पहला टुकड़ा – पूर्वी पाकिस्तान / 2
टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान / 3
प्रशांत पोळ
पहला टुकड़ा – पूर्वी पाकिस्तान / 2
जिन्ना का भाषण एक चिंगारी था, जिसने पूर्वी पाकिस्तान को आग की लपटों में ले लिया। पश्चिम पाकिस्तान के इस उर्दू थोपने के विरोध में सारा पूर्व बंगाल खड़ा हो गया। पूर्व बंगाल में उर्दू जानने वाले न के बराबर थे। सारी जनता बांग्ला बोलती थी। बांग्ला में लिखती थी। बांग्ला में पढ़ती थी। अनेक बांग्ला साहित्यकार, पूर्वी बंगाल से थे। ‘मेघनादवध’ लिखने वाले कवि और नाटककार माइकल मधुसूदन दत्त; प्रमुख बंगाली कवि कामिनी रॉय; उपन्यास, कहानियां और कविता के क्षेत्र में अपना मजबूत स्थान रखने वाले जीवनानंद दास; कवि, गीतकार, संगीतकार मुकुंद दास; प्रसिध्द बांग्ला लेखक और कहानीकार बुद्धदेव गुहा.. ये सब पूर्वी बंगाल से ही थे। पूर्वी बंगाल के कुछ बड़े शहरों में बांग्ला के अलावा थोड़ी हिन्दी बोली जाती थी। किन्तु उर्दू का कही नामोनिशान भी नहीं था।
ढाका के ‘उर्दू थोपने वाले’ भाषण के लगभग छह महीने बाद जिन्ना की मृत्यु हुई। किन्तु उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने ‘उर्दू राजभाषा’ की नीति को, पूरी शक्ति से लागू करना प्रारंभ किया।
इस उर्दू थोपने के विरोध में आंदोलन शुरू हुआ। प्रमुखता से ढाका विश्वविद्यालय इसका केंद्र बना। 21 फरवरी 1952 को ढाका मेडिकल कॉलेज और रमण पार्क के पास बांग्ला भाषा को समान अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन करने वाले विद्यार्थियों पर पाकिस्तानी पुलिस ने गोली चलाई।
पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान का यह संघर्ष और तेज हुआ, जब 1954 में पूर्व बंगाल लेजिस्लेटिव असेंबली (अर्थात – पूर्व बंगाल विधान सभा) के चुनाव हुए। यह चुनाव ऐतिहासिक रहे। इस चुनाव में ‘यूनाइटेड फ्रंट’ इस नाम से एक गठबंधन बना, जिसमे प्रमुखता से ‘अवामी लीग’ और ‘कृषक श्रमिक पार्टी’ शामिल थे। 8 और 12 मार्च 1954 को हुए इस चुनाव में यूनाइटेड फ्रंट गठबंधन को जबरदस्त विजय मिली। कुल 309 सीटों में से 223 स्थानों पर गठबंधन के उम्मीदवार चुन कर आए। अवामी लीग को 143 स्थानों पर जीत हासिल हुई।
इस चुनाव की मजेदार बात यानि, जिस ‘मुस्लिम लीग’ के कारण पाकिस्तान बना और जिस मुस्लिम लीग की स्थापना बंगाल में हुई थी, उसी मुस्लिम लीग को पूर्व बंगाल की जनता ने, मात्र सात वर्षों में, उखाड़ कर फेंक दिया। 309 सदस्यों के इस सदन में मुस्लिम लीग के मात्र 9 विधायक चुन कर आए। इस चुनाव तक, पूर्वी बंगाल के मुख्यमंत्री रहे मुस्लिम लीग के नुरुल अमीन को अपने ही चुनाव क्षेत्र में हार का मुंह देखना पड़ा। मुस्लिम लीग के सारे मंत्री हार गए।
चुनाव के बाद ‘कृषक श्रमिक पार्टी’ के ए.के. फजलूल हक मुख्यमंत्री बने। गठबंधन के सत्ता में आते ही साथ, उन्होंने पूर्वी बंगाल को संपूर्ण स्वायत्तता और बांग्ला को प्रदेश की राजभाषा बनाने की घोषणा की। पश्चिम पाकिस्तान के नेता इससे खीजना स्वाभाविक थे। उन्होंने मात्र दो महीने में ही इस चुनी हुई, बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त किया और मुख्यमंत्री फजलूल हक को नजरकैद में रखा।
इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। पूर्वी बंगाल में आंदोलनों की झड़ी लग गई। कराची में बैठे हुए पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं के विरोध में जनभावनाएं तीव्र होती गईं।
इस परिस्थिति से उबरने के लिए कुछ न कुछ करना आवश्यक था। पाकिस्तान में इस समय जबरदस्त असंतुलन था। कुल पांच प्रांत पाकिस्तान में थे – पंजाब, सिन्ध, बलूचिस्तान, नॉर्थ वेस्ट फ़्रंटियर प्रोविन्स (NWFP) और पूर्वी बंगाल। पूर्वी बंगाल यह भौगोलिक दृष्टि से सबसे बड़ा प्रांत था, और जनसंख्या में लगभग बचे हुए चार प्रांतों के बराबर था। लेकिन इतना सब होते हुए भी जो कुछ थोड़ा सा विकास पाकिस्तान में हो रहा था, वह कराची, लाहौर, पेशावर, रावलपिंडी आदि पश्चिमी पाकिस्तान के स्थानों तक ही सिमटा था। पाकिस्तान का लगभग आधा हिस्सा होने के बावजूद भी पूर्वी बंगाल यह उपेक्षा का दंश झेल रहा था..!
इसे दूर करने के लिए कराची में बैठे हुए नेताओं ने 1955 में कुछ बड़े निर्णय लिए, जो *‘वन यूनिट पॉलिसी’* के नाम से जाने जाते हैं। संयोग से यह निर्णय लेते समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, मुहम्मद अली बोगरा, जो मूलतः पूर्वी बंगाल से ही थे। यह ‘वन यूनिट पॉलिसी’ मूलतः पाकिस्तान के दो हिस्सों में निर्माण हुए प्रादेशिक असंतुलन को दूर करने के लिए बनाई गई थी। इसके अंतर्गत पूर्वी बंगाल का नाम, ‘पूर्वी पाकिस्तान’ कर दिया गया। पश्चिमी पाकिस्तान के सारे प्रांतों को, रियासतों को, कबीलों को बर्खास्त कर, ‘पश्चिम पाकिस्तान’ नाम से एक ही इकाई बनाई गई अर्थात यह नीति बनने के बाद, पाकिस्तान में दो ही इकाइयां रहीं –
1. पश्चिमी पाकिस्तान
2. पूर्वी पाकिस्तान
पूर्व पाकिस्तान के लोगों के लिए, उस इकाई में, बांग्ला को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
इस व्यवस्था के चलते पूर्व पाकिस्तान के लोग खुश नहीं थे, क्योंकि उनको पूर्ण स्वायत्तता नहीं मिली थी। उन्हें लग रहा था की कराची के निर्देशानुसार ही उन्हें चलना पड़ेगा। तो इधर ‘वन यूनिट पॉलिसी’ के अंतर्गत सभी राज्यों की विधानसभाएं भंग करने के कारण, पश्चिम पाकिस्तान में भी जबरदस्त आक्रोश उभरा, जो असंतोष में बदलने लगा।
असंतोष और आंदोलनों का यह क्रम 1958 तक चला। आखिरकार 7 अक्तूबर 1958 को पाकिस्तानी सेना ने इस पूरे प्रकरण में धमाकेदार एंट्री ली। देश में मार्शल लॉ लागू हुआ। देश की सारी प्रशासन व्यवस्था, सेना के जनरल अयूब खान के हाथों सिमट गई। बाद में तो, पाकिस्तान बनने के 20 वर्ष बाद और भारत से युद्ध में हारने के बाद, देश की राजधानी भी कराची से हटाकर, सेना के मुख्यालय, रावलपिंडी के पास, इस्लामाबाद में स्थापित की गई।
पाकिस्तान में प्रारंभ से ही अस्थिरता का दौर चलता रहा। अब मार्शल लॉ और सेना का शासन आने के बाद तो लोकतंत्र पूर्णतः डिब्बे में गया। अनेक नेताओं को जेल में डाला गया।
अभी तक, इस अस्थिर परिस्थिति के कारण, पाकिस्तान अपना स्वयं का संविधान नहीं बना सका था। वह अंग्रेजों के 1935 के कानून के अनुसार ही चल रहा था। किन्तु 1958 में सेना का शासन आने के बाद, संविधान पर काम चालू हुआ। 1962 में पाकिस्तान में, पाकिस्तान का संविधान लागू हुआ।
इधर पूर्वी पाकिस्तान के अवामी लीग ने, 1966 में अपने छह सूत्रीय मांगों को लेकर एक बड़ा आंदोलन छेड़ दिया।
पाकिस्तान के असंतोष का कारण स्पष्ट था। देश का सबसे बड़ा प्रांत, पूर्वी पाकिस्तान (अर्थात पूर्वी बंगाल) था। राजनीतिक रूप से यह प्रदेश अवामी लीग के पीछे मजबूती से खड़ा था। लेकिन पश्चिम पाकिस्तान में वैसा नहीं था। वहां पंजाब – सिन्ध – बलूचिस्तान – नॉर्थ वेस्ट फ़्रंटियर प्रोविन्स का आदिवासी क्षेत्र, इनमे अलग – अलग भाषाएं, अलग खान-पान, अलग वेशभूषा, अलग संस्कृति थी। इन सब के कारण पश्चिम पाकिस्तान की कोई सामूहिक पहचान और ताकत नहीं बनती थी और पाकिस्तान के दुर्भाग्य से, पश्चिमी पाकिस्तान के नेता, पूर्व पाकिस्तानियों पर राज करना चाहते थे। उन पर अपनी भाषा थोपना चाहते थे। उन पर उर्दू की लिपि थोपना चाहते थे। पूर्वी पाकिस्तान को, पश्चिमी पाकिस्तान, हमेशा अपने अधीन रखना चाहता था।
ऐसे में पाकिस्तान का टूटना अवश्यंभावी था…!
(क्रमशः)