अखंड राष्ट्र के स्वप्नद्रष्टा : सरदार पटेल

अखंड राष्ट्र के स्वप्नद्रष्टा : सरदार पटेल

वीरेंद्र पाण्डेय

अखंड राष्ट्र के स्वप्नद्रष्टा : सरदार पटेलअखंड राष्ट्र के स्वप्नद्रष्टा : सरदार पटेल

भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के इतिहास में कुछ आंदोलन काफी महत्वपूर्ण रहे, जिन्होंने ना केवल अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी, बल्कि जनमानस को एकता सूत्र में बांध दिया। सविनय अवज्ञा, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख राष्ट्रीय आंदोलन के तौर पर भारत के लगभग सभी हिस्सों में पहुंचा था। भगवान राम की कथा में जहाँ अयोध्या प्रारम्भ है तो लंका परिणाम, परन्तु किष्किंधा प्रकिया है जो प्रारम्भ और परिणाम को जोड़ती है। उसी प्रकार आजादी के आंदोलन में 1857 प्रारम्भ है तो 1947 परिणाम, परन्तु इनके बीच होने वाले अनेकों आंदोलन, बलिदान, संघर्ष प्रक्रिया है। आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो उन शूरवीरों, महानायकों के कृतित्व को स्मरणांजलि देना जरूरी है।

आज एक ऐसे ही विशेष आंदोलन की चर्चा, जिसे किसान आंदोलन के रूप में जाना जाता है। जिसे हम बारडोली सत्याग्रह के नाम से जानते हैं। वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ यह प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया था। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया।

इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंतर संबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा था कि इस तरह का हर संघर्ष अथवा प्रयास हमें स्वराज के और निकट पहुंचा रही है। इस आंदोलन के बाद वल्लभभाई झावेरभाई पटेल देश के सामने सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय हुए। उन्होंने एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया और भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।

स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देशी रियासतें थीं। उनका क्षेत्रफल भारत के कुल क्षेत्रफल का 40 प्रतिशत थी। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व कई देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। सरदार पटेल ने वी पी मेनन के साथ मिल कर राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोड़कर शेष सभी रजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। यह विलय बिना सैन्य कार्रवाई या किसी भी प्रकार के रक्तपात के हुआ। यह घटना इतिहास में अमर हो गई। यहाँ सरदार पटेल की दूरदर्शिता और उनके कुशल नेतृत्व का बेजोड़ दर्शन मिलता है। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं को छोड़ कर सब ने सरदार पटेल के प्रस्ताव को स्वीकारा। बाद में थोड़ी बहुत चिंताओं, संघर्षों के बाद बाकी बचे राज्यों ने भी भारत में विलय स्वीकार कर लिया।

एक कृषक परिवार में जन्मे वल्लभभाई पटेल ने वकालत की पढ़ाई पूरी की और फिर गाँधी के विचारों से प्रभावित हो कर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। आगे चल कर उन्होंने 200 वर्षों की गुलामी में फँसे देश के अलग- अलग राज्यों को संगठित कर भारत में मिलाया, इस बड़े कार्य के लिए उन्हें सैन्य बल की आवश्यकता तक नहीं पड़ी। यही उनकी सबसे बड़ी ख्याति थी, जो उन्हें सभी से पृथक करती है।

राष्ट्र का स्वरूप सांस्कृतिक होता है। एक राष्ट्र के रूप में भारत 1947 के पूर्व भी था। परन्तु अलग अलग रजवाड़ों-राज्यों में बंटा हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप अनेकों आक्रमण, लूट-पाट इस धरा ने झेले हैं। आज आवश्यकता है कि हम अपने पूर्वजों के अथक संघर्षों और बलिदानों से मिली इस स्वतंत्रता का मोल समझें और जाति-पंथों-भेदों को मिटाकर एक समरस भारत का उनका सपना पूरा करें। यही अमृत महोत्सव मनाने का निहितार्थ होगा तथा उन महानायकों के प्रति सच्ची आदरांजली भी होगी।

(लेखक मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर में कार्यरत हैं)

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *