भर में इस मुद्दे पर जनजातियों में जागरण हेतु सक्रिय है।

अनुसूचित जातियों को आरक्षण व अन्य लाभ

भारत के संविधान में केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म से संबंधित अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के लोग आरक्षण और दूसरी सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। अगर एससी का कोई व्यक्ति इस्लाम या ईसाइयत में कन्वर्ट होता है तो उसे आरक्षण या दूसरी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा। परन्तु यदि वह फिर से हिंदू/सिख/बौद्ध धर्म स्वीकार कर लेता है तो उसे आरक्षण आदि का लाभ मिलना शुरू हो जाएगा।

दुर्भाग्य है कि यह प्रावधान अनुसूचित जनजाति (एसटी) के मामलों में लागू नहीं होता, इसके कारण अनुसूचित जनजातियों में टूटन हो रही है।

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