देश अल्पसंख्यकवाद से मुक्त हो

देश अल्पसंख्यकवाद से मुक्त हो

हृदय नारायण दीक्षित

देश अल्पसंख्यकवाद से मुक्त होदेश अल्पसंख्यकवाद से मुक्त हो

गरीबी और संपन्नता कभी पांथिक या मजहबी नहीं होते। लेकिन भारत में मजहब आधारित अल्पसंख्यक हैं। दार्शनिक वालटेयर ने समुचित विमर्श के लिए शब्दों की परिभाषा को अनिवार्य बताया था। सभी अधिनियमों में प्रयुक्त महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाएं होती हैं। संविधान (अनुच्छेद 366) में 30 महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाएं हैं। लेकिन ‘अल्पसंख्यक‘ की परिभाषा नहीं है। सर्वोच्च न्यायपीठ में एक संस्था ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 व राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को असंवैधानिक घोषित करने की याचिका दी है। यह विचारार्थ स्वीकार कर ली गई है। भाजपा नेता अश्विनी कुमार की याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा 2एफ पर भी विचार चल रहा है। राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान की मांग की गई है। इसके भी पहले एक याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2सी को चुनौती दी गई है और अल्पसंख्यक की परिभाषा की मांग की गई है। संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 का शीर्षक, ‘अल्पसंख्यक वर्गों के हित संरक्षण व शिक्षा संस्थानों के संचालन‘ है। मजहबी अल्पसंख्यकों की संख्या भारी होने के बावजूद अल्पसंख्यकों के लिए विशेष सुविधाएं हैं। विशेषाधिकार हैं। न्यायालय ने मुकदमे में केन्द्र को नोटिस भेजा था। केन्द्र ने स्टेटस रिपोर्ट देते हुए कहा है कि इस संवेदनशील मामले के दूरगामी परिणाम होंगे। 14 राज्यों ने अपना अभिमत दे दिया है। 19 राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों की राय प्रतीक्षित है। सबकी राय के लिए कुछ और समय देने की मांग की गई है। मामले में खासी बहस छिड़ गई है।

आखिरकार मजहबी आधार पर अल्पसंख्यक होने का औचित्य क्या है? किसी समूह को अल्पसंख्यक घोषित करने की अहर्ता क्या है? यहां सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार हैं। मूलभूत प्रश्न है कि सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार देने वाले राष्ट्र में कोई अल्पसंख्यक क्यों है? सवाल और भी हैं। क्या किसी पांथिक या मजहबी सम्प्रदाय की अल्पसंख्या ही अल्पसंख्यक सुविधाएं लेने का आधार है। पंथ या मजहब ही अल्पसंख्यक होने का आधार क्यों हैं? संविधान की उद्देशिका में राष्ट्र की मूल इकाई ‘हम भारत के लोग‘ हैं। राष्ट्र एक है। संस्कृति एक है। संविधान एक है। अल्पसंख्यकों के लिए अलग से विचार औचित्यपूर्ण नहीं है। देश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं। मुसलमान, पारसी, ईसाई, सिख, बौद्ध, यहूदी अल्पसंख्यक हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में हिन्दू 38.40 प्रतिशत हैं। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत, मणिपुर में 31.39 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर में 28.44 प्रतिशत, नागालैण्ड में 8.75 प्रतिशत, मिजोरम में 2.75 प्रतिशत हिन्दू हैं। इन्हें अल्पसंख्यक नहीं माना जाता। हिन्दू अल्पसंख्यक होकर भी अल्पसंख्यकों के लिए चिन्हित सुविधाओं का लाभ नहीं पाते।
अल्पसंख्यक विशेषाधिकारों के कारण मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है। संविधान (अनुच्छेद 15) में ‘धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्म के आधार पर भेदभाव का निषेध है।‘ लेकिन अल्पसंख्यक हितैषी कानून इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हैं। सबके समान अधिकार हैं लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए विशेष सुविधाएं हैं। उनकी शिक्षण संस्थाएं स्वायत्त हैं। मौलिक अधिकार संविधान का मूल ढांचा हैं। मूल ढाँचे का भाग होने के कारण ये बाध्यकारी हैं। बावजूद इसके साम्प्रदायिक आधार पर चिन्हित अल्पसंख्यक तमाम सुविधाएं लेते हैं। अनेक समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक हैं। किसी राज्य विशेष में वे बहुसंख्यक हैं। वहीं कुछ राज्यों में अल्पसंख्यक हैं। बहुसंख्यक समुदाय को लगता है कि उन्हें तमाम अधिकारों से वंचित किया गया है। दोनों के मध्य इसे लेकर तनाव भी रहता है। बहुसंख्यक अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक हो जाते हैं। अल्पसंख्यक स्वयं को विशिष्ट मानते हैं। वे और अधिकार चाहते हैं। एक देश में दो विधान दिखाई पड़ते हैं। अल्पसंख्यकवादी राजनीतिज्ञ और दल अल्पसंख्यकों को उकसाते रहते हैं कि उनकी उपेक्षा की जा रही है। वे अल्पसंख्यकों के लिए संघर्ष का आश्वासन देते हैं।

अल्पसंख्यकवाद की समस्या राष्ट्रीय एकता में बाधक है। इसके स्रोत कट्टरपंथी साम्प्रदायिकता में हैं। कम्युनल अवार्ड ब्रिटिश सत्ता और कट्टरपंथी तत्वों के षड्यंत्र का परिणाम था। देश टूट गया। साम्प्रदायिक तत्वों को अलग देश मिला। तो भी अल्पसंख्यक विशेष सुविधाएं मांग रहे थे। संविधान सभा ने अल्पसंख्यक अधिकारों पर सभा की समिति बनाई। सरदार पटेल इस समिति के सभापति थे। उनकी रिपोर्ट पर सभा में बहस (27.08.1947) हुई। पी० सी० देशमुख ने कहा कि, ‘‘इतिहास में अल्पसंख्यक से अधिक क्रूरतापूर्ण और कोई शब्द नहीं है। इसी के कारण देश बंट गया।” संविधान सभा के उपाध्यक्ष एच० सी० मुखर्जी ने कहा, ‘‘यदि हम एक राष्ट्र चाहते हैं तो मजहब के आधार पर अल्पसंख्यकों को मान्यता नहीं दे सकते।” बिलकुल ठीक कहा था। भारत बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समझौते का परिणाम नहीं है।
भारत संप्रभु संवैधानिक सत्ता है। तजम्मुल हुसैन ने कहा, ‘‘हम अल्पसंख्यक नहीं हैं। यह शब्द अंग्रेजों ने निकाला था। वे चले गए। अब अल्पसंख्यक शब्द को डिक्शनरी से हटा देना चाहिए।‘‘ पं० जवाहर लाल नेहरू ने कहा, ‘‘सभी वर्ग विचारधारा के अनुसार समूह बना सकते हैं धर्म या मजहब आधारित वर्गीकरण नहीं किया जा सकता।” एम० ए० आयंगर ने तुर्की के अल्पसंख्यकों के संरक्षण के संधिपत्र का उल्लेख किया कि गैर मुसलमान तुर्की नागरिक भी मुसलमानों के समान ही नागरिक व राजनैतिक अधिकारों का उपभोग करें। मैं अल्पसंख्यक शब्द को पसंद नहीं करता।‘‘ पटेल ने अल्पसंख्यकवादियों से प्रश्न किया ‘‘आप स्वयं को अल्पसंख्यक क्यों मानते हैं?”

पंथ और मजहब आधारित अल्पसंख्यक विशेषाधिकार दोतरफा अलगाववाद बढ़ाते हैं। वे अल्पसंख्यकों में अलगाववाद का विचार देते हैं। दूसरी ओर सुविधा से वंचित बहुसंख्यक वर्ग को निराश करते हैं। अल्पसंख्यकवाद राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है। देश को अल्पसंख्यकवाद के पचड़े से मुक्त करना सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी नागरिकों को प्रत्येक प्रकार के अवसर दिलाने के प्रयास जारी हैं। गरीबी और अमीरी के आधार पर ही वर्गों समूहों का विचार किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास‘ अभियान चल रहा है। देश सतत् प्रगति कर रहा है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। जाति पंथ सम्प्रदाय की अस्मिताएं समग्र वैभव के लक्ष्य में बाधक हैं। भारत का प्रत्येक नागरिक देश की उन्नति चाहता है। शिक्षा और सम्पदा में कुछ वर्ग पिछड़े और वंचित हो सकते हैं। उन वर्गों को प्रत्येक अवसर देकर आगे ले चलना राष्ट्रीय कर्तव्य है।

संविधान की उद्देशिका में “सबको प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने“ की शपथ है। संविधान में, “भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भाईचारे की भावना का निर्माण करना मूल कर्तव्य है। शर्त है कि ऐसी भावना, भाषा, पंथ, मजहब और क्षेत्रीय भेदभाव से परे होनी चाहिए।“ अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की बहस का समय बीत चुका है। माना गया था कि युद्ध या अंतर्राष्ट्रीय समझौते के कारण किसी राज्य क्षेत्र के निवासी अपने घर में रहने के बावजूद दूसरे देश के निवासी घोषित हो जाते हैं। राज्य क्षेत्र में परिवर्तन से सभ्यता व संस्कृति प्रभावित होती है। उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती है। भारत में ऐसी स्थिति नहीं है। भारत विभाजन के समय मुस्लिम लीग ने अलग देश मांगा। यहां शेष रहे मुसलमानों ने अपनी इच्छा से भारत को चुना। अंतर्राष्ट्रीय अर्थ में भी भारत में कोई अल्पसंख्यक नहीं है। आवश्यकता है कि देश अल्पसंख्यकवाद से मुक्त हो।

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