संघ की प्रतिनिधि सभा – विश्व की एक अतुलनीय, देवदुर्लभ संसद

संघ की प्रतिनिधि सभा - विश्व की एक अतुलनीय, देवदुर्लभ संसद

संघ की प्रतिनिधि सभा – अंतिम भाग

नरेन्द्र सहगल

संघ की प्रतिनिधि सभा - विश्व की एक अतुलनीय, देवदुर्लभ संसद

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनधि सभा की वार्षिक बैठक एक ऐसी अद्भुत चिंतनशाला है जिसमें संगठन से सम्बंधित विषयों के साथ राष्ट्रहित के महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत चर्चा होती है। अर्थात संघ केवल संघ के बारे में ही नहीं सोचता। यहाँ देश की सुरक्षा, सामाजिक एकता, सर्वांगीण विकास, सांस्कृतिक उत्थान, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा जगत तथा जातिगत सौहार्द इत्यादि ज्वलंत समस्याओं पर भी चर्चा होती है।

इस तरह संघ की प्रतिनिधि सभा को ‘संघ संसद’ कहने में कोई भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। परन्तु ये संसद ऐसी इकाई नहीं है जिसके सदस्य बाहुबल, धनबल, छलकपट और चरित्र हनन जैसे हथियारों का इस्तेमाल करके अपने प्रतिद्वंदी को पटकनी देकर सांसद/ विधायक बनते हैं। इस तरह के नेता लोग अपने क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। ये केवल अपने ही समर्थकों, जी-हुजूरियों और वोट बैंक का ध्यान रखकर व्यवहार करते हैं। ये लोग राष्ट्रहित के मुद्दों पर चिंतन न करके अपने राजनितिक अस्तिव की ही चिंता करते है। इन्हें देश के भविष्य की कम, अपनी कुर्सी के भविष्य की चिंता अधिक होती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस वरिष्ठ इकाई को प्रतिनिधि सभा इसलिए कहते है क्योंकि इसमें अखिल भारत का चयनित प्रतिनिधित्व होता है। प्रतिस्पर्धा नहीं होती। राष्ट्र निर्माण के इस ईश्वरीय कार्य की सबसे बड़ी चिन्तनशाला अर्थात देव दुर्लभ संसद में संघर्ष, प्रतिस्पर्धा, एक दूसरे को नीचा दिखाकर आगे बढ़ना, नारेबाजी इत्यादि वर्तमान समय के रीतिरिवाजों के कहीं दर्शन नहीं होते। यहाँ तो मनुष्यता के सर्वोच्च गुण प्रेम, सहयोग, सहानभूति, कर्तव्य पालन, ध्येय निष्ठा इत्यादि के साक्षात दर्शन होते हैं। स्पर्धा यहाँ भी होती है परन्तु पद की नहीं अपितु कार्य के विस्तार की होड़ लगती है।

संघ की इस वार्षिक बैठक में (मेरे शब्दों में देव सम्मलेन) जो प्रस्ताव पारित होते हैं वह भी संस्था केन्द्रित न होकर राष्ट्र केन्द्रित होते हैं। संघ का काम व्यक्ति, संस्था, आश्रम, भाषा, जाति और क्षेत्र आधारित नहीं है। संघ की समस्त कार्यपद्धति विशेषतया बैठकों में केंद्रबिंदु राष्ट्र ही रहता है। इसलिए यहाँ व्यक्तिगत स्पर्धा (नेतागिरी) का नामोनिशान नहीं है। प्रतिनिधि सभा की वार्षिक बैठक में पारित होने वाले प्रस्तावों के विषयों का सीधा सम्बन्ध संघ के उद्देश्य राष्ट्र का परम वैभव अर्थात सर्वांगीण विकास के साथ ही होता है। किसी राजनीतिक दल के वोट बैंक, चुनाव में उसकी हार जीत अथवा सत्ता से गिराने या सत्ता से चिपकने की संभावनाओं के मद्देनजर प्रस्ताव पारित नहीं किये जाते है। इसका मूल कारण यही है कि प्रतिनिधि सभा में भारतवर्ष का प्रतिनिधित्व होता है। प्रान्त और क्षेत्र की चिंता नहीं होती। यहाँ राष्ट्र की एकात्मता पर चिंतन होता है।

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में व्यक्तिओं को तोड़ने का नहीं अपितु जोड़ने का काम होता है। एक दूसरे का अपमान नहीं सम्मान होता है। प्रतिनधि सभा के समक्ष चर्चा हेतु रखे जाने वाले प्रस्तावों पर एक क्रमबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से विचार विनिमय होता है। पहले इन प्रस्तावों के विषयों पर अखिल भारतीय कार्यकारणी में चर्चा होती है। फिर अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल में चर्चा होती है। इसके बाद इन प्रस्तावों को प्रतिनधि सभा में प्रस्तुत करके इन पर बहुत विस्तार से मनन होता है। यही कारण है कि यहाँ मतदान की नौबत नहीं आती। बस एक ऊँची ॐ ध्वनि के साथ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हो जाते हैं।

किसी की जय पराजय नहीं होती। प्रस्ताव पारित हो जाने के बाद चर्चा पूर्णतयः समाप्त हो जाती है। बैठक के अंतिम दिन संघ के सरकार्यवाह विधिवत प्रेसवार्ता में इन प्रस्तावों की पृष्ठभूमि एवं उद्देश्य को समस्त भारतवासियों के समक्ष रख देते हैं। वर्तमान समय में प्रचलित संसदीय प्रणाली के विशाल स्वरुप का अनूठा, अद्भत एवं अतुलनीय उदहारण है, ये देव दुर्लभ संसद।

…समाप्त

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