फिल्म पृथ्वीराज: एक शौर्य गाथा

फिल्म पृथ्वीराज: एक शौर्य गाथा

के. विक्रम राव

फिल्म पृथ्वीराज: एक शौर्य गाथा फिल्म पृथ्वीराज: एक शौर्य गाथा

फिल्म : सम्राट पृथ्वीराज चौहान

कलाकार : अक्षय कुमार, संजय दत्त, मानुषी छिल्लर, सोनू सूद, आशुतोष राणा

डायरेक्टर : चंद्र प्रकाश द्विवेदी

बैनर : यशराज सिनेमा

भाषा : हिन्दी, तेलुगू, तमिल

अन्तत: फिल्म ”सम्राट पृथ्वीराज चौहान” प्रदर्शित (2 जून 2022) हो गयी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी दर्शकों में थे। लोकभवन सभागार में विशेष शो रहा। अक्षय कुमार भी उपस्थित रहे। पिछले बारह साल से यह फिल्म अधर में लटकी रही। राजपूत ”करनी सेना” की मुकदमेबाजी विशेष कारण रहा, कथानक को लेकर। फिर कोविड ने भी बाधित कर दिया था।

फिल्म का मुख्य आकर्षक है, डॉ. चन्दप्रकाश द्विवेदी द्वारा लिखित कथानक और संवाद। उनका ”चाणक्य” टीवी धारावाहिक अतीव जनप्रिय हुआ था। पृथ्वीराज रासो कृति पर आधारित यह ऐतिहासिक फिल्म मध्यकालीन भारतीय गौरव की याद दिलाती है। विशेषकर चन्दबरदाई (रोल में सोनू सूद) के संवादों में काव्यमयता के पुट के कारण। प्रकरण जाना माना है, संदर्भ भी। किन्तु फिल्म में एक विशेष संदेश भी है। भारत के इतिहास के छात्रों को इस माध्यम से बताया गया कि किस तरह अरबी डाकुओं के चलते धर्मप्राण हिन्दू शासकों को इस्लामी फरेब, छल, धोखे, विश्वासघात और अमानवीय नृशंसता का शिकार होना पड़ा। मंदिर—मस्जिद के विवाद के परिवेश में यह बड़ा समीचीन है। इस ऐतिहासिक दानवता पर भारत के मुसलमानों को स्व-विश्लेषण करना चाहिये। उन्हें राष्ट्रीय बनना है। यदि न हो पाये तो भारत उनकी स्वभूमि कभी नहीं हो पायेगी। भारत का इतिहास यदि विजेताओं का है तो अंग्रेजों को हराकर अब वह बदल गया है। यह तथ्य है। नया भारत सभी को मानना होगा। स्वाधीनता का यही तकाजा है।

समूची फिल्म में चन्दबरदाई की भूमिका में सोनू सूद खिल जाते हैं। ​डॉ. द्विवेदी ने उनका रोल राष्ट्रीयता से आप्लावित कर दिया है। शाकंभरी (सांभर) के राजा कवि और साहित्यकार विग्रह राय के भतीजे थे पृथ्वीराज। दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट। शूरवीर थे। मर्यादाशील थे। मुहम्मद गोरी को कई बार पराजित कर चुके थे। गोरी का कभी भी नीति, ईमान और उसूलों से वास्ता—नाता नहीं रहा। तराईन के युद्ध में वह पृथ्वीराज को अंधेरे में छल से पकड़ लेता है। फिर गोरी राज में कैसे राजा और चन्दबरदाई का अंत हुआ, सबका पढ़ा हुआ है। फिल्म का कथानक अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत हुआ है। रूपान्तरण में पटकथा को परिशोधित किया गया है। मान्यताओं के अनुसार घटनाओं को पिरोया गया है।

जयचन्द का रोल बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित हुआ है। आज भी जयचन्द की भूमिका में चीन और पाकिस्तान के एजेन्टों के रूप में एक धारदार जन चेतावनी है। अदाकार आशुतोष राणा का जयचन्द के रूप में संयोगिता से राजपूतानी गौरव के नाम पर पिता होकर भी निर्दयता करना बहुत ही मर्मस्पर्शी तरीके से सामने आया है।

पूरी फिल्म वही प्रश्न उठाती है जो अटल बिहारी वाजपेयी कई बार जनसभाओं में कह चुके हैं। जब वे मोरारजी देसाई कैबिनेट के विदेश मंत्री थे तो इन अरब हमलावरों के प्रदेश में गये थे। वे काबुल की यात्रा पर थे। गजनी जाना चाहते थे। पर अफगान सरकार ने कहा वहां ठहरने लायक होटल भी नहीं है। फिर भी अटलजी गये। लौटकर श्रोताओं को बताया कि गजनी वीरान, गरीब प्रदेश है। बंजर, बीहड़।

मगर मध्यकाल में कोई भी ताकतवर डाकू सरदार झुण्ड को बटोरकर, सोने की चिड़िया का लालच बताकर सेना गठ लेता था। फिर इन लुटेरों को प्रेरित भी किया जाता रहा कि जीतोगे तो अथाह दौलत, मरे तो बहत्तर हूरें तो मिलेंगी ही।

यही भारत का अभिशाप रहा। अटलजी ने झांसी में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई का उल्लेख करते एक बार एक त्रासद बात कही थी। इससे हर गर्वित भारतीय का सर शर्म से झुक जाता है। अटलजी ने कहा था कि रानी और ब्रिटिश के संग्राम को बड़ी संख्या में तमाशबीन (झांसी की जनता) खड़े निहारते रहे थे। यही भारत में होता रहा। ”को नृप होय हमें का हानि”, वाली उक्ति ही इस अपराधी निष्क्रियता और तटस्थता का कारण रहा। विदेशी आक्रामक लूटते रहे। अत्याचार करते रहे। कन्वर्जन कराते रहे। अधिकांश जनता मूकदर्शक बनी रही। यह फिल्म उस सोच को बदलने की दिशा में एक प्रयास है।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *