अभिवादन की प्राचीन परम्परा जोहार
डॉ. दर्शना जैन
अभिवादन की प्राचीन परम्परा जोहार
प्राचीन काल से ही अभिवादन या नमस्कार करने की परम्परा रही है। प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने इष्ट के नाम से नमस्कार या अभिवादन करता था। भगवान राम के भक्त सीता राम, राम-राम, भगवान कृष्ण के भक्त राधे-राधे, राधे-कृष्णा, भगवान शिव के भक्त हर हर महादेव तथा जिनेन्द्र भगवान के भक्त जय जिनेन्द्र आदि अभिवादनों से अपने अपने समुदाय का अभिवादन करते व स्वीकारते थे, परन्तु अन्य समुदाय के साथ इस प्रकार के अभिवादन करने में थोड़ी कठिनाई होती थी।
ऐसी परिस्थिति में बाजार में व्यापार करने वाले व्यापारियों, मजदूरों, ग्राहकों में, जिनके इष्ट अलग अलग थे- में अभिवादन का संवाद कैसे स्थापित किया जाए। इस समस्या के समाधान हेतु व्यापारी, मजदूरों और ग्राहकों ने मिलकर एक मिले-जुले अभिवादन का प्रचलन किया। जिसमें जैन सम्प्रदाय, वैष्णव सम्प्रदाय एवं रामभक्त तीनों का अभिवादन सम्मिलित हो सके। चूंकि यह परम्परा मुगलों एवं विदेशी आक्रान्ताओं के पूर्व से प्रचलित थी, जिस कारण भारत में प्रचलित दो प्रकार (श्रमण परम्परा और वैदिक परम्परा) की परम्पराओं का अभिवादन ही ग्रहण किया गया था। इन दोनों परम्पराओं के अनुयायी व्यापारी, मजदूर और ग्राहक वर्ग ने सम्मिलित अभिवादन हेतु नवीन अभिवादन जुहार का निर्माण किया। जिसे निम्न दोहे के द्वारा प्रचलित किया गया-
श्री जी ने ज दिया, हरि ने दिया हकार।
रामचन्द्र ने र दिया, जासे बनी जुहार।।
अर्थात् जैन मत के जिनेन्द्र भगवान का ज अक्षर, हरि को मानने वाले हरि भक्त का ह अक्षर तथा रामचन्द्र जी को मानने वाले भक्तों का र अक्षर, जिससे जुहार शब्द की निष्पत्ति हुई।कालान्तर में व्यापार क्षेत्र में इसकी इतनी प्रसिद्धी हुई कि इस जुहार अभिवादन को लोक व्यवहार में अभिवादन के रूप में स्वीकार कर लिया गया और सभी सम्प्रदाय के लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हुए इस अभिवादन का प्रयोग करने लगे।
वर्तमान में बुन्देलखण्ड (मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश) में जुहार शब्द का प्रयोग अभिवादन के रूप में किया जाता है तथा पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा में जोहार शब्द से अभिवादन किया जाता है, जो जुहार का परिष्कृत रूप है, वैसे भी इन क्षेत्रों में उकार का, तो कहीं कहीं ओकार भी प्रयोग किया जाता है, इस कारण जुहार के स्थान पर जोहार शब्द प्रचलित हुआ। प्राकृत भाषा में जोहार शब्द नमस्कारार्थ देशी शब्द है। उपर्युक्त प्रदेशों में प्राकृत भाषा का प्रयोग पूर्व से ही होता आ रहा है। इस कारण भी यह जुहार या जोहार देशी शब्द अभिवादन के रूप में प्रयुक्त हो गया।
इसी प्रकार के अन्य अभिवादन देश के अनेक जगह बोले जाते हैं। उन पर भी लेख आवश्यक है।
डॉ. दर्शना जैन ने जुहार अभिवादन को अच्छी तरह से समझाया है, वे धन्यवाद की पात्र हैI इसका प्रचार सोशियल मीडिया में भी होना चाहिये