हम गायों को नहीं, गायें हमें पालती हैं : धेनुकृपा ग्रामोद्योग
हम गायों को नहीं, गायें हमें पालती हैं : धेनुकृपा ग्रामोद्योग
जयपुर। यदि आप बाजार जाएं और आपको पता चले कि एक किलो गोबर की कीमत 350 रुपए है, तो आप आश्चर्य में मत पड़िएगा। अपशिष्ट कहे जाने वाले गोबर को इस श्रेणी से अलग करते हुए एक सार्थक उत्पाद में प्रस्तुत करने का काम आसलपुर स्थित धेनुकृपा ग्रामोद्योग करती है।
जयपुर के जामडोली में चल रहे राष्ट्रीय सेवा संगम में बाघचंद और मनोज कुमावत की धेनुकृपा ग्रामोद्योग की स्टॉल आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यहॉं गोबर से बनी कलाकृतियां व अन्य सामग्री प्रदर्शित है।
धेनुकृपा ग्रामोद्योग के संचालक ने कहा कि जहां एक ओर भारत और दुनिया विज्ञान और वैश्वीकरण के माध्यमों से दिनों दिन उन्नति की तरफ अग्रसर है, वहीं गाय जो कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान में एक महत्वपूर्ण कड़ी रही है, आज दुधारू न रहने पर उपेक्षित हो जाती है, और बोझ लगने लगती है। गोमय उत्पादों की बाजार में बढ़ती लोकप्रियता से यह स्थिति बदल रही है। धेनुकृपा ग्रामोद्योग इस दिशा में बड़े प्रयास कर रहा है।
उन्होंने बताया कि उनका संगठन एक लक्ष्य के साथ काम करता है जिसका आदर्श वाक्य है ’स्वावलंबी भारत, समृद्ध भारत’ जिसके अंतर्गत उन्होंने 17 महिलाओं को रोजगार प्रदान किया है। धेनुकृपा ग्रामोद्योग की नींव 5 वर्ष पहले रखी गई थी। आज कई परिवारों को रोज़ी-रोटी इससे जुड़ी है। ये परिवार आर्थिक रूप से सबल हुए हैं। उन्होंने कहा कि हम गाय को नहीं, बल्कि गाय हमें पालती है।
देखा जाए तो आज के इस दौर में हम रासायनिक पदार्थों से घिरे हुए हैं, जो किसी भी प्रकार से लाभदायक नहीं, उल्टा कई मामलों में क्षति पहुंचाने का काम करते हैं। धेनुकृपा ग्रामोद्योग के उत्पाद इन रसायनों से मुक्त हैं। इसका प्रमाण बनी महामारी कोविड, जब गो उत्पादों के असाधारण गुणों के कारण इनकी मांग में तेजी आई। देश ही नहीं, विदेशों में भी लोगों ने इसके महत्व को समझा और अपनाया।
(अनीश रंजन, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान)