अतुलनीय है हिन्दी भाषा फिर भी उपेक्षा क्यों..?

अतुलनीय है हिन्दी भाषा फिर भी उपेक्षा क्यों..?

14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष

पवन सारस्वत मुकलावा

अतुलनीय है हिन्दी भाषा फिर भी उपेक्षा क्यों..?
भारत दुनिया में सबसे विविध संस्कृतियों वाला एंव अनेकता में एकता वाला देश है। अपने विविध धर्म, संस्कृति, भाषाओं और परंपराओं के साथ, भारत के लोग सद्भाव, एकता और सौहार्द के साथ रहते हैं। भारत में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में हिन्दी सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली और बोली एंव लिखी व पढ़ी जाने वाली भाषा है। वर्ष 1949 में हिन्दी को हमारे देश में सर्वोच्च दर्जा प्राप्त हुआ और तब से हिन्दी को हमारी राष्ट्रभाषा माना जाता है। दूसरी ओर भले ही उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया गया हो, लेकिन आज भी वह अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। इस संघर्ष पर विराम क्यों नहीं लग रहा ? इस यक्ष प्रश्न के उत्तर की तलाश अभी भी जारी है। इसके क्रम में हमें हिन्दी को लोकप्रिय बनाने के लिए हो रहे प्रयास पर गौर करना होगा किन्तु गौर करने पर निराशा ही हाथ लगती है। कारण स्पष्ट है, हिन्दी को लेकर किया जा रहा प्रयास हिन्दी दिवस के आसपास तक ही सिमटा नजर आता है, सुनने में और कहने में भी कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है, पर आज अगर कुछ पन्ने पलटने लगें, तो हिन्दी का वजूद खत्म होता सा दिखता है, ऐसा एहसास होना भी तो लाजिमी है , क्योंकि हिन्दी को छोड़ हम अंग्रेजी की दौड़ में जो शामिल हो रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी में बात करना प्रतिष्ठा समझती है और इसी फेहरिस्त में कहीं न कहीं हिन्दी पीछे छूटती जा रही है।
 भारत कई सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा, इस गुलामी का असर अभी तक देखने को मिल रहा है। इसका ज्यादातर असर हिन्दी भाषा पर ही पड़ा। वैसे तो हिन्दी दुनिया की तीसरी ऐसी भाषा है, जिसे सबसे ज्यादा बोला जाता है, इसके बावजूद भी हिन्दी को हीन भावना से देखा जाता है। दरअसल, हिन्दी एक समृद्ध भाषा है, फिर भी लोग हिन्दी लिखते और बोलते समय अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं, हिन्दी के कई शब्द चलन से मानो आज हट ही गए हैं, सच तो यह है कि ज़्यादातर भारतीय अंग्रेज़ी के मायाजाल में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। आज स्वाधीन भारत में काफ़ी कुछ सरकारी व लगभग पूरा ग़ैर सरकारी काम अंग्रेज़ी में ही होता है। ज़्यादातर नियम कानून या अन्य काम की बातें, पुस्तकें इत्यादि अंग्रेज़ी में ही होते हैं। उपकरणों या यंत्रों को प्रयोग करने की विधि अंग्रेज़ी में लिखी होती है, भले ही उसका प्रयोग किसी अंग्रेज़ी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को करना हो। फिर भी अंग्रेज़ी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह से हावी हो गई है। हिंदी के नाम पर छलावे या ढोंग के सिवा कुछ नहीं होता है।
माना कि आज के युग में अंग्रेज़ी का ज्ञान ज़रूरी है, इसका अर्थ ये नहीं है कि अन्य भाषाओं को ताक पर रख दिया जाए और ऐसा भी नहीं है कि अंग्रेज़ी के ज्ञान ने हमको दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया हो। सिवाय सूचना प्रौद्योगिकी के हम किसी और क्षेत्र में आगे नहीं हैं। आज अंग्रेजी एक प्रौढ़ हो चुकी भाषा है, जिसके पास आरंभ से ही राजसत्ताओं का संरक्षण ही नहीं रहा वरन ज्ञान-चिंतन, आविष्कारों तथा नई खोजों का मूल काम भी उसी भाषा में होता रहा। हिंदी एक किशोर भाषा की तरह लगती है, जिसके पास उसका मानो कोई ऐसा अतीत नहीं है, जो सत्ताओं के संरक्षण में फला-फूला हो, आज भी ज्ञान-अनुसंधान के काम प्रायः हिन्दी में नहीं हो रहे हैं, उच्च शिक्षा का लगभग अध्ययन और अध्यापन अंग्रेजी में हो रहा है। दरअसल हिन्दी की शक्ति यहां नहीं है, बाकी अंग्रेजी से उसकी तुलना इसलिए भी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि हिन्दी एक ऐसे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है, जो विश्व मानचित्र पर तीसरी सबसे बड़ी बोली जाने वाली भाषा है, क्या आप इस तथ्य पर गर्व नहीं कर सकते? दरअसल अंग्रेजी के विरुद्ध वातावरण बनाकर हमने अपने बहुत बड़े हिन्दी क्षेत्र को ‘अज्ञानी’ बना दिया तो दक्षिण के कुछ क्षेत्र में हिन्दी विरोधी रुझानों को भी बल दिया, यद्यपि अंग्रेजी मुठ्ठीभर सत्ताधीशों, नौकरशाहों और प्रभुत्ववर्ग की भाषा है ।
हिन्दी संस्कारों, अनुशासन, दया, क्षमा, सहनशीलता आदि कई गुणों से भरपूर एक दिव्य भाषा है जो न कि जीवन को रंगीन बनाती है बल्कि परंपरा एवं रीति-रिवाजों से भी भलिभाँति अवगत कराती है हिन्दी संपूर्ण भारत को एक परिवार की तरह जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है हिन्दी हमारे पूर्वजों की भाषा है, हमारे देश के महान साहित्यकारों ने हिन्दी को एक सर्वोच्च स्थान दिया था किंतु ईक्कीसवी सदी में लोगों का आकर्षण की अंग्रेजी भाषा बनती जा रही है, किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता उसकी ‘आत्मा’ होती है और भाषा उसकी ‘प्राणवायु’  हमारे देश में जन-जन को संपर्क सूत्र में बांधने वाली एक समृद्ध भाषा हिन्दी है। हम लोगों को पूरे वर्ष अपनी भाषा हिन्दी को सशक्त रूप से लागू करने का उत्तरदायित्व निभाना होगा , आज हिंदी में विज्ञान का भविष्य बहुत उज्ज्वल है जब तक हर विज्ञान प्रेमी हिन्दी में नहीं लिखेगा, तब तक प्रगति रुकी रहेगी।
राष्ट्रभाषा के रूप में खुद को साबित करने के लिए आज वस्तुतः हिन्दी को किसी सरकारी मुहर की जरूरत नहीं है। उसके सहज और स्वाभाविक प्रसार ने उसे देश की राष्ट्रभाषा बना दिया है ,वह अब सिर्फ संपर्क भाषा नहीं है, इन सबसे बढ़कर वह आज बाजार की भाषा है, लेकिन हर 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर होने वाले आयोजनों तक सीमित नही रहकर दृढ़ संकल्प लेना होगा।
षड्यंत्र के द्वारा हो सकता है कि थोड़ा-बहुत व्यतिक्रम आ जाए, परन्तु यह स्तिथि देर तक नहीं ठहरने वाली है और न चलने वाली है। इसलिए निकट भविष्य में हिन्दी भाषा की अस्मिता को नष्ट कर जिस अँग्रेजी भाषा को वरीयता दी गई है, उसे टूटना ही है। पुनः हिन्दी की प्रतिष्ठा होगी और हिन्दी की महत्ता बढ़ेगी। यह दैवी विधान है अतः हमें अभी से हिन्दी भाषा को बचाने, उसे समृद्ध करने एवं प्रचारित करने के किए कटिबद्ध हो जाना चाहिए।
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