भारत नाम पर विवाद क्यों?
जो लोग देश का नाम भारत होने का विरोध कर रहे हैं, उन्हें यह विचार करना चाहिए कि जब देश के संविधान के प्रथम पृष्ठ पर इंडिया और भारत दोनों हैं तो भारत नाम पर विवाद क्यों?
इंडिया और भारत पर अभी बहस चलती रहेगी। लेकिन संसद के विशेष सत्र में ऐसा कोई बिल नहीं लाया जा रहा, जो इंडिया को बदलकर भारत कर दे। ऐसा संकेत सरकार ने दिया है कि जो व्यवस्था संविधान में पहले से है उसके लिए कोई बिल लाने की आवश्यकता नहीं है। सरकार ने अभी तक नहीं बताया कि संसद के सत्र में कौन कौन से बिल आएंगे। परंतु जानकारी के अनुसार ऐसा कोई बिल नहीं लाया जाएगा, जिसमें दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता पड़े। सरकार का उद्देश्य पुरानी संसद को विदाई देना और गणेश चतुर्थी के दिन नई संसद में प्रवेश करना है।
लगभग सवा सौ वर्ष पहले एक अंग्रेज एओ ह्यूम ने भारत में इंडियन नेशनल कांग्रेस का गठन किया था। जिसे हिन्दी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कहा गया। स्वतंत्रता के बाद बनी पार्टी का नाम भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी रखा गया। दोनों के साथ हिन्दी में भी भारतीय और अंग्रेजी में भी भारतीय ही लिखा गया और अब विडंबना यह है कि देश में भारत बनाम इंडिया पर बहस चल रही है। हमें इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया का समय भी याद है, जब एक व्यक्ति को ही इंडिया मान लिया गया था।
भारत और इंडिया को लेकर जितनी भी चर्चाएं होंगी, वे सदन के बाहर राजनीतिक मंचों पर और न्यूज चैनल्स पर चलेंगी। हम अनुमान लगा सकते हैं कि भारत कितनी तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है कि भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी लोग कभी तुलसीदास जी, कभी रामायण, कभी हिन्दू तो कभी सनातन धर्म का विरोध करते करते आज भारत और इंडिया तक आ पहुंचे हैं। हमें स्वयं यह विचार करना चाहिए कि हम विरोध किसका कर रहे हैं और क्यों ??
बहुत ही सटीक जानकारी मिली इस वेबसाइट पर।
जिस विषय पर विवाद की आवश्यकता ही नहीं, उस पर विवाद होना सोचनीय है….