धोरों से हिलोरों तक (नर्मदा यात्रा – 1)

धोरों से हिलोरों तक (नर्मदा यात्रा - 1)

दयाराम महरिया

धोरों से हिलोरों तक (नर्मदा यात्रा - 1)
हमारी जीवन यात्रा जन्म से मृत्यु तक चलती है। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वह कितनी लंबी है बल्कि यह है कि जीवन-यात्रा में जीवन की कितनी मात्रा है। जीवन-यात्रा की गति सरल रेखीय नहीं बल्कि वृत्ताकार है। हम अज्ञात से आते हैं और अज्ञात में ही समा जाते हैं। जीवन- यात्रा की एकरसता व सहजता के लिए हम उसे कई लघु यात्राओं में बांटते हैं।राष्ट्र ऋषि आदरणीय गोविंदाचार्य जी इन दिनों नर्मदा यात्रा पर हैं। अपनी ‘नर्मदा दर्शन यात्रा व अध्ययन यात्रा’ का उद्देश्य बताते हुए वे लिखते हैं – “काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सन् 1960 में एम.एस.सी. में प्रवेश के साथ ही मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बन गया। संघ का कार्य तेजी से बढ़े तो राष्ट्र पुनर्निर्माण की गति बढ़ेगी यह सोच थी। साल 1965 में शोध कार्य छोड़ कर मैं प्रचारक बना। जिस भी क्षेत्र में नियोजन हुआ उसमें पूरी ताकत से जुटा रहा। आज से 20 साल पहले सन् 2000 में मेरी विचार निष्ठा तथा केंद्र सरकार एवं पार्टी की नीतियां ऐसी स्थिति में पहुंचने लगीं कि मैंने 2 वर्षों के लिए अध्ययन अवकाश का निर्णय लिया। अध्ययन का विषय था – ‘विचारहीन वैश्वीकरण का समाज, राजनीति, अर्थनीति और संस्कृति पर पड़ रहा प्रभाव और आवश्यक समाधान।’ अध्ययन 15 जनवरी, 2003 को पूरा हुआ। अप्रैल तक रिपोर्ट बनी इस अध्ययन के अनुसार कमजोर वर्ग नुकसान में रहा। प्राकृतिक संसाधनों पर जीने वाले एवं महिला वर्ग को विशेष नुकसान हुआ। समाज में उपभोगवाद और स्वैच्छाचार बढ़ा। मुझे समाधान की दिशा नजर आई विकेंद्रीकरण, बाजारवाद से मुक्ति विविधीकरण, स्थानिकीकरण और उसके साथ संयमित उपभोग के साथ सांस्कृतिक, आध्यात्मिक उन्नयन। इसके लिए एक साथ काम करना था। इसके लिए तब मैंने तय किया कि प्रचारक न रहकर स्वयंसेवक के नाते बौद्धिक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक तीनों आयामों में काम करूंगा। इस तथ्य को मैंने पिछले 20 वर्षों से निभाने का प्रयास किया है। सितंबर 2020 में उसे 20 वर्ष पूरे हो गए इसलिए देश भर घूम कर बदली हुई परिस्थितियों का अध्ययन और अनुभव लेने के लिए अध्ययन प्रवास का संकल्प मन में जागा। उसी के प्रथम चरण के रूप में 2 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2020 तक देवप्रयाग से गंगासागर तक गंगा यात्रा एवं अध्ययन प्रवास किया। उस यात्रा में अनेक पुराने साथियों और उत्साही युवाओं से संवाद का अवसर मिला साथ चल रहे साथियों से भी प्रतिदिन परिचर्चा चलती रहती। दूरभाष पर भी अनेक लोगों से संवाद जारी था। साथ ही अंतर्मुख होकर अतीत में झांकने का भी अवसर मिला। उसी संवाद रूपी मंथन और गंगा मैया के आशीर्वाद से पुस्तिका लिखी – ‘स्वराज्य से रामराज्य की ओर’ गंगा यात्रा के बाद अब नर्मदा यात्रा करने का निर्णय लिया है। 19 जनवरी, 2021 को नर्मदा जयंती के अवसर पर अमरकंटक में रहेंगे। 20 जनवरी को अमरकंटक से निकलेंगे और नर्मदा जी के दक्षिण तट से होते हुए समुद्र संगम तक जाएंगे। वहां से फिर नर्मदा जी के उत्तर तट की यात्रा करते हुए 14 मार्च को वापस अमरकंटक पहुंचेंगे ।आगे 16 मार्च को ओंकारेश्वर दर्शन और 17 मार्च को महाकालेश्वर दर्शन करेंगे।”

आदरणीय गोविंदाचार्य जी की नर्मदा दर्शन यात्रा एवं अध्ययन प्रवास में सहयोग – सहभागी बनने की सूचना गोविंदाचार्य जी के ‘हनुमान’ प्रिय श्री सुरेंद्रसिंह जी बिष्ट ने मुझे दी। तुलसीदास जी ने लिखा है- ‘संत समागम हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय ‘ मुझे गोविंदाचार्य जी की यात्रा में सहभागी बनने पर दोनों दुर्लभ अवसर एक साथ सहज-सुलभ लगे।अतः मैंने यात्रा में सहभागी बनने का निर्णय लिया। मैं, दिनांक 24 फरवरी, 2021 को होशंगाबाद( मध्यप्रदेश ) में सहभागी बना। होशंगाबाद के पास बाबई (माखनलाल चतुर्वेदी की जन्म स्थली) में श्री सुरेश जी अग्रवाल के फार्म हाउस पर कार्यक्रम में शामिल हुआ। श्री सुरेश जी के पूर्वज करीब 200 वर्ष पूर्व दौसा, राजस्थान से वहां व्यापार करने के लिए गए थे तब से वहीं के हो गए। कार्यक्रम बहुत ही गरिमामय था। हम सभी 15 -16 यात्रियों का परिचय एवं सम्मान किया गय। अंत में आदरणीय गोविंदाचार्य जी का उद्बोधन हुआ। हमारे रात्रि विश्राम की व्यवस्था होशंगाबाद – मेयर के भव्य-नव्य भवन पर थी। वहां भी संगोष्ठी आयोजित हुई। संगोष्ठी के पश्चात हम भैया जी महाराज के आश्रम पर गए। वहां बताया गया कि भैया जी ने नर्मदा सत्याग्रह के लिए अन्न त्याग रखा है। उस दिन भैया जी वहां नहीं थे। रात्रि भोजन के पश्चात् लगभग 11:00 बज चुके थे। अधिकांश यात्री अपने-अपने कमरों में विश्राम कर रहे थे। गोविंदाचार्य जी के साथ मेजबान सहित हम दो-तीन लोग हॉल में बैठे हुए वार्ता कर रहे थे। उसी समय संयोग से मेरी दृष्टि लेखक-‘कवि श्री अशोक जमनानी की उसी दिन की फेसबुक पोस्ट पर पड़ी जिसमें उन्होंने लिखा था कि नर्मदा जयंती बीत गई। घोषणा हुई है कि मेरे शहर का नाम नर्मदापुरम होगा। जब हो जायेगा तब एक पुस्तक लिखूंगा जिसमें होशंगाबाद को भूलने से पहले याद करूँगा।’ उनकी उस पोस्ट को पढ़ने से मुझे पता चला कि श्री अशोक जमनानी होशंगाबाद के हैं। वे मेरे घनिष्ठ फेसबुक मित्र हैं। उनका लेखन कवि बिहारी की तरह ‘देखन में छोटे लगे ,घाव करे गंभीर’ है। मैंने उन्हें तुरन्त फोन कर बताया कि आज आपके शहर में गोविंदाचार्य जी के साथ यात्रा पर आया हुआ हूं। आप शीघ्र आ सकते हो तो मिलना चाहूंगा। वे शीघ्र ही हमारे प्रवास स्थल पर पधारे। आदरणीय गोविन्दाचार्य जी से उनका परिचय करवाया। नर्मदा जी पर उनका अच्छा अध्ययन -लेखन है। इस संबंध में गोविंदाचार्य जी ने उनसे चर्चा की। उनकी प्रथम मुलाकात से ही मुझे ऐसा लगा कि हम वर्षों से मिले हुए हैं। राजस्थानी में कहा भी है- मन मेल़ू सूं मिलणूं कसो रे ! अर्थात् मन मिलने वाले से मिलना कैसा ? वह तो हमेशा मिला हुआ ही रहता है। जमनानी जी ने मुझे व गोविंदाचार्य जी को अपनी लिखी दो पुस्तकें -‘बुड्ढी डायरी ‘एवं ‘स्वेटर'( कहानी संग्रह ) भेंट की। मैंने उन्हें पुस्तक पर हस्ताक्षर करके देने के लिए कहा तो उन्होंने सविनय मना करते हुए कहा कि मैं इतना बड़ा आदमी नहीं कि आपको पुस्तक हस्ताक्षर करके भेंट करूं। मैंने पुनः आग्रह किया कि इससे आज की स्मृति रहेगी। उन्होंने संकोच के साथ ‘विनम्र प्रणाम’ लिखकर अपने हस्ताक्षर किए। कहते हैं नर्मदा, नम्र-दा अर्थात् नम्रता देने वाली है। नर्मदावासी कवि के माध्यम से अभिव्यक्त नम्र’ पुष्प की अभिलाषा’ व प्रिय अशोक से मुलाकात के बाद इसकी पुष्टि हो गई। नर्मदा की हिलोरों के साथ मेरे ह्रदय में भी भाव-हिलोरें उठने लगीं। ‘रात आधी, बात आधी’ छोड़ कर हम बिछुड़ तो गये परन्तु नर्मदा नदी के किनारे का वह ‘नदी-नाव संयोग’ मुझे जीवन भर याद रहेगा। रात को नर्मदा की कल-कल लोरियां सुनते-सुनते शक्कर नींद सोया। होशंगाबाद की शरद सुबह मैंने प्रिय अशोक की भेंट की हुई ‘स्वेटर’ पहनी (पढ़ी) और लिखा –
दादी नानी ‘जमनानी’ कहानी सच्ची लगी।
‘दयाराम’ आज शरद सुबह ‘स्वेटर’ अच्छी लगी।
क्रमशः ….

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