मेरा प्यारा गाँव
विष्णु ‘हरिहर’
याद बहुत आता है मुझको
मेरा प्यारा गॉंव,
धूल भरी वह गली अनोखी
चलना नंगे पाँव।
तपते पथ पर देते रहते
बरगद, पीपल छाँव,
अनजाने भी जाने होते
सबको मिलती ठाँव।
नहीं पराया लगता कोई
सब ही रिश्तेदार,
सदा लगा है मुझको मित्रों
गाँव एक परिवार।
नहीं भुलाए भूल सका हूँ
रिमझिम बारिश रात,
दादी मॉं का भजन सुरीला
और ज्ञान की बात।
मंदिर-मंदिर झालर-घंटी
रामायण का पाठ,
दीपदान का पर्व दिवाली
होली के हैं ठाठ।
रोज सवेरे चिड़िया आती
बैठी पंख समेट,
चुगती दाना, पीती पानी
भर लेती है पेट।
आंगन में तुलसी का पौधा
दूर भगाता रोग,
खेल खिलाते दादा हमको
और कराते योग।
सारी यादें खड़ीं सामने,
नाच उठा मन मोर,
आ जा- आ जा हरिहर आ जा
खूब मचा है शोर।
गिल्ली डंडा छीना पत्ती,
कुश्ती वाला दॉंव,
दे आवाजें बुला रहा है
मुझको मेरा गॉंव।