मतांतरण एक षड्यंत्र

मतांतरण एक षड्यंत्र

डॉ. नीलम महेंद्र

मतांतरण एक षड्यंत्र

कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश में लगभग एक हजार लोगों के मतांतरण का मामला सामने आया था। रिपोर्ट्स के अनुसार इन लोगों में मूक बधिर बच्चों से लेकर युवा और महिलाएं भी शामिल हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मतांतरित लोगों में अधिकतर पढ़े लिखे युवा थे। सरकारी नौकरी करने वाले से लेकर बीटेक कर चुका शिक्षक और एमबीए पास युवक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, एमबीबीएस डॉक्टर तक शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश में मतांतरण के विरुद्ध 2020 में ही एक सख़्त कानून लागू कर दिया गया था। लेकिन हमारे देश में मतांतरण की समस्या केवल एक प्रदेश तक सीमित नहीं है। देश के विभिन्न राज्यों में जबरन व धोखाधड़ी से मतांतरण के मामले सामने आना सामान्य हो गया है। हमारे देश में मतांतरण की समस्या काफी पुरानी है। यही कारण है कि इस विषय में महात्मा गांधी कहते थे कि “मैं विश्वास नहीं करता कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का मतांतरण करे। दूसरे के धर्म को कम करके आँकना मेरा प्रयास कभी नहीं होना चाहिए। मेरा मानना है कि मानवतावादी कार्य की आड़ में मतांतरण रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।”

दरसअल, कभी मानवता के नाम पर तो कभी गरीबी और लाचारी का फायदा उठाकर, कभी बहला फुसलाकर तो कभी लव जिहाद के धोखे से हमारे देश में बड़ी तादाद में लोगों को मतांतरित कराया जाता रहा है। किंतु उत्तर प्रदेश के ताजा घटनाक्रम से विषय की संवेदनशीलता इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि अब तक अधिकतर गरीब मजलूम और कम पढ़े लिखे लोग ही मतांतरण का शिकार होते थे। लेकिन इस बार मतांतरण करने वाले लोगों में पढ़े लिखे डॉक्टर, इंजीनियर और एमबीए डिग्रीधारक युवा हैं।

यहाँ कुछ कथित उदारवादी यह तर्क दे सकते हैं कि धर्म अथवा पंथ एक निजी मामला है और हर किसी को अपना पंथ चुनने का अधिकार है, तो प्रश्न यह कि मूक और बधिर बच्चे भी क्या उनकी इस परिभाषा के दायरे में आते हैं? प्रश्न यह भी कि अगर कोई एक व्यक्ति अपना धर्म अथवा पंथ बदलता है तो वो उसका निजी मामला हो सकता है, लेकिन जब लगभग एक हज़ार लोग मतांतरण करें तो भी क्या वो निजी मामला रह जाता है? एक व्यक्ति की आस्था बदलना उसका निजी मामला हो सकता है, लेकिन सुनियोजित रूप से एक हज़ार लोगों की आस्था में परिवर्तन निजी मामला कतई नहीं हो सकता, क्योंकि आस्था में परिवर्तन के साथ जिस मतांतरण को अंजाम दिया जाता है वो कहानी का अंत नहीं शुरुआत होती है। एक सुनियोजित षड्यंत्र शुरू होता है नाम बदलने के साथ, लेकिन यह व्यक्तित्व और विचार भी बदल देता है। जब कोई आदित्य अब्दुल्ला बनता है या बनाया जाता है तो सिर्फ नाम ही नहीं खान-पान और पहचान भी बदल जाती है। उपासना पद्धति ही नहीं बदलती, उसके त्योहार और उसकी आस्था भी बदल जाती है। अभी कुछ दिन पहले ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश में सामने आया था, जब एक महिला की मृत्यु के बाद उसके बेटे ने हिंदू रीति रिवाज से उसका अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था क्योंकि उसने मतांतरण कर लिया था। जाहिर है इस प्रकार की घटनाएं समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

यही कारण है कि इस विषय में स्वामी विवेकानंद का कहना था कि एक हिंदू का मतांतरण केवल एक हिंदू का कम होना नहीं, बल्कि एक शत्रु का बढ़ना है और शायद उनके इस कथन का उत्तर प्रदेश के इस मामले से बेहतर कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। क्योंकि इस मामले को देखें तो घटना का मुख्य आरोपी उमर गौतम स्वयं मतांतरण से पूर्व श्याम प्रसाद सिंह गौतम था, जिसने लगभग एक हज़ार लोगों को मतांतरित किया। इस व्यक्ति का एक तथाकथित वीडियो सामने आया है, जिसमें वह स्वयं स्वीकार कर रहा है कि वह कैसे मतांतरित होकर श्याम प्रसाद सिंह गौतम से मौलाना उमर गौतम बना और कैसे एक हज़ार लोगों को मतांतरित करके न जाने कितने ही सौरभ शर्मा को मोहम्मद सूफियान बनाया है।

इसे क्या कहा जाए कि भारत में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के नाम पर जिस मतांतरण को अंजाम दिया जा रहा है, उसी मतांतरण को इस्लामी देशों में गैर कानूनी माना जाता है। यह जानना रोचक होगा कि इस्लामी कानून पालन करने वाले कई इस्लामी देशों जैसे सऊदी अरब, सूडान, सोमालिया जोर्डन, इजिप्ट में पंथ परिवर्तन गैर कानूनी है और इसके लिए सख्त सज़ा का प्रावधान है। मालदीव में तो अगर कोई मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति अपना पंथ बदलता है तो उसकी नागरिकता ही समाप्त हो सकती है।

कहने को मतांतरण रोकने के लिए गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, सहित देश के नौ राज्यों में कानून है। ओडिशा में तो यह 1967 से लागू है। लेकिन मतांतरण रोकने में यह कानून कितना कारगर है, इस प्रकार की घटनाएं इसकी गवाही दे देती हैं और स्थिति की गंभीरता की ओर भी इशारा करती हैं। कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है उसे कठोरता से लागू करना महत्वपूर्ण है।

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