फील्ड मार्शल करिअप्पा

फील्ड मार्शल करिअप्पा

फील्ड मार्शल करिअप्पा के 28 जनवरी – जन्म दिवस पर विशेष आलेख   

प्रहलाद सबनानी

फील्ड मार्शल करिअप्पा

फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा (केएम) करिअप्पा के साथ बहुत “प्रथम” शब्द जुड़े हैं। वे भारत के प्रथम ऐसे नागरिक थे जिन्हें भारतीय सेना की कमान मिली थी। वे भारत के प्रथम सेनाध्यक्ष नियुक्त हुए थे। वे ‘प्रथम कमांडर इन चीफ’ बने थे। वे भारत के दो फील्ड मार्शलों में से एक थे। उन्होंने वर्ष 1947 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी सीमा पर भारतीय सेना का नेतृत्व किया एवं 15 जनवरी 1949 में उन्हें भारत का सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था। इसी विशेष दिवस को भारत में सेना दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा है। उन्हें ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर, मेन्शंड इन डिस्पैचेस और लीजियन ऑफ मेरिट जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया गया था। करिअप्पा को दिनांक 14 जनवरी 1986 को फील्ड मार्शल रैंक प्रदान की गई। यह एक पांच सितारा अधिकारी रैंक होने के साथ ही भारतीय सेना में सर्वोच्च प्राप्य रैंक है। यह एक औपचारिक एवं युद्धकालीन रैंक है, जिसे भारत में आज तक केवल दो बार प्रदान किया गया है। सैम मानेकशॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल थे, उन्हें 1 जनवरी 1973 में फील्ड मार्शल रैंक प्रदान कर सम्मानित किया गया था।

केएम करिअप्पा का जन्म 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के पूर्ववर्ती कुर्ग में शनिवर्सांथि नामक स्थान पर हुआ था। इस स्थान को अब ‘कुडसुग’ नाम से जाना जाता है। उनके पिता कोडंडेरा माडिकेरी में एक राजस्व अधिकारी थे। करिअप्पा की प्रारम्भिक शिक्षा माडिकेरी के सेंट्रल हाई स्कूल में हुई। वह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे, किन्तु गणित, चित्रकला उनके प्रिय विषय थे। एक होनहार छात्र के साथ-साथ वह क्रिकेट, हॉकी, टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी रहे।

केएम करिअप्पा ने सेना में अपने करियर की शुरुआत भारतीय-ब्रिटिश फौज के राजपूत रेजीमेंट में सेकेंड लेफ्टीनेंट के पद पर नियुक्ति के साथ की। वर्ष 1953 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्हें ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भारत का राजदूत बनाया गया। उन्होंने अपने अनुभवों के चलते कई देशों की सेनाओं के पुनर्गठन में भी सहायता की। भारत सरकार ने वर्ष 1986 में उन्हें ‘फील्ड मार्शल’ के गौरव से सम्मानित किया। दिनांक 15 मई 1993 को 94 वर्ष की आयु में बैंगलुरु में उनका निधन हो गया।

करिअप्पा की मां भारती के प्रति अगाध श्रद्धा थी एवं वे भारतीय संस्कृति का किस प्रकार पालन करते रहे, इस सम्बंध में उनके जीवन से जुड़ा एक प्रसंग सदैव याद किया जाता है। बात वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध की है। करिअप्पा सेवानिवृत्त होने के पश्चात कर्नाटक के अपने गृहनगर में रह रहे थे। उनका बेटा केसी नंदा करिअप्पा उस समय भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर कार्यरत था। भारत पाक युद्ध के दौरान उनका विमान पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गया, जिसे पाक सैनिकों ने गिरा दिया। नंदा ने विमान से कूदकर अपनी जान तो बचा ली, परंतु पाक सैनिकों की गिरफ्त में आ गए।

उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे, जो कभी केएम करिअप्पा के अधीन भारतीय सेना में कार्यरत रह चुके थे। उन्हें जैसे ही श्री नंदा के पकड़े जाने का पता चला उन्होंने तत्काल केएम करिअप्पा को फोन कर बताया कि वह उनके बेटे को रिहा कर रहे हैं। करिअप्पा ने अपने बेटे का मोह त्याग कर अयूब खान को कहा कि वह केवल मेरा बेटा नहीं, भारत मां का महान सपूत है। उसे रिहा करना तो दूर कोई विशेष सुविधा भी मत देना। उसके साथ आम युद्धबंदियों जैसा बर्ताव करें। करिअप्पा ने अयूब खान से आग्रह किया कि वे समस्त भारतीय युद्धबंदियों को रिहा करें न कि केवल मेरे बेटे को।

फील्ड मार्शल  करिअप्पा में देश के प्रति समर्पण का भाव कूट कूट कर भरा था। इसलिए वे मां भारती के महान सपूत के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। वर्ष 1959 में करिअप्पा मंगलोर में संघ की शाखा के एक कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। उन्होंने स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि संघ द्वारा समर्पित भाव से किए जा रहे कार्य मुझे अपने हृदय से प्रिय कार्यों में से ही कुछ कार्य लगते हैं। यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति इस्लाम की प्रशंसा कर सकता है, तो संघ के हिंदुत्व का अभिमान रखने में गलत क्या है। उन्होंने अपने सम्बोधन में  स्वयंसेवकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा था प्रिय युवा मित्रो, आप किसी भी गलत प्रचार से हतोत्साहित न होते हुए संघ का कार्य करते रहें। डॉ. हेडगेवार ने आपके सामने एक स्वार्थरहित कार्य का पवित्र आदर्श रखा है। उसी पर आगे बढ़ते चलें। भारत को आज आप जैसे ही सेवाभावी कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। (संदर्भ श्री के आर मलकानी द्वारा लिखित “हाउ अदर्स लुक ऐट द आरएसएस”, दीनदयाल रीसर्च इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली)।

संघ और जनरल करिअप्पा दोनों एक दूसरे के शुभचिंतक और प्रशंसक ही रहे हैं। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के जनरल करिअप्पा के साथ स्नेहपूर्ण सम्बन्ध थे। 21 नवम्बर 1956 को वे आपस में एक दूसरे से मैसूर में मिले थे और उस समय भाषा के प्रश्न पर श्री गुरूजी के विचार सुनकर  करिअप्पा बहुत प्रभावित हुए थे। 13 वर्ष बाद, 1969 में श्री गुरुजी के निमंत्रण पर श्री करिअप्पा उडुपी के विश्व हिन्दू परिषद के सम्मेलन में भी उपस्थित रहे थे। यह वही सम्मेलन है, जहां सभी संतों और मान्यवरों ने अस्पृश्यता को सिरे से नकारा था।

फील्ड मार्शल करिअप्पा के साथ ही भारत के प्रथम फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के भी उनके मृत्यु पर्यन्त तक संघ से सघन सम्बंध रहे हैं। संघ स्वयंसेवकों को उन्होंने सदैव ही सम्मान की दृष्टि से देखा और संघ के स्वयंसेवकों द्वारा समाज में किए जा रहे सेवा कार्य की सदैव सराहना की है। संघ के कार्य को तो आप दोनों ने ही देश में अनुशासन का पर्याय बताया है।

आज दिनांक 28 जनवरी को फील्ड मार्शल करिअप्पा को उनके जन्म दिवस पर सादर नमन।

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