अटूट जोड़ : पंचायत सीजन 2 (वेब सीरीज समीक्षा)
डॉ. अरुण सिंह
बहुत शानदार सिनेमा! पंचायत का दूसरा सीजन! आम तौर पर इस तरह का सकारात्मक सिनेमा आजकल दुर्लभ है। हिंसा, मांसलता और नकारात्मकता, प्राय: यही देखने को मिलता है। पंचायत सीजन 2 यथार्थ है भारत के ग्रामीण जीवन का। पंचायत के चरित्र एक परिवार ही हैं, जो एक दूसरे के सुख – दु:ख में साथ होते हैं। सचिव जी नौकरी के साथ अपनी एमबीए की तैयारी भी कर रहे हैं, पर उनका अब गांव में मन लगने लगा है। प्रधान जी और उनके परिवार के साथ उनका रिश्ता और गहरा होने लगता है। सचिव अभिषेक फुलेरा का निवासी नहीं है, पर अब फुलेरा उसमें रम गया है। वह ग्रामीण जन जीवन के यथार्थ को समझता है और उसे मानवीय ढंग से ही जीता है। ऑर्केस्ट्रा नृत्यांगना और शराबी जीप चालक की मदद हो, या बिनोद के घर शौचालय बनवाना, उसे संतुष्टि प्रदान करता है। वह भूषण जैसे दुष्ट प्रवृति के “बनराकस” से भी निपटना जानता है। वह प्रधान का चुनावी पक्षधर नहीं है, परंतु वह समझता है कि बृजभूषण दुबे ही गांव का उपयुक्त व्यक्ति है जो प्रधान होने के योग्य है। वह किसी के भी मध्य झगड़ा नहीं चाहता।
प्रधान के घर की आपसी नोक झोंक बहुत चुहल पैदा करती है। यही एक ग्रामीण परिवार की जीवंतता है। मंजू देवी प्रधान के रूप में अपने अधिकार समझती हैं, परंतु निर्णय अपने पति के सलाह पर ही लेती हैं। यह महिलावादियों को अखर सकता है, परंतु पारिवारिक जीवन का यथार्थ और परिपाटी यही है।
मनोरंजन और हास्य की बात करें तो इसमें तो यह सीजन भी पहले सीजन की तरह लबरेज है। हर चरित्र हास्य पैदा करता है और उसे जीता है। यहां कोई जल्दबाजी नहीं है। सीसीटीवी कैमरे पर बकरी ढूंढना भी एक काम है और चप्पल चोरी पर एफआईआर दर्ज करवाना भी। जीवन की निरुद्देश्यता भी सफल और शांतिपूर्ण जीवन का एक पहलू है। रिंकी और अभिषेक का अनकहा रोमांस भी कुछ रंग बिखेरता है, जो छाप छोड़ जाते हैं। गांव में मुख्य सड़क बनना एक महती आवश्यकता है, परंतु यह स्वाभिमान से ऊपर नहीं। बृजभूषण अपने मित्र अभिषेक के सम्मान हेतु एमएलए से भिड़ जाता है। यही पंचायत की एकजुटता है। मंदिर पर अखंड पाठ से पहले उप-प्रधान प्रहलाद के सैनिक पुत्र की वीरगति का यथार्थपूर्ण दृश्य बहुत ही मार्मिक है। यह दर्शकों को अंत में अश्रुपूरित छोड़ देता है।
पंचायत सीजन 2 में जितेंद्र कुमार, रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, फैसल मालिक, चंदन रॉय, संविका आदि सभी कलाकारों ने जीवंत अभिनय किया है। अमेजन प्राइम पर प्रदर्शित इस वेब सीरीज का निर्देशन दीपक कुमार मिश्रा ने किया है।
Sir I opine that this line from your analysis summaries the gist of the web series Panchayat.” जीवन की निरुद्देश्यता भी सफल और शांतिपूर्ण जीवन का एक पहलू है।” Moreover you have aptly analysed the sublimity of the people of rural India.