महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनकी वंश परम्परा

महान सम्राट पृथ्वीराज और उनकी वंश परम्परा

भाग एक

पद्मश्री महाराव रघुवीर सिंह

महान सम्राट पृथ्वीराज और उनकी वंश परम्परा

ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जन्मतिथि है। उनकी वंशलता का प्रारम्भ भारत में हूणों के अंत के पश्चात से होता है। 519 ई. में तोरामन के नेतृत्व में प्रथम हूण आक्रमण भारत पर हुआ और लम्बे समय के प्रयासों के पश्चात 585 में तोरामन के पुत्र मिहिरकुल के नेतृत्व में गुप्त साम्राज्य को समाप्त कर, ऐसा आतंक मचाया गया कि भारत की प्रजा उसे सहन नही कर पाई और उसने आबू पर्वत स्थित गुरु वशिष्ठ के आश्रम में पहुँचकर तत्कालीन उत्तराधिकारी को अपने कष्टों के बारे में बताया। प्रजा की पीड़ा सुनकर महंत ने उन्हें आश्वासन दिया की तुम्हारी समस्या मैं हल करूँगा। परन्तु आप लोग तुरंत यहाँ से चले जाओ अन्यथा उन लोगों को पता चला तो वे तुम पर अत्याचार बढ़ा देंगे।

तब गुरु वशिष्ठ की पीठ पर विराजमान महंत ने भारत के चार महान योद्धाओं को बुलाया, और उन्हें यज्ञाग्नि से संकल्प करवाया कि वे शीघ्रातिशीध्र इस क्रूर हूण आक्रमण की भारत से पूर्णत: अंत्येष्टि कर दें, साथ-साथ उन्होंने उन चार योद्धाओं के क्षेत्र का सीमांकन भी कर दिया। चालुक्यों को पश्चिम भारत, परमारों को अर्बुदा क्षेत्र, प्रतिहारों को मंडोर क्षेत्र एवं चाहुमानों को अहीछत्रपुर (वर्तमान नागौर एंव समस्त उतरी क्षेत्र) दिया। इन महान योद्धाओं ने 15 से 20 वर्षों के अल्प काल में ही हूणों का सम्पूर्ण नाश कर 608 ईसवीं में सभी अपने-अपने महान साम्राज्यों की स्थापना की। इनमें से एक सम्राट चाहुमान के पुत्र वसुदेव 631 ई. में अपनी राजधानी अहीछत्रपुर (नागौर) से शाकम्बरी सांभर वर्तमान जयपुर के पास ले गये एवं 632 ई. में शाकम्बरी झील के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर अपनी कुल देवी, शाकम्बरी माता की स्थापना की।

आगे चलकर 712 ई. में महान प्रतिभाशाली सम्राट अजयपाल ने अजयमेरु को अपनी राजधानी बनाया और वहां एक महान दुर्ग का निर्माण करवाया ये दोनों स्थान आज भी विद्यमान हैं।1135 ई. में महान सम्राट अर्नोराज अपनी राजधानी  अजयमेरु से दिल्ली ले गये। उनका विवाह पश्चिम भारत के महान राजा जयसिंह सिद्धराज की कन्या से हुआ। अर्नोराज की मृत्यु 1150 ई. में होने से उनके उत्तराधिकारी एवं ज्येष्ठ पुत्र सम्राट विघ्रराज चतुर्थ गद्दी पर बैठे। समस्त म्लेच्छों ने मिलकर उन पर आक्रमण किया। फलस्वरूप सम्राट विघ्रराज चतुर्थ ने 1150 ई. में ये आदेश दिए कि एक भी मुसलमान जीवित वापस नहीं जाना चाहिए। जब तक विघ्रराज चतुर्थ भारत के शासक रहे (1150-1164 ई) तब तक किसी भी तुर्क की भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हुई। 1163 ई. में महाराज विघ्रराज चतुर्थ ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया, तब से लेकर अभी तक दिल्ली भारत की राजधानी है।
1164 ई. में सम्राट विघ्रराज चतुर्थ की आकस्मिक मृत्यु होने से, उनके दोनों पुत्र दिल्ली के राजसिंहासन पर बारी–बारी से बैठे। 1167 में दोनों की मृत्यु हो जाने पर उनके चाचा सोमेश्वर जो गुजरात के महान प्रतिभाशाली सोलंकी सम्राट जयसिंह जो कि सिद्धराज सिद्ध राजाधिराज के दोहिते थे, राजा बने। उन्होंने 1178 ई. में अपने ज्येष्ठ पुत्र पृथ्वीराज चौहान का विवाह आबू पर्वत के महान प्रतिभाशाली शासक धारावर्ष प्रमार के छोटे भाई प्रहलादन की राजकन्या से करवाया। उनकी जागीर का गाँव था प्रहलादनपुर, जिसे आज पालनपुर के नाम से जाना जाता है।

जब सम्राट सोमेश्वर अपने पुत्र की बारात के साथ वापिस अजयमेरु लौट रहे थे, तब पाली जिले में मारवाड़ जंक्शन के निकट भीषण युद्ध करके मुसलमानी सेना ने सम्राट सोमेश्वर का वध कर दिया। तब से उनकी स्मृति में वह स्थान सोमेश्वर के नाम से जाना जाता है। उनके बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के शासक बने।

क्रमशः

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