महाविनाश की धरती पर सृजन के अंकुर

महाविनाश की धरती पर सृजन के अंकुर

विजयलक्ष्‍मी सिंह

महाविनाश की धरती पर सृजन के अंकुरमहाविनाश की धरती पर सृजन के अंकुर

हमारे पास ओढ़ने के लिए बस अनंत आकाश बचा था और बिछाने के लिए केवल धरती। विधाता को पता नहीं क्या स्वीकार था, कुछ मिनटों में ही सब कुछ जमीन में मिल गया था। घर बर्तन, बिस्तर, कपड़े जो कुछ भी तिनका-तिनका कर हमने चालीस बरसों में संजोया था, अब मलबे के ढेर में बदल चुका था। कच्छ (गुजरात) में बाईस वर्ष पूर्व आए उस विनाशकारी भूकंप से हुई तबाही की कहानी सुनाते हुए चपरेड़ी गांव के वर्तमान सरपंच दामजी भाई की पलकें आज भी भीग जाती हैं। किंतु अगले ही पल जब वो अटल नगर में बने पक्के मकानों, चौड़ी सड़कों, शानदार स्कूल बिल्डिंग, पंचायत भवन व गांव के बीचों-बीच बने माता रानी के विशाल मंदिर को निहारते हैं तो फिर गर्व से सुनाते हैं चपरेड़ी के अटल नगर बनने की कहानी।

क्या आप जानते हैं? इस विनाशकारी भूकंप से खंडहर बन चुके चौदह गांवों को सेवाभारती – गुजरात ने सेवा इंटरनेशनल की सहायता से पुनः बसाया। उन्हीं गावों में से एक चपरेड़ी था जो आज सर्व सुविधायुक्त अटल नगर बन चुका है‌।

26 जनवरी, 2001 को सारा भारत जब 52वां गणतंत्र दिवस मना रहा था, तो सुबह 8 बजकर 46 मिनट पर गुजरात के कच्छ जिले में एक प्रलयकारी भूकंप आया था। रिक्टर स्केल पर 7.7 तीव्रता वाला दो मिनट चलने वाला यह भूकंप 13805 लोगों को लील गया था। गुजरात के सैकड़ों गांव प्रभावित हुए थे, उन्हीं में से एक था चपरेड़ी। भूकंप के बाद गांव में रहने वाले 300 परिवारों का सब कुछ नष्ट हो गया था। दस लोग जान गंवा चुके थे व समूचा गांव मलबे के ढेर में बदल गया था।

महाविनाश की धरती पर सृजन के अंकुर

किंतु जहां विनाश होता है, वहीं सृजन के अंकुर पनपते हैं। जिन्हें भूकंप निगल गया, उन परिजनों को छोड़कर विधाता ने चपरेड़ीवासियों से बाकी जो कुछ छीना था, ईश्वरीय दूत बनकर आए कार्यकर्ताओं  ने दिन-रात एक कर सब कुछ लौटा दिया। जहां पुराना गांव बसा था, वहीं से कुछ दूरी पर खाली पड़ी जमीन पर पूरा गांव दोबारा बसाया गया। 2001 में इस गांव का भूमिपूजन हुआ व 2004 में लोकार्पण। नए गांव को नया नाम भी मिला अटल – नगर। नवनिर्माण के इस कार्य की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कच्छ जिले के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन विभाग कार्यवाह महेश भाई ओझा बताते हैं – यह कार्य इतना आसान नहीं था। चपरेड़ी सहित कई गांव मलबे का ढेर बन चुके थे, मृत्यु अपना तांडव दिखा चुकी थी। पर जो बच गए थे, उनके लिये जीवन की लड़ाई बेहद कठिन थी।

विशेषकर बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए स्कूल बिल्डिंगें जल्दी ठीक करना आवश्यक था। वे बताते हैं कि कच्छ में चौदह गावों के साथ जामनगर, बनासकांठा, पाटण में ध्वस्त हुए 62 नए स्कूल भवन समाज के सहयोग से दोबारा बनाए गए।

हम सभी जानते हैं कि एक गांव को बसाने में कुछ दिन नहीं  बरस लग जाते हैं। विनाश एवं निर्माण के बीच इन दो वर्षों में बांबुओं पर पतरे लगाकर कुछ मामूली बर्तनों व बिस्तर के साथ पत्थरों के चूल्हों पर खाना बनाकर जीवन गुजार रहे लोगों की हर मुश्किल में साथ खड़े रहे संघ के स्वयंसेवक। प्रांत मंत्री गिरीश भाई बताते हैं कि हमने इन परिवारों को राशन, बर्तन, बिस्तर व अन्य आवश्यक सामानों के साथ ही आत्मविश्वास एवं स्वाभिमान से जीने का अवसर भी दिया। इस पूरे कंस्ट्रक्शन कार्य में कुछ तकनीकी लोगों को छोड़कर बाहर से कोई नहीं आया। गांव वालों ने ही स्वयं अपना गांव बसाया। मजदूरी सहित जिसे जो कार्य आता था, उसने वो पूरे जतन से किया। इससे इन्हें अपने घरों को बनाने का संतोष भी मिला व सरकारी रेट पर मजदूरी भी। काम शुरू होने के बाद जब चूल्हे जले तो रोटियों में आई स्वाभिमान की सोंधी महक ने इनका संताप हर लिया।

आइए, अब वापस लौटते हैं चपरेड़ी के सरपंच दामजी भाई के पास। जिनकी आँखों में सेवा भारती – गुजरात के लिए बस कृतज्ञता ही कृतज्ञता है। वे कहते हैं कि ये कार्यकर्ता हमारे गांव में ईश्वरीय दूत की तरह आए और हमारे सुख-दुःख का भार अपने कंधों पर उठा लिया। हमारी कल्पनाओं से भी सुंदर गांव बसा कर दिया।

शायद, इसी को कहते हैं महाविनाश की धरती पर सृजन के अंकुर।

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