अभिमान
श्रुति
वो वीरभूमि का सेवक था
जो सेना का अभिमान बना
वो न्यौछावर कर प्राण स्वयं
प्रभु मोक्ष धाम की राह चला।
वो पलकन डगर बुहार रही
पति शव पर अश्रु बहाऊं ना
“तुम गर्व बने इन आंखों में
हिय की पीड़ा समझाऊं ना”।
है गर्व उन्हीं के जीवन पर
जो देश के नाम शहीद हुए
मांओं ने जाए वीर पुत्र
जो ध्वज लिपटे फिर स्वर्ग गए।