अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में संस्कारों का ताना बाना भी होना चाहिए

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में संस्कारों का ताना बाना भी होना चाहिए

नरेंद्र सहगल

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में संस्कारों का ताना बाना भी होना चाहिए

भारतीय संस्कृति शुभत्व का संवर्धन करने वाली है। यहां ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’, ‘सुदिनम् सुदिनम् ऐसे भाव जन-जन के मानस में हैं। इन भावों की नींव पर आधारित वातावरण में भी कुछ स्वार्थी व लिप्सा ग्रस्त लोग विष के प्रवाह से बाज नहीं आते। ऐसी ही घिनौनी हरकत कतिपय वर्तमान अप्रासंगिक राजनीतिक दलों ने की है। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के जन्म दिवस के अवसर पर बेरोजगार दिवस मना कर अपनी क्षुद्र मानसिकता का परिचय दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सर्वत्र है लेकिन उसमें संस्कारों का तानाबाना होना भी आवश्यक है। यह बेरोजगार दिवस आगे पीछे किसी और दिन भी मनाया जा सकता था।

समूचा भारतवर्ष ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व आज जिनके कार्यों से प्रभावित होकर बधाई संदेश भेज रहा है। हम सब को भी विश्व का मंगल व कल्याण करने वाले ऐसे व्यक्ति का जन्मदिवस अभिनंदन करना चाहिए। जब हम वसुधैव कुटुम्बकम् तथा अतिथि देवो भव की महान परम्पराओं के संवाहक हैं तो हमारे यहां ऐसी किसी कुप्रथा को आरम्भ करने का औचित्य क्या?

यदि ऐसा ही है तो देश का विभाजन कर कश्मीर व लद्दाख क्षेत्र पाकिस्तान व चीन को सौंपने वाले और केवल इतना ही नहीं, लॉर्ड मैकाले की निरर्थक शिक्षा पद्धति को लागू करने वाले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन को एक कलंक दिवस के रूप में मनाया जाए?

लोकतंत्र की हत्या कर आपातकाल लगाने वालों का जन्मदिन लोकतंत्र हत्या दिवस के रूप में मनाया जाए?

भगवान श्री राम को काल्पनिक बताने वाली सोनिया गांधी के जन्मदिन को धिक्कार दिवस के रूप में मनाया जाये?

सुभाष चंद्र बोस को जापान का कुत्ता, महात्मा गांधी को साम्राज्यवादी एजेंट और कश्मीर को पाकिस्तान का अभिन्न हिस्सा मानने वाले तथा सन 1962 ई. में भारत-चीन युद्ध के समय भारत को ही हमलावर बताकर चीन के राष्ट्रपति माओ को माओ हमारा चेयरमैन बताने वाले नेताओं के जन्म दिवस को कम्युनिस्ट ग़द्दार दिवस के रूप में मनाया जाए?

वास्तविक रूप में प्रधानमंत्री के प्रभाव से छटपटाए लोगों ने बेरोजगार दिवस मना कर अपनी नीचता का परिचय दिया है। उनकी यही औकात भी थी।

वास्तविक धरातल पर बात करें तो बिगड़ी अर्थव्यवस्था वैश्विक महामारी कोरोना के कारण अस्त व्यस्त हुई है और यह अर्थव्यवस्था भारत में ही नहीं समूचे विश्व में भी दृष्टिगत है, यह किसी से छिपा नहीं है।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृत-संकल्पित माननीय मोदी जी ने जन्मदिवस पर स्वयं के लिए कुछ ना मांगकर अपनी प्रजा के आरोग्य व निरोग रहने की ही प्रार्थना की है। ऐसे प्रधानमंत्री सौभाग्य से ही प्राप्त होते हैं, हमारी धरा उन्हें पाकर धन्य है।

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