अनुभूति
शुभम वैष्णव
जब कौवा कांव-कांव करता है तो उसे लगता है उसकी आवाज कोयल से भी मधुर है। उसे अपनी कर्कशता की अनुभूति ही नहीं होती। इसी तरह कुछ लोग बेहूदगी भरी बातें करने को ही अपना हुनर मान लेते हैं।
आज कई लोग जो अपने आपको कॉमेडियन कहते हैं, अश्लीलता के पर्याय बन चुके हैं। वे मनोरंजन के नाम पर वैदिक संस्कृति का मजाक बनाकर, अश्लील बातें करके अपने मानसिक स्तर का ही परिचय दे रहे हैं।
अभी लैला नामक एक वेब सीरीज बनाई गई है जिसका चरित्र चित्रण 2050 के भारत के रूप में किया गया है। इस वेब सीरीज में एक हिंदू को तानाशाह के रूप में दिखाया गया है। देश में डर फैलाने के लिए कृत्रिम सिनेमाई खेल रचाया जा रहा है। जबकि विदेशी लुटेरों के जुल्मों की सच्चाई छुपाई जा रही है और निरंतर उनके बचाव का प्रयास किया जा रहा है। सच दिखाने में तो कुछ लोगों के पसीने छूट जाते हैं, परंतु झूठा प्रोपेगेंडा चलाने में उनके हाथ तेजी से काम करने लगते हैं।
जब बंदर के हाथ उस्तरा लग जाता है तो बंदर भी खुद को उस्ताद समझने लग जाता है। कुछ लोग भारत और भारतीय संस्कृति को बदनाम करने के लिए झूठ और मिथ्या प्रोपेगेंडा को खाद पानी दे रहे हैं। उनके जेहन मे तेजाबी विचार भरे हुए हैं, जिससे वे स्वस्थ भारतीय समाज के वृक्ष को खोखला करना चाहते हैं। ऐसे लोगों की पहचान करना जरूरी है।