दहाड़ : बॉलीवुड प्रपंच
डॉ. अरुण सिंह
अभी एक वेब सीरीज आई है : दहाड़। वैसे तो दहाड़ जैसा कुछ है नहीं इसमें, पर विजय वर्मा, जो फिल्म के विलेन हैं और केंद्र भी, के दम पर चलती है। दो मुद्दे भुनाए गए हैं इसमें, जो कि बॉलीवुड का पारंपरिक पैटर्न है। पहला है जाति। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में उस तरह का जातिगत भेदभाव है ही नहीं जो यह सीरीज दिखाती है। कई जगह सोनाक्षी सिन्हा के किरदार के संवाद अत्यंत हास्यास्पद लगते हैं। राजस्थान को लेकर यूपी जैसी पटकथा लिख देना उचित नहीं। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में अब वह जातिगत भेदभाव नहीं रहा जो कभी संभवतः रहा होगा। अंजलि भाटी पुलिस अधिकारी है। जो फब्तियां सुनती दिखाई गई है, व्यावहारिक रूप से ऐसा नहीं होता। हां, विभागीय स्तर पर प्रतिद्वंद्विता होना स्वाभाविक है। आनंद स्वर्णकार जाति से है। वह सवर्ण की श्रेणी में नहीं आता, जबकि उसे ऐसा दिखाया गया है। अपराधी जाति देखकर अपराध करता है, यह भी उतना ही हास्यास्पद है।
दूसरा मुद्दा है, धर्म। सीरीज में जानबूझकर लव जिहाद पर पर्दा डाला गया है। मुस्लिम निर्दोष प्रेमी हैं। बेचारे हैं। हिंदुओं द्वारा प्रताड़ित हैं। हिंदू सवर्ण अत्याचारी हैं, राक्षस हैं। घिनौनी छवि धोने का प्रयास है। आनंद हिंदू है, कॉलेज का प्रतिभावान शिक्षक है, पर घिनौना अपराधी है। हिंदुओं के शत्रु हिंदू ही हैं, मुस्लिम तो बेचारे हैं। उनको तो व्यर्थ ही कोसा जाता है।
सीरीज का तीसरा मुख्य पहलू है, बॉलीवुड का वामपंथी ढर्रा। आनंद की पत्नी का विवाहेत्तर संबंध, अंजलि का विवाह को तुच्छ वस्तु समझना, एसपी का अंजलि के साथ लंपट व्यवहार इत्यादि के बिना निर्देशक/लेखक का एजेंडा पूरा नहीं होता।
राजस्थानी संस्कृति को भौंडे तरीके से दिखाया गया है। पुलिस में एसएचओ और एसपी के बीच डीएसपी और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद भी होते हैं। वे फिल्म से गायब हैं। राजस्थानी बोलने में केवल विजय वर्मा ही ठीक हैं। शेष तो न को ण बोलने में लगे हैं।