हुंकार डीलिस्टिंग महारैली – जनजाति बंधुओं के भोजन पैकेट के लिए थैलियां छपकर तैयार
हुंकार डीलिस्टिंग महारैली – जनजाति बंधुओं के भोजन पैकेट के लिए थैलियां छपकर तैयार
- उदयपुर के घर-घर में पहुंचेंगी थैलियां, हर घर से भोजन पैकेट का होगा आग्रह
- 18 जून को जनजाति बंधुओं की मेजबानी के लिए तैयार उदयपुर शहर
उदयपुर, 14 जून। जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के बैनर तले 18 जून को उदयपुर में होने वाली हुंकार डीलिस्टिंग महारैली की तैयारियां जोरों पर हैं। इस रैली में आ रहे एक लाख से अधिक जनजाति बंधुओं की मेजबानी उदयपुर शहर करेगा। उनके लिए पेयजल से लेकर भोजन की व्यवस्था के लिए उदयपुर शहर जुटेगा। घर-घर से भोजन पैकेट तैयार होंगे। भोजन पैकेट के लिए थैलियां छपकर उदयपुर आ चुकी हैं। अगले दो दिनों में इन थैलियों का वितरण शुरू होगा।
जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के प्रदेश संयोजक लालूराम कटारा ने बताया कि उदयपुर शहर के घर-घर तक भोजन पैकेट तैयार करने के आग्रह के साथ थैलियां पहुंचाई जाएंगी। इन थैलियों पर 18 जून के कार्यक्रम के संक्षिप्त विवरण के साथ भोजन सामग्री की भी जानकारी अंकित की गई है। सभी से आग्रह किया जाएगा कि एक थैली में 10 पूड़ी या छह परांठे, केरी की लौंजी, गुड़, हरी मिर्च कटकी ही रखें ताकि गर्मी के मौसम का असर भोजन पर न पड़े। इन थैलियों पर मनुहार दर्शाती दो पंक्तियां ‘‘धन्य धन्य मेवाड़ धरा है, तुम आए प्रिय पावणा। जीमो भोजन म्हे जीमावां, हरख हरख मन भावणा’’ भी अंकित की गई हैं। भोजन के बाद थैली को सड़क पर नहीं फेंके जाने का भी आग्रह थैली पर अंकित किया गया है।
हुंकार महारैली के संयोजक नारायण गमेती ने बताया कि जनजाति बंधुओं के उदयपुर आगमन के साथ ही गर्मी को ध्यान में रखते हुए जगह-जगह पेयजल की व्यवस्था रहेगी। इसके लिए शहरवासियों सहित विभिन्न सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आई हैं। शहर में पांच स्थानों से निकलने वाली जनजाति बंधुओं की शोभायात्रा के स्वागत के साथ मार्ग में शीतल पेय की व्यवस्था रहेगी।
उल्लेखनीय है कि डीलिस्टिंग महारैली जनजाति समाज के अधिकार और उनकी संस्कृति को बचाने के लिए आहूत की जा रही है। इस महारैली के माध्यम से यह मांग उठाई जाएगी कि जनजाति समाज के जिस व्यक्ति ने अपनी पूजा पद्धति व आस्था बदल ली है, उनका एसटी का स्टेटस हटाया जाए और एसटी के नाते संविधान प्रदत्त सुविधाएं नहीं दी जाएं। जब अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए संविधान में यह नियम लागू है तो अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए भी यह प्रावधान संविधान में जोड़ा जाना चाहिए। कन्वर्ट हो गए लोग अपनी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल जनजाति समाज अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।
इस संबंध में सन 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव, जनजाति नेता/पूर्व सांसद ने, इस संवैधानिक/कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन भी किया। जनजाति नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5 प्रतिशत कन्वर्टेड ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल एसटी की लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक था। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से कन्वर्टेड लोगों को एसटी की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश में संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना आवश्यक है। इस ड्राफ्ट पर तत्कालीन 348 सांसदों का समर्थन भी प्राप्त हुआ था। परंतु, सन 1970 के दशक इस हेतु विचाराधीन ड्राफ्ट पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई।
सन् 2001 की जनगणना और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सदस्य एंथ्रोपोलोजिस्ट पद्मश्री डॉ. जेके बजाज का 2009 का अध्ययन भी इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करता है कि कन्वर्टेड ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों को प्रदत्त अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे हैं। कन्वर्जन के कारण गांव-गांव में पारिवारिक समस्याएं भी आ रही हैं। कहीं-कहीं बहन भाई के बीच राखी का त्योहार समाप्त हो गया है। इन सभी विडम्बनाओं का समाधान संविधान के आर्टिकल 342 में संशोधन है, जिसके लिए पूरे देश में जनजाति समाज एकजुट हुआ है और अन्य राज्यों में राज्य-स्तरीय डीलिस्टिंग रैलियों के बाद अब 18 जून को राजस्थान में हुंकार डीलिस्टिंग महौरली आहूत की गई है।