सामाजिक क्रांति के अग्रदूत वीर सावरकर

सामाजिक क्रांति के अग्रदूत वीर सावरकर
वीर सावरकर पुण्य तिथि/ 26 फरवरी 

डॉ. विशाला शर्मा

सामाजिक क्रांति के अग्रदूत वीर सावरकर
जाति व्यवस्था के कट्टर आलोचक सावरकर अपने अंडमान से भेजे पत्र में छोटे भाई को लिखते हैं, “जातिगत भेदभाव की प्रथा हिंदुस्तान पर भारी अपमानकारी कलंक है। इस बात का कोई अर्थ नहीं है कि हम लोगों को चार वर्गों में बांट दें ऐसा नहीं होगा और ना होना चाहिए। इसे जड़ों से मिटाना होगा।
जाति, संप्रदाय भाषा और प्रांतवाद अपने अपने वर्चस्व की लड़ाई हेतु जब पंक्ति में खड़े दिखलाई देते हैं तब राष्ट्र और दुर्बल नजर आता है। ऐसे समय में वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों के कर्तव्य और कार्यों का पुनर्पाठ आवश्यक हो जाता है। सावरकर इस बात से भलीभांति परिचित थे कि लोकहितों को गौण कर राष्ट्रीयता पल्लवित नहीं हो सकेगी।
8 जुलाई 1910 में ब्रिटेन से बंदी बना कर लाते समय जहाज से समुद्र में कूद जाना और तैरकर फ्रांस पहुंचना वीर सावरकर के बलशाली होने का परिचय देता है। वहीं मात्र 27 वर्ष की आयु में 50 वर्ष के काला पानी की सजा सुनने के पश्चात विचलित नहीं होना मानसिक दृढ़ता का परिचायक है। एक क्रांतिकारी कवि, साहित्यकार होने के साथ-साथ सामाजिक क्रांति के अग्रदूत होने का परिचय उनके कार्यों से तथा उनके द्वारा लिखित पत्रों में व्यक्त मनोभाव से मिलता है।
उन्होंने आजीवन अखंड भारत का स्वप्न देखा और उसे साकार करने हेतु यातनाएं सहते रहे। उनके विचार गहन चिंतन मनन से विकसित हुए थे। वे धार्मिक विश्वासों को अंतिम सत्य मानने वाली प्रवृत्ति के विरुद्ध थे। उनका मानना था राष्ट्र का निर्माण ठोस वैज्ञानिक आधार पर होना चाहिए। वे आजीवन राष्ट्रीय हित और मानवीय हित के मानदंडों को लेकर चलते रहे। भारत को मजबूत, आधुनिक और विकसित राष्ट्र बनाने हेतु वैज्ञानिक सोच का धरातल आवश्यक है और इस हेतु सामाजिक परिवर्तन और स्वतंत्रता हमारा परम लक्ष्य होना चाहिए।
जाति व्यवस्था के कट्टर आलोचक सावरकर अपने अंडमान से भेजे पत्र में छोटे भाई को लिखते हैं, “जातिगत भेदभाव की प्रथा हिंदुस्तान पर भारी अपमानकारी कलंक है। इस बात का कोई अर्थ नहीं है कि हम लोगों को चार वर्गों में बांट दें ऐसा नहीं होगा और ना होना चाहिए। इसे जड़ों से मिटाना होगा। उनका मानना था, सामाजिक क्रांति के लिए हमें पहले जन्म के आधार पर जाति निर्धारित करने वाली व्यवस्था पर हमला करना होगा और विभिन्न जातियों के बीच अंतर को खत्म करना होगा। वह व्यक्ति को अपनी इच्छानुरूप जीवनवृति अपनाने की स्वतंत्रता देने के पक्षधर थे।
उन्होंने सामुदायिक भोज के आयोजन करवा कर यह सिद्ध किया कि ‘धर्म लोगों के पेट में नहीं हृदय में रहता है। उनका आग्रह था कि जीवनसाथी का चुनाव करते समय उसके गुणों, सभ्यता और स्वास्थ्य को महत्व दिया जाए। 1927 में उन्होंने जातिगत भेदभाव को दूर करते हुए मंदिर प्रवेश आंदोलन की शुरुआत की और रत्नागिरी में सभी के लिए मंदिर के द्वार खुलवाए। महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए पहला सामुदायिक भोज 21 सितंबर 1931 को आयोजित किया गया। इसमें सभी जाति वर्ग की महिलाएं उपस्थित थीं। उनकी पत्नी यमुना सावरकर सभी महिलाओं को साथ लेकर पारंपरिक हल्दी कुमकुम का आयोजन करती थीं।
सावरकर मानवता और समानता के विचारों से अनुप्राणित थे। उनका मानना था सामाजिक सुधारों के बिना स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता यदि मिल भी जाती है तो वह स्थाई नहीं होगी। सामूहिक त्योहारों का आयोजन सहशिक्षा और महिलाओं की भागीदारी को आवश्यक मानते हुए बहुत सीमित साधनों में उन्होंने अपनी आजीविका को चलाते हुए एक बालिका को गोद लिया।
वीर सावरकर अंडमान में सजा काटते समय भारत में व्याप्त अस्पृश्यता को लेकर चिंतित रहते थे और भारत पर विदेशी कब्जे और जातिगत भेदभाव को एक दूसरे के समांतर मानते थे। उनके सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में किए गए कार्य के प्रशंसकों में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भी थे। सावरकर का जीवन अग्निपथ के समान रहा। इतने संघर्षों के बीच अंडमान की जेल में कोयले और पत्थर के टुकड़ों से छह हज़ार कविताएं रचीं और अपने साथियों को कंठस्थ भी करवा दीं।
सावरकर ने पांच मौलिक पुस्तकों का भी सृजन किया। ब्रिटेन में अपनी पढ़ाई के दौरान 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष पर लिखा उनका ग्रंथ प्रतिबंधित कर दिया गया, जिसका मूल मंत्र था ‘संघर्ष से ही स्वतंत्रता प्राप्त होगी। ‘गुप्तरूप से इस पुस्तक की छपाई हुई और भारत में क्रांतिकारी भगत सिंह ने इसे छपवाया था। चंद्रशेखर आजाद के साथियों को जब छापे मारकर गिरफ्तार किया गया तो उनके पूजा स्थान पर यही ग्रंथ मिला जो स्वतंत्रता की ज्योति बना। वीर सावरकर ने अपने कार्यों और त्याग से यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय संस्कृति व्यापक, विशाल और उदार है क्योंकि वह किसी वर्ग विशेष की संपत्ति नहीं है अपितु सबकी है।
(लेखिका चेतना कला वरिष्ठ महाविद्यालय औरंगाबाद में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं)
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2 thoughts on “सामाजिक क्रांति के अग्रदूत वीर सावरकर

  1. बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने वीर सावरकर जी के बारे में।

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