कृष्ण लीलाओं के साक्षी बृज के पर्वत अवैध खनन के चलते संकट में

कृष्ण लीलाओं के साक्षी बृज के पर्वत अवैध खनन के चलते संकट में

कृष्ण लीलाओं के साक्षी बृज के पर्वत अवैध खनन के चलते संकट में

भरतपुर। भारत के बहुसंख्यक समाज के लिए यह अत्यंत विषाद का विषय है कि स्वतंत्रता के दशकों बाद भी उसे अपने आस्था केंद्रों को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। विदेशी आक्रांताओं ने तो भारतीय संस्कृति और हिन्दू आस्था स्थलों को नुकसान पहुंचाया ही, लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार के चलते स्वतंत्र भारत की सरकारों ने भी बहुसंख्यक समाज के आस्था स्थलों – चाहे वे मन्दिर हों, पहाड़ या नदियॉं – की सुध नहीं ली।

दिल्ली से कोई सवा सौ किमी दूर है बृज क्षेत्र। वही बृज क्षेत्र जो कभी भगवान कृष्ण की लीला स्थली था, जहॉं कभी माखन चोर की बांसुरी के सुर गूंजा करते थे। वह क्षेत्र जो चौरासी कोस के दायरे में फैला है, जहॉं की पहाड़ियों की परिक्रमा कर लोग स्वयं को धन्य मानते हैं। ऐसी ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व की ये पहाड़ियॉं आज वैध / अवैध खनन व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। इन्हें बचाने के लिए संतों के नेतृत्व में हिन्दू समाज वर्षों से संघर्ष कर रहा है।

राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में फैली बृज क्षेत्र की अधिकांश पहाड़ियॉं राजस्थान के भरतपुर जिले में आती हैं। यहॉं पहली बार 1989 में सरकार की ओर से पत्थर व्यवसायियों को कुछ पहाड़ियों के खनन का पट्टा दिया गया। पट्टा इस शर्त पर दिया गया था कि पत्थर व्यवसायी खदान की स्पष्ट रूप से सीमाबंदी करेंगे और पत्थर निकालते समय कचरे और धूल-धुएं के निपटारे तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण सहित अन्य सभी कदम उठाएंगे जिनका पट्टे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था। पट्टा मिलते ही पत्थर व्यवसायियों ने बृज की पहाड़ियों पर अपना शिकंजा कसना शुरू किया। पट्टे की शर्तों को धता बताते हुए उन्होंने डायनामाइट और बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग करना शुरू कर दिया ताकि कम समय में अधिक से अधिक पत्थर निकाला जा सके। लेकिन भ्रष्टाचार के चलते खनन माफियाओं पर कोई अंकुश नहीं लगाया गया, जिससे अवैध खनन को भी बढ़ावा मिला। परिणामस्वरूप भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी कई दिव्य पहाड़ियों को नष्ट कर दिया गया। बृजवासियों ने जब यह देखा तो उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। न्यायालय ने 24 फरवरी, 2004 को इस मामले में एक जांच समिति का गठन किया। जांच समिति की रिपोर्ट और संबंधित पक्षों की बात सुनने के बाद 18 मई, 2004 को न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा, “हम इस बात से बेहद नाराज हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति लिए बिना जो अवैध खनन हो रहा है उसे राजस्थान सरकार प्रश्रय दे रही है। पर्यावरण संवेदनशील खनन प्रक्रिया को लागू करने के अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में राज्य सरकार पूर्ण रूपेण असफल रही है। इन हालातों में हम राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वह कानून के अनुसार कार्यवाही करे और कानून की अवहेलना करके व केंद्रीय सरकार के 27 जनवरी 1994 व 10 जून 2003 की अधिसूचना की उपेक्षा करके जो खनन हो रहा है उसे तुंरत रोके। यह स्पष्ट है कि राजस्थान सरकार हमारे आदेशों के अनुपालन में असफल रही है और उसने अवैध खनन होने दिया है। समूचा प्रदेश पानी की कमी से ग्रसित है। इस प्रकार की खनन गतिविधियाँ पानी के स्रोतों को भी प्रभावित करेंगी। इस सबके बावजूद राज्य सरकार ने पर्यावरण के विनष्टीकरण को रोकने की दिशा में कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठाया है। न केवल पर्यावरण अपितु विरासत को भी इस खनन से खतरा पैदा हो गया है। भरतपुर जिले की कामां तहसील में 5 प्रसिद्ध जैन मन्दिरों के अलावा भगवान श्रीकृष्ण का एक मन्दिर है और सुप्रसिद्ध व्योमासुर गुफा भी है। इन स्थलियों को हर कीमत पर बचाया जाना चाहिए। राज्य सरकार की असंवेदनशीलता के कारण पर्यावरण को अप्रतिम क्षति पहुंची है।”

इस पर राजस्थान सरकार ने 27 जनवरी, 2005 को एक आदेश निकाला कि बृज चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग से 500 मीटर दूर तक कोई खनन न किया जाए। लेकिन खनन का विरोध कर रहे संतों और बृजवासियों का कहना था कि बृज चौरासी कोस परिक्रमा का कोई निर्धारित मार्ग नहीं है। हर सम्प्रदाय अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग मार्ग का अनुसरण करता है। बृज के सभी पर्वतों की परिक्रमा वर्ष भर होती रहती है। परिक्रमा मार्ग भी इसी अनुसार बदलता रहता है। लेकिन सरकार ने आंदोलनकारियों की बात को तो अनदेखा किया ही, खनन माफिया के हावी होने के चलते वह अपने इस आदेश की पालना में भी असफल रही। यह देखते हुए संत समाज के नेतृत्व में बृजवासियों ने आंदोलन करने का निर्णय लिया। 4 अप्रैल, 2005 को भरतपुर जिले के गांवों के 6000 से अधिक ग्रामवासियों ने भारी प्रदर्शन किया। आंदोलन कई दिनों तक चलता रहा। 21 अप्रैल को ग्रामवासियों और खान माफिया के बीच संघर्ष हुआ। निहत्थे ग्रामवासियों पर गोली चलाई गई, जिसमें कुछ लोग घायल भी हो गए। बृजवासियों के आंदोलन ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी ध्यान खींचा। बोर्ड की एक टीम ने पूरे बृज क्षेत्र, जिसमें भरतपुर जिले की डीग व कामां तहसीलें भी शामिल हैं, में हो रही खनन गतिविधियों का मुआयना किया और अपनी 14 नवम्बर 2005 की रिपोर्ट में बृज के खनन के संबंध में अनेक संस्तुतियां दीं। जैसे खनन से सम्बंधित सभी गतिविधियों को रोका जाए, खनन कर पत्थर निकाल लिए गए पहाड़ों में मिट्टी भरकर पौधारोपण किया जाए, पूरे क्षेत्र के पर्यावरण प्रबंधन और उसको लागू करने के लिए एक वृहद् योजना बनाई जाए आदि। लेकिन अब तक दिए गए अन्य निर्देशों एवं नियमों की तरह इन निर्देशों की भी पालना नहीं हुई।

बृजवासियों का आंदोलन आज भी चल रहा है। कई बार धरने प्रदर्शन हुए। शुक्रवार को भी क्षेत्र के साधु संत एकजुट हुये, उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम ज्ञापन सौंपा और अवैध खनन बंद नहीं होने पर अप्रैल में अनशन करने की चेतावनी भी दी।

साधु संतों ने कहा कि कृष्ण भगवान की लीला स्थली रहे बृज इलाके में अवैध खनन कर पहाड़ियों को ख़त्म किया जा रहा है। इसके विरुद्ध क्षेत्र के साधु संत व बृजवासी वर्ष 2006 से आंदोलन कर रहे हैं, फिर भी सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी हैं और खनन जारी है। यदि अब भी खनन बंद नहीं हुआ तो अप्रैल में अन्न जल त्यागकर अनशन शुरू किया जायेगा।

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