सदियों बाद पावागढ़ कालिका माता मंदिर के शिखर पर लहराई धर्म ध्वजा

सदियों बाद पावागढ़ कालिका माता मंदिर के शिखर पर लहराई धर्म ध्वजा

सदियों बाद पावागढ़ कालिका माता मंदिर के शिखर पर लहराई धर्म ध्वजासदियों बाद पावागढ़ कालिका माता मंदिर के शिखर पर लहराई धर्म ध्वजा

सदियों बाद एक बार फिर से चम्पानेर के पावागढ़ मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा लहरा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को 5 सौ साल पहले कालिका माता मंदिर के तोड़े गए शिखर के पुनर्निर्माण के बाद ध्वज पताका फहराई। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि यह शिखर ध्वज केवल हमारी आस्था और आध्यात्मिकता का ही प्रतीक नहीं है बल्कि इस बात का भी प्रतीक है कि सदियां बदलती हैं, युग बदलते हैं, लेकिन आस्था का शिखर शाश्वत रहता है। वास्तव में कालिका माता के भक्तों के लिए यह दिन उनके आत्मसम्मान को वापस पाने जैसा था।

क्या है इतिहास

मुस्लिम आक्रमणकारी सुल्तान महमूद बेगड़ा ने 15 वीं शताब्दी में चम्पानेर पर हमले के दौरान इस मंदिर के शिखर को ध्वस्त कर दिया था और मंदिर के ऊपर पीर सदनशाह की दरगाह बना दी थी। तबसे यह मंदिर महमूद बेगड़ा की दुर्दांतता इस्लामिक कट्टरता की कहानी कह रहा था। टूटने के 5 सौ साल और स्वाधीनता के 7 दशक के बाद इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ और इसके शिखर पर ध्वजा फहराई गई। यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चम्पानेर के पावागढ़ में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर चम्पानेरपावागढ़ पुरातात्विक पार्क का हिस्सा है, जो यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। यहॉं हर वर्ष लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं। माना जाता है कि ऋषि विश्वमित्र ने पावागढ़ में देवी कालिका की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की थी। यह माता के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है।

कौन था मंदिर विध्वंसक महमूद बेगड़ा

महमूद बेगड़ा गुजरात का छठा सुल्तान था। उसका पूरा नाम अबुल फत नासिरउददीन महमूद शाह प्रथम था। वह 13 साल की आयु में गद्दी पर बैठा और 52 वर्ष (1459-1511 .) शासन किया। बेगड़ा बहुत ही क्रूर शासक था। जीत हासिल करने पर बंदी राजा से वह इस्लाम कुबूल करवाता था और मना करने पर मौत के घाट उतार देता था। इसी बेगड़ा ने अपने शासन में पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित महाकाली मंदिर और द्वारका के मंदिर को तोड़ने के आदेश दिए थे। पुर्तगाली यात्री बाबोसा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि बेगड़ा बहुत जहरीला था, उसे बचपन से ही धीमा जहर देकर पाला गया था। उसके शरीर पर मक्खी बैठने मात्र से मर जाती थी। जिस भी महिला से वह संसर्ग करता था वह मर जाती थी। ( बुक ऑफ ड्यूरेटे बाबोसा वॉल्यूम 1)

इटालियन यात्री लुडोविको डि वर्थेमा की पुस्तकइटिनेरारियो डी लुडोइको डी वर्थेमा बोलोग्नीजमें जहर खाने की बात का उल्लेख है। वर्थेमा लिखते हैं कि जब भी बेगड़ा को किसी को मारना होता था तो वह उस व्यक्ति के कपड़े उतरवा कर उसके सामने पान खाता था और थोड़ी देर बाद उस व्यक्ति पर थूक देता था। कुछ ही देर में उस व्यक्ति की मौत हो जाती थी।

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