स्वाधीनता के अमृत संकल्प और करणीय कार्य
कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
स्वाधीनता के अमृत संकल्प और करणीय कार्य
असंख्य वीर-वीरांगनाओं की पुण्याहुतियों एवं सदियों तक चले ‘स्वातन्त्र्य समर’ के फलस्वरूप अपना देश 15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्र हो गया और अब राष्ट्र स्वाधीनता के अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है। यह स्वाधीनता का अमृतकाल राष्ट्र के सर्वांगीण विकास एवं समृद्धि के साथ भारत माता को परम् वैभव के शिखर तक ले जाने का संकल्प है। यह संकल्प भारत को सोने की चिड़िया यानि भौतिक समृद्धि के साथ भारतीय जीवन मूल्यों की धर्म ध्वजा को विश्व गगन में ले जाने का शाश्वत संदेश है। भारत के ‘स्व’ को जगाते हुए संविधान में प्रदत्त अधिकारों एवं प्रावधानों के साथ — नागरिक बोध जो राष्ट्रबोध से आप्लावित हो; उस अनुरूप कर्त्तव्य पारायणता ध्येयनिष्ठ मानस के निर्माण के लिए राष्ट्र को एकत्व के साथ अग्रसर होने के पथ पर बढ़ना होगा।
राष्ट्र की शक्ति एवं हमारे भावी भविष्य को लेकर महर्षि अरविन्द द्वारा सन् 1904 में अपनी पत्नी मृणालिनी को लिखे गए पत्र में ‘शक्ति प्रकटाने’ और कर्त्तव्य बोध को लेकर पथ प्रशस्त किया है। वह वर्तमान में भी उतना ही प्रासंगिक है —
“राष्ट्र है क्या? हमारी मातृभूमि क्या है? वह एक भूमि का टुकड़ा ही तो नहीं है, न वाणी का एक अलंकार है और न मस्तिष्क की कल्पना की एक उड़ान मात्र है। वह एक महान शक्ति है, जिसका निर्माण उन करोड़ों एककों की शक्तियों को मिलाकर हुआ है जो राष्ट्र का निर्माण करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे सारे देवताओं की शक्ति को एकत्र कर एक बलराशि संचित की गई और उसे परस्पर जोड़ कर एकता स्थापित की गई। जिसमें से भवानी महिष-मर्दिनी प्रकट हुईं। वह शक्ति जिसे हम भारत, भवानी भारती कहकर पुकारते हैं, तीस करोड़ लोगों की शक्तियों की जीती-जागती एकता है, पर वह निष्क्रिय है, तमस् के इंद्रजाल में बंदी होकर, अपने पुत्रों की आत्मासक्त क्रियाहीनता और अज्ञानता के वशीभूत होकर। हमें शक्ति का सृजन वहाँ करना है, जहाँ वह पहले नहीं थी; हमें अपने स्वभावों को बदलना है, और नये हृदयों के साथ नये मानव बनना है, फिर से जन्म लेना है।… हमें बीजरूप में ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जिनमें शक्ति का अधिकतम सीमा तक विकास किया जा सके, जिनके व्यक्तित्व के कोने-कोने में उसे भरा जा सके और जो छलक कर भूमि को उर्वर बनाये। भवानी की ज्वाला को अपने अंतःकरणों और मस्तिष्कों में धारण कर ये लोग जब निकल पड़ेंगे तो अपनी भूमि के हर कोने और कंदरा में वे उस ज्योति को ले जायेंगे। ”
(पश्चिम खण्डहरों में से …भारत का पुनर्जन्म पृ. १५ )
राष्ट्र जब ‘स्व’ की त्रयी — ‘ स्वधर्म, स्वदेशी एवं स्वराज ‘ के मूल्यों का अनुसरण करते हुए गतिमान हुआ तो भारत ने आक्रान्ताओं से अपनी मुक्ति का मार्ग तो खोजा ही, साथ ही वर्तमान में वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरकर सामने आया है। वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में — भारत की विदेश नीति अपने सर्वोच्च स्तर पर है। आज विश्व की महाशक्तियाँ माने जाने वाले देश — अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया, इजरायल सहित संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब सहित इस्लामिक देशों में भारत को बड़े आदर एवं सम्मान के साथ देखा जाता है। वहीं द्वीपीय देशों सहित विश्व समुदाय के समस्त देश — वैश्विक परिवर्तन की दृष्टि से भारत की ओर देखते हैं। अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत के लिए पलक पांवड़े बिछाए हुए दिखता है। भारत को समस्त देश अपने सर्वोच्च सम्मानों से जहां सम्मानित कर रहे हैं — वहीं भारतीय संस्कृति यानि हिन्दू संस्कृति को कृतज्ञता एवं आदर भाव के साथ आत्मसात कर रहे हैं। ये समस्त परिवर्तन – भारतीय मूल्यबोधों की वैश्विक विजय के प्रतीक के रूप में हैं।
भारतीय चिंतन के प्रकाश में सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, लोकतांत्रिक, न्यायिक संस्थाओं सहित समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में कालसुसंगत रचनाएँ विकसित करने की दिशा में राष्ट्र गतिमान है। और समूचा देश राष्ट्र के नवोत्थान के पुनीत कार्य में अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ सहभागी बन रहा है। भारत के समस्त सांस्कृतिक महत्व के आस्था केन्द्रों का पुनरुद्धार करने का संकल्प पूर्ण होता दिख रहा है। बात चाहे राष्ट्र के प्राण मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचन्द्र जी के अयोध्या में बन रहे — भव्य मंदिर की हो। बाबा विश्वनाथ कॉरीडोर, महाकाल कॉरीडोर, सरदार पटेल की प्रतिमा — स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, वहीं भाग्यनगर ( हैदराबाद) में संत रामानुजाचार्य जी की — 216 फीट ऊंची प्रतिमा ‘ स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी ‘ का निर्माण हो। याकि भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस का शुभारम्भ हो। और जनजातीय नायकों से लेकर राष्ट्र यज्ञ में आहुति देने वाले — ज्ञात – अज्ञात स्वातन्त्र्य वीर- वीराङ्गनाओं को मुख्य धारा में लाना हो। इतना ही नहीं देश को पहली जनजातीय महिला के रूप में द्रौपदी मुर्मू जी को राष्ट्रपति की आसंदी के लिए चुनना हो। याकि पराक्रम दिवस , विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस सहित — राष्ट्र नायकों के नाम पर स्थलों/ नगरों के नामकरण करना हो। धारा – 370 की समाप्ति के साथ नवीन संसद भवन का निर्माण। राजपथ को — कर्त्तव्य पथ के रूप में नई पहचान देना हो। काशी – तमिल संगम से लेकर पूर्वोत्तर क्षेत्र का विकास और अंतरिक्ष अभियानों में भारत ने अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाई है। वहीं आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि से नए उद्यमों की स्थापना, नए शोध, ‘मेक इन इंडिया’ सहित सुरक्षा व्यवस्था और सेनाओं को सशक्त करने का कार्य अपने नए आयाम ग्रहण कर रहा है। डिजिटल इंडिया – यूपीआई सहित डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) के क्रांतिकारी परिवर्तनों ने भारत को विकास के पंख लगाए हैं। मेट्रो ट्रेनों से लेकर सर्व सुविधायुक्त रेलवे और वन्दे भारत एक्सप्रेस — के साथ ‘भारतमाला’ प्रोजेक्ट के अन्तर्गत सड़कों का जाल बिछाने में भारत उत्कर्ष की नई सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा।
भारत के सांस्कृतिक – आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्मेष का क्रान्ति सूर्य समाज जीवन के विविध पक्षों में अपनी आभा बिखेर रहा है। भारतीय ज्ञान परम्परा एवं शिक्षण पद्धति के मूल्यों से पुष्ट ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति -२०२०’ भारतीय मानस को आधुनिकता के साथ भारत की मौलिक विशिष्टता से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही है। शिक्षा – स्वास्थ्य – रोजगार और परिवर्तनों की बयार से भारत परिवर्तन का नया सवेरा देख रहा है। और राष्ट्र मानस में हिन्दू संस्कृति एवं अपनी मूल परम्पराओं के प्रति गौरव बोध का भाव – राष्ट्र की एकात्मकता के साथ एकाकार हो रहा है। ‘सर्वस्पर्शी – समरस – एकात्म’ समाज के रूप में भारतीय मानस अब किसी भी प्रकार के विभाजन को अस्वीकार कर रहा है। ये समस्त परिवर्तन राष्ट्रनिष्ठा से पुष्ट विचारों के लोक व्यापीकरण के कारण संभव हो पा रहे हैं।
सशक्त नेतृत्व के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी — सेवा, सुशासन, स्वराज और गरीब कल्याण के साथ भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए समर्पित होकर देश को नई दिशा दिखा रहे हैं।नागरिकों में कर्त्तव्य बोध की भावना के विकास के साथ ‘ मन की बात’ कार्यक्रम द्वारा भारतवर्ष की प्रतिभाओं एवं सर्जनात्मक कार्यों को राष्ट्र के समक्ष स्वयं ला रहे हैं। और भारतीय संस्कृति के वैश्विक ब्रांड एम्बेसडर – नेतृत्वकर्ता के रूप में महापुरुषों के दिशाबोध से नए भारत को गढ़ने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। अमृतकाल वर्ष 2047 में जब भारत अपने परम् वैभव को प्राप्त करेगा, उसमें राष्ट्र के जनमानस की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। अतएव प्रधानमंत्री मोदी ने अमृत काल के जिन पंच प्रणों — देश को विकसित भारत के रूप में आगे बढ़ाने के संकल्प, गुलामी की मानसिकता को खत्म करना, भारत की विरासत पर गर्व करना, एकता और एकजुटता की ताकत और राष्ट्र के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों- का राष्ट्र से आह्वान किया है। उसके लिए सभी को तत्क्षण जुट जाना होगा। अलख जगानी पड़ेगी।
हमें संकल्पित होना पड़ेगा कि —
“वन- प्रान्तर ,ग्राम्य-नगर सब जागें
बनें निबलों के सहारा
मातृशक्ति – आदिशक्ति जागें
जगवन्दित होगा भारतवर्ष हमारा।”
भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से ‘स्व’ आधारित — स्वालम्बन, स्वदेशी, स्वराज की भावना के साथ ग्राम स्वराज को पूरा करना होगा। वहीं चाहे जन सामान्य तक पहुंचने वाली उज्ज्वला योजना हो, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन-धन खाता, किसान सम्मान निधि हो या आयुष्मान योजना , सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली हो, ऐसी अनेक योजनाएं सफलतापूर्वक संचालित हो रही हैं और सशक्त नेतृत्व की सरकार अपने सद-प्रयासों के माध्यम से देश की गरीब जनता के जीवन कि दिशा और दशा को बदलने का कार्य कर रही है। खेल के क्षेत्र में भारत वैश्विक पहचान बना रहा है — और विभिन्न खेलों में भारतीय खिलाड़ी राष्ट्र के नाम सर्वोच्च पदक जीतकर देश को गौरवान्वित कर रहे हैं। वहीं अब पद्म पुरस्कार — जमीन में वास्तविक काम करने वाले संघर्षशील जननायकों को मिल रहे हैं। और इससे भारत का कोई कोना अछूता नहीं रहा है ।
अमृतकाल में जब भारत सर्जनात्मक विकास की अभय शक्ति के साथ आगे बढ़ रहा है — उसी समय विभाजनकारी तत्वों, देशी – विदेशी षड्यंत्रकारियों एवं भारत विरोधी अराजक तत्वों से निपटने के लिए भी समाज की सामूहिक शक्ति की आवश्यकता है। त्वरित प्रतिकार और समाज जीवन के समक्ष आने वाली चुनौतियों — आतंकवाद, नक्सलवाद, लव जिहादियों, अर्बन नक्सलियों, बौध्दिक नक्सलियों एवं संविधान विरोधी – राष्ट्र विरोधी तत्वों का समूलनाश करने की ओर उन्मुख होना पड़ेगा। ताकि भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने वाले तत्व भारतवर्ष की गति प्रगति में बाधक न बनने पाएं।
स्वाधीनता के लिए हमारे महान पूर्वजों ने असंख्य प्राणाहुतियों की कीमत चुकाई है, इसका सदैव स्मरण रखें। क्योंकि इसी भाव से हमारी स्वतन्त्रता अक्षुण्ण रहेगी और तभी राष्ट्र सर्वांगीण विकास के शिखर को छू पाएगा। और इसी भाव से ही — राष्ट्रभक्तों व राष्ट्र विरोधियों की पहचान आसानी से हो जाएगी। हमारी स्वाधीनता महान पूर्वजों के लहू के कण-कण से सिंचित है। उस लहू का गौरवबोध हमारी नस- नस में अनिवार्यतः प्रवाहित होना ही चाहिए; यही शक्ति राष्ट्र निर्माण की शक्ति होगी। वहीं राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति एवं बच्चे बच्चे के ह्रदय में ‘अखण्ड भारतवर्ष ‘ की झाँकी विद्यमान रहनी चाहिए। क्योंकि महर्षि श्री अरविन्द कहते थे कि — यह भारत का विभाजन अस्थायी है, भारत की नियति है अखण्ड भारत होना। वहीं राष्ट्र पुरोधा पूर्व प्रधानमंत्री श्रध्देय अटल बिहारी वाजपेयी जी की इन पंक्तियों का सदैव स्मरण रखना भी हम सबके जीवन का अनिवार्य बोध होना चाहिए —
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी पर्व मनाएँगे।।
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ,
जो खोया उसका ध्यान करें।
हमारा यही राष्ट्रबोध हमारी शक्ति एवं समृद्धि का प्रतीक एवं गौरवबोध के रूप में नवजीवन को दशा एवं दिशा देगा और वसुधैव कुटुंबकम् के साथ कृण्वन्तो विश्वमार्यम का मन्त्र चतुर्दिक गुंजित होने लगेगा। समूचा राष्ट्र महर्षि श्री अरविन्द के जनवरी 1921 में किए गए आह्वान के साथ कर्त्तव्य पथ पर भारत माता के पावन चरण कमलों की सेवा में रत हो जाए —
“युगों का भारत मृत नहीं हुआ है और न उसने अपना अंतिम सृजनात्मक शब्द उच्चरित ही किया है; वह जीवित है और उसे अभी भी स्वयं अपने लिए और मानव लोगों के लिए बहुत कुछ करना है। और जिसे अब जागृत होना आवश्यक है, वह अँग्रेजियत अपनाने वाले पूरब के लोग नहीं, जो पश्चिम के आज्ञाकारी शिष्य हैं, बल्कि आज भी वही पुरातन अविस्मरणीय शक्ति, जो अपने गहनतम स्वत्व को पुनः प्राप्त करे, प्रकाश और शक्ति के परम स्रोत की ओर अपने सिर को और ऊपर उठाये और अपने धर्म के संपूर्ण अर्थ और व्यापक स्वरूप को खोजने के लिए उन्मुख हो।”
(कवि, लेखक, स्तम्भकार, पत्रकार)