द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना वंचितों को प्रेरित करने वाली उपलब्धि

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना वंचितों को प्रेरित करने वाली उपलब्धि

हृदय नारायण दीक्षित

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना वंचितों को प्रेरित करने वाली उपलब्धिद्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना वंचितों को प्रेरित करने वाली उपलब्धि

भारतीय गणतंत्र उल्लास में है। वंचित वर्ग की महिला द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनी हैं। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। राष्ट्र जीवन में उल्लास के ऐसे अवसर कम आते हैं। यहां प्रेरणा, आशा और आत्मविश्वास एक साथ मिलकर सौभाग्य बन रहे हैं। द्रौपदी का राष्ट्रपति होना भारतीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का संवर्द्धक है। नियति ने उन्हें अनेक दुख दिए। उन्होंने पति की असामयिक मृत्यु का दुख झेला। मां के निधन का दुख सहा। दो पुत्र खोए। एक भाई के निधन का भी दुख उठाया। लेकिन वे टूटी नहीं। उन्होंने अपने पुरुषार्थ के दम पर नियति का सामना किया। नियति और पुरुषार्थ का द्वन्द पुराना है। वाल्मीकि ने रामायण में दोनों का चित्रण किया है। श्रीराम को दशरथ ने वनवास दिया। लक्ष्मण गुस्से में थे। श्रीराम ने कहा इसमें कोई दोषी नहीं। सारा खेल नियति का है। फिर राम रावण युद्ध हुआ। रावण मारा गया। श्रीराम ने कहा, ‘‘मैने नियति को पुरुषार्थ से जीता है। रावण को मार दिया है।”  द्रौपदी ने भी नियति से टकराते हुए पुरुषार्थ जारी रखा। आत्मविश्वास नही खोया। उनका राष्ट्रपति होना करोड़ों वंचितों, महिलाओं के लिए प्रेरणादायी है।

भारतीय समाज वर्गों जातियों में विभाजित रहा है। जातियां जन्मना हैं। सम्मान और अपमान जाति आधारित भी रहे हैं।  वंचित समुदायों में निराशा रही है। निराश व्यक्ति या समाज में आत्मविश्वास नहीं होता। आशा से भरे पूरे समाज में उमंग होती है और निराश समाज में हीन भाव। ऐसे निराश समाज में आत्मविश्वास का जागरण आसान नहीं होता। गांधी, आंबेडकर, फुले व लोहिया आदि अनेक महानुभावों ने सचेत भाव से वंचितों के लिए काम किया। तमाम लोग प्रेरित हुए। बहुत कुछ बदला भी, लेकिन वंचित वनवासी समुदायों में आशा उत्साह और उमंग का वातावरण नहीं बना। वंचित गरीब अपने बीच से किसी को प्रतिष्ठित होते देखकर प्रसन्न होते हैं। वे सोचते हैं कि हमारे समाज का ही युवक या युवती परिश्रम पूर्वक उच्च पदस्थ हुआ है तो हम भी उच्च पदस्थ क्यों नहीं हो सकते? ऐसे उदाहरण निराशा घटाते हैं। आशा बढ़ाते हैं। आशा भविष्य के प्रति विश्वास है। छान्दोग्य उपनिषद् (7-141-2) में सनत् कुमार व्यथित नारद से कहते हैं ‘‘अप्राप्त वस्तु की इच्छा का नाम आशा है। आशा से दीप्त स्मरण सतत् कर्म करता है। तुम आशा की उपासना करो – मुपास्स्वेति।” द्रौपदी का राष्ट्रपति होना समूचे देश के लिए आशा और उमंग से भरी पूरी प्रेरणा है।

प्रेरणा के तत्व सर्वत्र हैं। श्रेष्ठजनों के कार्य प्रेरित करते हैं। राष्ट्र जीवन के सभी क्षेत्रों में असाधारण काम वाले साधारण कार्यकर्ता हैं। वे प्रेरित करते हैं। स्टीफेन हॉकिंग शत प्रतिशत विकलांग थे। उन्होंने ब्रह्माण्ड भौतिकी पर बड़ा काम किया। विकलांगता के बावजूद ऐसा काम विश्व में अनूठा है। वे प्रेरणा हैं। समाज सेवा, पर्यावरण, कला, साहित्य, जल संरक्षण, वन संरक्षण व राजनीति के क्षेत्र में अनेक प्रेरक महानुभाव हैं। अनेक इतिहास की गति में भी हस्तक्षेप करते रहे हैं। वे समाज को नया दृष्टिकोण देते हैं। अथर्ववेद में ऐसे ही ‘व्रात्य‘ का उल्लेख है, ‘‘वह सभी दिशाओं की ओर चला, दिशाएं उसका अनुसरण करने लगीं। दिव्य शक्तियों ने उसका अभिनन्दन किया। वह गतिशील रहा। इतिहास, पुराण और गाथाएं साथ साथ चलीं।” द्रौपदी ने परिश्रम किया। अध्ययन किया। अध्यापन किया। समाज सेवा की। उन्होंने अनुसूचित जनजाति के विशाल जनसमुदाय को प्रभावित किया। राष्ट्रपति आसन के लिए उनका चयन समस्त भारत के वंचित समूहों के लिए प्रेरणादायी है। इस प्रेरणा का प्रभाव राष्ट्रव्यापी है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। राष्ट्रपति सबसे बड़े लोकतंत्र का सर्वोच्च पद है। यह राष्ट्र का सर्वोच्च प्रतिनिधि और प्रथम नागरिक भी होता है। संविधान सभा(10 दिसम्बर 1948) में इस पद को लेकर दिलचस्प चर्चा हुई थी। महावीर त्यागी ने कहा, ‘‘उसे सबके आदर का पात्र होना चाहिए।”राष्ट्रपति द्रौपदी को सबका आदर मिल रहा है। संविधान सभा (24 जुलाई 1947) में पं. नेहरू ने राष्ट्रपति के पांच वर्षीय कार्यकाल व चुनाव प्रावधान का प्रस्ताव रखा। बिहार के राम नारायण सिंह ने गैर राजनैतिक राष्ट्रपति का प्रश्न उठाया। दलतंत्र पर कठोर टिप्पणी की। के. संथानम् ने गैर राजनैतिक राष्ट्रपति की बात की। एम.ए. अड़े ने कहा, ‘‘पद पर आने के पहले आप किसी व्यक्ति से निर्दल होने की आशा नही कर सकते।” लक्ष्मीकांत मैत्र ने कहा, ‘‘उसकी निष्ठा और भक्ति सिर्फ राष्ट्र में होनी चाहिए।”  एम०ए० आयंगर ने कहा, ‘‘ऐसा व्यक्ति शायद ही मिले।” लेकिन प्रथम राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रसाद, के०आर० नारायण, प्रणब मुखर्जी, रामनाथ कोविंद आदि महानुभाव ऐसे ही थे। द्रौपदी मुर्मू पूरे राष्ट्र की पसंद हैं। इसीलिए अनेक मतदाताओं ने उनकी जीत के लिए दलीय सीमा तोड़ी है। सर्वोच्च पद के लिए उनका चुना जाना प्रेरणादायी है।

राष्ट्रपति के आसन पर अनुसूचित जाति के के०आर० नारायण व रामनाथ कोविंद अपना कर्तव्य निर्वहन कर चुके हैं। कुछ टिप्पणीकारों ने उनके पदारूढ़ होने पर दलितों के लाभ हानि का प्रश्न उठाया है। उन्हें राष्ट्रपति के अधिकार और कर्तव्य व शपथ को ध्यान से पढ़ना चाहिए। शपथ (अनुच्छेद 60) में कहा गया है कि, ‘‘मै श्रद्धापूर्वक राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा। पूरी योग्यता से संविधान का परिरक्षण, संरक्षण करूंगा। मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में रत रहूंगा।” क्या राष्ट्रपति से हम किसी जाति संप्रदाय के पक्ष में आंदोलन जैसे संविधानेत्तर काम की आशा कर सकते हैं? संविधान में अनुसूचित जातियों, जनजातियों के लिए आयोग (क्रमशः अनु० 338 व 338बी) हैं। विधान मण्डलों में आरक्षण सहित तमाम रक्षोपाय हैं। अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रपति के पद पर द्रौपदी का आसीन होना प्रेरक है। इससे वंचितों के चित्त में भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के प्रति भरोसा बढ़ा है कि इस व्यवस्था में हमारा भी साझा है। इस व्यवस्था के शिखर पर हमारे घर परिवार की महिला विराजमान है। सर्वोच्च पद भी हमारे समुदाय के लिए उपलब्ध है – आज माननीया द्रौपदी तो कल हममे से कोई और। द्रौपदी का राष्ट्रपति होना ऐसी ही प्रेरणा है। प्रेरणा से बढ़ा आत्मविश्वास और नवजागरण वंचितों के लिए बड़ी उपलब्धि है।

प्रेरणा प्रकृति का प्रसाद है और मानवता का भी। प्राचीन काल के ऋषि नदी प्रवाह से प्रेरित थे, सूर्य, पृथ्वी से प्रेरणा लेते थे। ऐतरेय ऋषि प्रकृति की गतिशीलता से प्रेरित थे, ‘‘नदियां बहती चलती हैं। मधुमक्खियां चलते हुए मधु पाती हैं। इसलिए चलते रहो – चरेवैति। शुभ कर्म करने वाले प्रेरित करते हैं। विख्यात गायत्री मंत्र में ऋषि की प्रार्थना है, ‘‘सविता सूर्य हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।” प्रेरित करने वाले बिना बोले भी प्रेरणा देते हैं। उनकी उपस्थिति पर्याप्त है। महिला सशक्तिकरण नरेन्द्र मोदी सरकार का मुख्य एजेन्डा है। द्रौपदी का सर्वोच्च आसन पर होना महिला सशक्तिकरण को गति देगा। कुछ यूरोपीय और अमेरिकी विद्वान भारत में महिलाओं की कथित उपेक्षा पर विलाप करते हैं। महिलाएं यहां राष्ट्र जीवन के सभी क्षेत्रो में प्रतिष्ठित हैं। द्रौपदी के व्यक्तित्व में अनुसूचित जाति और महिला सशक्तिकरण एक साथ है। उनके पदारूढ़ होने मात्र से प्रेरणा का नया वातावरण बना है। यह 2022 का नया भारत है। सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास संवर्द्धन की प्रेरणा व आत्मविश्वास से भरा पूरा भारत।

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