‘अग्निपथ योजना’ के विरोध का सच
बलबीर पुंज
‘अग्निपथ योजना’ के विरोध का सच
‘अग्निपथ योजना’ का विरोध क्या रेखांकित करता है? जब मोदी सरकार ने भारतीय सेना के तीनों अंगों के मुखियाओं के साथ गहन विचार-विमर्श करके और बदलती दुनिया (तकनीक सहित) के लिए वांछनीय इस महत्वपूर्ण योजना की घोषणा की, तब समाज का एक वर्ग न केवल आक्रोशित हो गया, अपितु हिंसा और रेल-बसों आदि सार्वजनिक परिवहनों में आगजनी के माध्यम से इसका विरोध करने लगा। हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, तेलंगाना से लेकर बिहार आदि के कई जिलों में हिंसक प्रदर्शन हुआ। अलग-अलग स्थानों पर 60 बोगियों और 11 इंजन को फूंका जा चुका है, जिससे लगभग 700 करोड़ रुपये से अधिक की रेलवे संपत्ति को क्षति पहुंच चुकी है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में लोकतांत्रिक मर्यादाओं में रहकर असहमति व्यक्त या विरोध-प्रदर्शन करना- हम सबका अधिकार है और बड़े परिवर्तनों पर अलग दृष्टिकोण रखना स्वाभाविक भी है। किंतु इसमें हिंसा का कहीं कोई स्थान नहीं। आखिर ‘अग्निपथ योजना’ का उग्र-विरोध करने वालों का सच क्या है?
हमारा देश इस समय एक लंबित और वांछनीय परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। देश की स्थिति बदलनी ही चाहिए, यह शत-प्रतिशत लोगों की इच्छा है। किंतु जब इस दिशा में कुछ ठोस और सार्थक पहल होती है, तब वह वर्ग सबसे पहले विचलित होकर बौखला जाता है, जो पुरानी नीति का सबसे बड़ा लाभार्थी या यूं कहें कि यथास्थितिवाद का समर्थक रहा है। यह कोई नई परिपाटी नहीं है। शताब्दियों से परिवर्तन और यथास्थितिवादियों के बीच संघर्ष चला आ रहा है। चाहे बदलाव कितना भी वांछनीय और आवश्यक क्यों न हो, वह सदैव यथास्थितिवादियों के लिए कष्टकारी बनकर आता है।
‘अग्निपथ योजना’ का तार्किक विरोध करने के स्थान पर सड़कों पर हिंसक घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि यह सब ‘निहित स्वार्थ’ रखने वाले संबंधित समूहों के भ्रामक दुष्प्रचार का परिणाम है। अभी भारत में 14 लाख सैनिक हैं। देश में ऐसे लाखों युवा हैं, जो नियमित सैन्य भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से सशस्त्रबलों में शामिल होने से चूक जाते हैं। क्या अतीत में कभी उन युवाओं को विफल होने पर आगजनी या तोड़फोड़ करते देखा है? सबसे अधिक विचारणीय बात तो यह है कि जो लोग अग्निपथ योजना के विरोध के नाम पर हिंसा कर रहे हैं, वे पूर्णकालिक तो छोड़िए, क्या वे अल्पकाल के लिए भी राष्ट्रसेवा करने के योग्य हैं? यहां यह भी समझने की आवश्यकता है कि भारतीय सेना कोई मनरेगा, बैंक या अन्य सरकारी कार्यालयों आदि जैसा रोजगार सृजन करने का उपक्रम नहीं है।
आज के आधुनिक युग में पारंपरिक साधनों-युद्धकला पर निर्भरता ठीक वैसे ही है, जैसे मोबाइल-5जी के दौर में पुराना लैंडलाइन फोन। अब खतरा केवल धरती, जल, नभ तक सीमित नहीं रह गया है, साइबर से लेकर अंतरिक्ष तक युद्ध को ध्यान केंद्रित करते हुए विश्व के कई देश अपनी सैन्य क्षमता का आधुनिकीकरण कर रहे हैं। ‘अग्निपथ योजना’ उस दिशा में एक सार्थक कदम है। वर्तमान समय में अधिकांश भारतीय सैनिक, भर्ती के बाद लगभग 15 वर्ष की सेवा करते हैं और फिर लगभग 30-50 वर्षों के लिए पेंशन प्राप्त करते हैं। वर्ष 2013-14 में वेतन-पेंशन पर खर्च कुल रक्षा बजट का 42.2 प्रतिशत था, जोकि अब बढ़कर 48.4 प्रतिशत हो गया है। ‘वन रैंक वन पेंशन’ योजना के बाद पेंशन पर रक्षा खर्च अन्य सैन्य व्ययों से कहीं अधिक हो गया है। ‘अग्निपथ योजना’ से इसमें कमी आएगी और जो पैसा बचेगा, उसका सरकार उच्च तकनीक वाले आयुध और सेना के आधुनिकीकरण पर उपयोग कर सकती है, जिससे हमारी सेना शत्रुओं के विरुद्ध कहीं अधिक निपुण, घातक और सशक्त होगी।
‘अग्निपथ योजना’ का प्रारंभिक लक्ष्य 46,000 ‘अग्निवीरों’ को नियुक्त करना है, जिनमें से 34,000 चार वर्ष पश्चात 11 लाख रुपये के एकमुश्त सेवानिधि लाभ के साथ सेवामुक्त हो जाएंगे। इस योजना का लक्ष्य पांचवें वर्ष तक 90 हजार, 2030 तक 1,27,000 और अंत में सेना में नियमित सैनिकों और अग्निवीरों के अनुपात को 50-50 प्रतिशत करना है। ऐसा होने से सेना की औसत आयु 32 वर्ष से घटकर 26 हो जाएगी। अभी भारतीय सेना में केवल 2,50,000 सैनिकों की आयु 25 वर्ष से कम है। इस दिशा में यह योजना एक बहुत बड़ा सुधार है, क्योंकि कुशल-प्रशिक्षित युवा सैनिक किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति से निपटने में अधिक योग्य-बलशाली होंगे। सरकार ने अग्निवीरों के लिए तटरक्षक, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिसबलों और असम राइफल्स में 10 प्रतिशत आरक्षण, योजना के पहले वर्ष में आयु में छूट, तो कई राज्य सरकारों और निजी कंपनियों ने रोजगार में अग्निवीरों को वरीयता देने की घोषणा की है।
आलोचकों द्वारा अब तक जो तर्क-कुतर्क प्रस्तुत किए गए हैं, उसमें से एक यह है- ‘एक या दो वर्ष के अनुभव वाले सैनिक युद्ध जैसी स्थिति के योग्य नहीं होंगे’। क्या यह सत्य नहीं कि युद्ध और शांतिकाल के दौरान अधिकांश वीरता पुरस्कार पाने वाले विजेता युवा होते हैं? दूसरे विश्व युद्ध में ब्रितानियों ने 20 लाख भारतीयों को सेना में भर्ती किया था, जिन्होंने तब जापानी सेना को पराजित कर दिया था। एक कुतर्क यह भी है कि जो अग्निवीर चार वर्ष बाद बाहर आएंगे, वे बेरोज़गारी से तंग आकर अपराध, आतंकवाद और हिंसा में शामिल हो सकते हैं। यदि ऐसा है, द्वितीय विश्वयुद्ध में कई देशों ने लाखों-करोड़ लोगों को सेना से निकाला था। कुछ अपवादों को छोड़कर उन अधिकतर देशों ने तब बेरोज़गारी की समस्या सुलझा ली थी।
‘अग्निपथ योजना’ को लेकर जिस प्रकार ‘यथास्थितिवादियों’ के भ्रम जाल में फंसकर ‘युवाओं’ का एक वर्ग सड़कों और रेलवे स्टेशनों पर आगजनी कर रहा है, उसे उन्हीं वैचारिक शक्तियों- अधिकांश राष्ट्रविरोधियों का समर्थन प्राप्त है, जिनकी पहचान बीते आठ वर्षों में कई बार सार्वजनिक हो चुकी है। इसमें वर्ष 2019-20 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरुद्ध भ्रामक दुष्प्रचार करके दिल्ली सहित देश के कई स्थानों पर सांप्रदायिक हिंसा भड़काना और इसी तरह वर्ष 2020-21 में कृषि-सुधार कानूनों के विरुद्ध विरोधियों द्वारा दिल्ली सीमा पर अराजकता फैलाना शामिल है। जैसे यह पता होते हुए कि सीएए से किसी भी भारतीय (मुस्लिम सहित) की नागरिकता नहीं जाएगी, फिर भी तथ्यों को विकृत करके भय का माहौल बनाया गया। ठीक वैसा ही कृषि कानून, जिसे देश के 86 प्रतिशत किसान संगठनों का समर्थन प्राप्त था- उसके साथ भी हुआ। अब ऐसी ही कुटिल मंशा वे ‘अग्निवीरों’ के लिए रखते हैं।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने ‘कृषि कानूनों की तरह अग्निपथ योजना को भी वापस लेना पड़ेगा’ जैसा ट्वीट किया है। यह घोषित सत्य है कि कृषि-सुधार कानूनों को मोदी सरकार- राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता पर आए गंभीर खतरे के कारण वापस लेने पर विवश हुई थी। ऐसे में राहुल और उन जैसे अन्य विरोधियों द्वारा ‘अग्निपथ योजना’ का हश्र कृषि कानून जैसा करने की उद्घोषणा न केवल खतरनाक है, अपितु यह उस जहरीले गठजोड़ को भी रेखांकित करता है, जिसमें स्वयंभू सेकुलरवादियों और वामपंथियों के साथ ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’, ‘अर्बन नक्सली’, जिहादी और ‘इंजीलवादी’ भी शामिल हैं। स्पष्ट है कि इस अघोषित गठबंधन का उद्देश्य किसानों-जवानों का उत्थान न होकर केवल सत्ता में वापसी करके मई 2014 से पहले की स्थिति को बहाल करना है।