होली पर चढ़ा स्वदेशी रंग, गोकाष्ठ, देसी पिचकारियों और हर्बल गुलाल की रही मांग

होली पर चढ़ा स्वदेशी रंग, गोकाष्ठ, देसी पिचकारियों और हर्बल गुलाल की रही मांग

होली पर चढ़ा स्वदेशी रंग, गोकाष्ठ, देसी पिचकारियों और हर्बल गुलाल की रही मांग

इस बार होली में स्वदेशी का बोलबाला रहा। बाजार से चीन निर्मित पिचकारियां व रंग दोनों ही लगभग गायब थे। लोगों ने दुकानदारों से स्वदेशी पिचकारियों व हर्बल गुलाल की मांग की। इसके साथ ही होली को ईको फ्रेंडली बनाने के प्रयास भी किए गए। अधिकांश स्थानों पर होलिका को लकड़ी के स्थान पर गोकाष्ठ, कंडों व फूस से सजाया गया। इसमें गोशालाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गोशालाओं ने पहले से ही ऑर्डर लेकर गोकाष्ठ तैयार किया। जयपुर की हिंगोनिया गोशाला में 30,000 किलो गोकाष्ठ तो 20,000 किलो कंडे तैयार किए गए। श्री नारायण धाम गोशाला के विष्णु अग्रवाल ने बताया कि उनकी गोशाला में पिछले वर्ष भी गोकाष्ठ तैयार किया गया था, लेकिन इस बार ऑर्डर अधिक मिले। शहर में 500 से अधिक स्थानों पर गोकाष्ठ की होली जलाई गई। प्रति होलिका 2100 रुपए की दर से गोकाष्ठ उपलब्ध करवाया गया।

दूसरी ओर रंग बिरंगी, विभिन्न आकारों की देशी पिचकारियों ने भी स्वदेशी का रंग बिखेरा। व्यापारियों का कहना है कि दो साल पहले तक पिचकारियों के बाजार पर चीन का 70 प्रतिशत तक कब्जा था लेकिन इस बार वह बिल्कुल बाहर है। दुकानदारों ने यह भी कहा कि भारत में बनी पिचकारी व होली के अन्य सामान चीन की तुलना में अधिक मजबूत हैं। गुणवत्ता अच्छी है। धीरे-धीरे वैरायटी भी बढ़ रही है, इस कारण यह सामान लोगों को पसंद आ रहा है। पिछले दो वर्षों में यह बड़ा बदलाव हुआ है, जिसे देखकर लगता है, भारत की आवश्यकताओं को भारत ही समझ सकता है और भारत ही पूरा कर सकता है।

इस होली हर्बल गुलाल की मांग भी बढ़ी। इस पर फाइन आर्ट्स की छात्रा रुचि कहती हैं कि हमारे यहॉं सदियों से प्राकृतिक रंग बनते आ रहे हैं। फूल, पत्तियों, फलों, जड़ों आदि से रंग बनाना हमारी प्राचीन विरासत है। हर्बल गुलाल की मांग बढ़ना अपनी ज़ड़ों की ओर लौटने जैसा है।

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