भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी स्वतंत्रता

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी स्वतंत्रता

वीरेन्द्र पांडेय

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी स्वतंत्रता
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी किसी भी राष्ट्र की प्रगति का पैमाना होती है। भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर यह अमृत महोत्सव वर्ष है। इसलिए इस अवसर पर आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के योगदान को हमें याद करना चाहिए। इन 75 वर्षों के दौरान, भारत ने अंतरिक्ष, रक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कृषि जैसे, कई क्षेत्रों में अपनी वैज्ञानिक क्षमता साबित की है। यह युग भारत के आत्मनिर्भर तकनीकी राष्ट्रवाद का है। आज भारत स्वाभिमान के साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्वदेशी आत्मनिर्भर तकनीकी का विकास कर रहा है।
अपने पहले ही प्रयास में मंगलयान से मंगल ग्रह पर पहुंचने और उन्नत युद्ध तथा रक्षा प्रणालियों के स्वदेशी डिजाइन और विकास क्षमता हासिल करने वाला, भारत पहला देश बन गया है। अभी हाल ही में जब कोविड महामारी ने दुनियाभर में त्राहिमाम मचाया था, तो भारत ने स्वदेशी रूप से एक नहीं, बल्कि दो दो टीके विकसित करके देश को महामारी से सुरक्षा दी और एक वर्ष के भीतर अपनी 75% से अधिक जनसंख्या का सफलतापूर्वक टीकाकरण किया।
भारत ने वर्षों से, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की एक यात्रा तय की है और नागरिक सुविधाओं के साथ-साथ अंतरिक्ष, रक्षा, परमाणु ऊर्जा और सुपर कंप्यूटर जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अपनी प्रौद्योगिकियों को विकसित किया है। रक्षा के क्षेत्र में भारत ने विविध मिसाइल, रॉकेट सिस्टम, दूर से चलने प्रक्षेपास्त्र, हल्के लड़ाकू विमान आदि विकसित किए हैं। ब्रह्मोस की रणनीतिक तकनीक भारतीय कौशल का एक बड़ा उदाहरण है। परमाणु ऊर्जा  के लिए कच्चे माल के साथ साथ प्रौद्योगिकी की पूरी श्रृंखला आत्मनिर्भरता के आधार पर विकसित हुई है।
स्वदेशी तकनीकी क्षमतायुक्त उपग्रहों  के विकास में प्रक्षेपण यान SLV, ASLV, PSLV से GSLV तक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को विकसित किया गया है। भारत की पहली मून ऑर्बिटर परियोजना चंद्रयान -1, मार्स ऑर्बिटर मिशन या यहां तक कि हाल ही में 20 उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण सुदृढ़ होती टेक्नोलॉजी का प्रस्तुतीकरण है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत अब दुनिया के उन मुट्ठी भर देशों में शामिल है जिनके पास अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक विश्वसनीय क्षमता है। भारत की सुपर कंप्यूटर यात्रा तब शुरू हुई, जब अस्सी के दशक के मध्य में CRAY सुपर कंप्यूटर ने भारत को तकनीकी देने से इनकार कर दिया। 1998 में, सी-डैक ने परम लॉन्च किया, जिसने 100-गीगा फ्लॉप मशीनों के निर्माण कर भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया।
आज हम दुनिया के लिए सबसे सस्ते (लगभग 40 गुना सस्ता) व गुणवत्तायुक्त विश्व स्तरीय अनेकों प्रकार के टीके का निर्माण करते हैं। हमारे यहां सबसे सस्ते (300% कम कीमत पर) उच्च गुणवत्ता के कृत्रिम पैर का निर्माण किया जाता है। हमारे यहां बनी ईसीजी मशीनें विश्व बाजार से 20 गुणा सस्ती है। जेनेरिक दवाओं से लेकर ऑटो उद्योग में हम बहुत अच्छा कर रहे हैं।
भारतीय उद्योग एक वर्ल्ड लीडर की तरह ‘मितव्ययी नवाचार’ अथवा ‘किफायती उत्कृष्टता’ कर रहा है। आज भारत अनेकों प्रकार के अनुसंधान, खोज में तकनीकी राष्ट्रवाद से भरा हुआ दिखाई पड़ रहा है। हाल में चंद्रयान-2 के असफल होने पर इसरो प्रमुख का भावुक हो देश के नेतृत्व से गले लग जाना, यह दर्शाता है कि भारत अब बहुत गंभीरता और भावुकता से अपने मिशन को पूरा करने में लगा है। वहीं देश का नेतृत्व भी वैज्ञानिक नम्बी नारायण जैसे देशभक्तों को पद्म विभूषण से सम्मानित कर रहा है। जो इसके सच्चे हकदार हैं। इसलिए भारत में विकसित हो रही विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रभावी स्वदेशीकरण व्यवस्था स्वागत एवं अभिनंदन की हकदार है।
(लेखक मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान,  जयपुर में कार्यरत हैं)
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