‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’… तेरे कितने रूप?

‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता'… तेरे कितने रूप?

बलबीर पुंज

‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता'… तेरे कितने रूप?‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’… तेरे कितने रूप?

क्या देश में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ और मजहबी आजादी के मापदंड सभी नागरिकों के लिए समान हैं? टुकड़े-टुकड़े गैंग द्वारा वर्ष 2016 में दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में “भारत तेरे टुकड़े होंगे…इंशा अल्लाह… इंशा अल्लाह…” जैसे नारे लगाए गए थे। तब कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, वामपंथी नेता सीताराम येचुरी, डी.राजा आदि ने देशविरोधी नारे लगाने वालों का यह कहकर समर्थन किया था कि छात्र तो संविधान प्रदत्त ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के अधिकार का उपयोग कर रहे थे। भारत में 3,00,000 से अधिक सक्रिय मस्जिदें हैं, जोकि अधिकांश घोषित इस्लामी देशों से अधिक हैं। न तो देश में कोई नई मस्जिद बनाने पर प्रतिबंध है और ना ही उसमें नमाज पढ़ने पर पाबंदी। फिर भी सार्वजनिक स्थानों पर सैंकड़ों-हजार की संख्या में मुसलमान जुमे की नमाज अदा करने हेतु एकत्र हो जाते हैं। चाहे इससे सड़कों पर सामान्य यातायात बाधित हो जाए, दोपहर के समय स्कूलों से घर लौट रहे छात्र फंस जाएं या कोई रोगी समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने से दम तोड़ दे- उसके बाद भी खुली सड़क, उद्यान या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर मोमिनों द्वारा नमाज पढ़ने की हठ का देश में एक वर्ग खुला समर्थन करता है। यदि इससे असुविधा होने पर गैर-मुस्लिम समाज- विशेषकर हिंदू अपने विरोध का प्रकटीकरण करता है, तो उसी वर्ग के लिए यह सब एकाएक ‘इस्लामोफोबिया’ और ‘देश की शांति और समरसता पर खतरा’ का पर्याय बन जाता है। बीते दिनों गुरुग्राम का घटनाक्रम- इसका प्रमाण है।

इस पृष्ठभूमि में महाराष्ट्र में राणा दंपत्ति के साथ क्या हुआ? अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और बडनेरा विधानसभा से उनके निर्दलीय विधायक पति रवि राणा ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पैतृक घर- मातोश्री के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने की बात कही थी, जो ठाकरे परिवार के दल- शिवसेना ने नहीं होने दिया। इस पर 23 अप्रैल को दिनभर राणा दंपत्ति के घर के बाहर हंगामा होता रहा और शाम होते-होते पुलिस ने राणा दंपत्ति को गिरफ्तार कर लिया। दोनों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 के अंतर्गत राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है और 6 मई तक न्यायिक हिरासत में रहेंगे।

आखिर राणा दंपत्ति का अपराध क्या था? उन्होंने मातोश्री, जोकि आधिकारिक मुख्यमंत्री आवास नहीं है- उसके सामने हनुमान चालीसा का पाठ करने आह्वान किया था, जिसमें पांच मिनट का समय भी नहीं लगता। परंतु ऐसा करना महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी सरकार के लिए देशद्रोह हो गया। यहां तक, इसके लिए राणा दंपत्ति को 20 फीट जमीन के नीचे गाड़ने की धमकी तक दी जाने लगी। स्मरण रहे कि उद्धव ठाकरे की सरकार भले ही तथाकथित और स्वघोषित सेकुलर दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के समर्थन से चल रही हो, किंतु उसे वर्ष 2019 में जनादेश भाजपा नीत राजग गठजोड़ के बल पर मिला था।

वास्तव में, यह घटनाक्रम देश के स्वयंभू सेकुलरवादियों की तीन कड़वी सच्चाइयों को प्रकट करता है। पहला- भारत में तथाकथित सेकुलर दलों की दृष्टि में सेकुलरवाद का अर्थ इतना विकृत है कि इनके अनुसार, सार्वजनिक स्थानों पर नमाज अदा करने के लिए हर सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए, किंतु हनुमान चालीसा का पाठ या कोई भी अन्य हिंदू कर्मकांड का सार्वजनिक प्रदर्शन सांप्रदायिक और देशद्रोह है। दूसरा- इन्हें देश के अस्तित्व और अस्मिता को लेकर किसी भी प्रकार के खिलवाड़ और भारत-हिंदू के लिए अमर्यादित शब्दों का उपयोग करने की स्वतंत्रता चाहिए, परंतु प्रतिकूल प्रतिक्रिया और राजाज्ञा के बिना हनुमान चालीसा का पाठ करना गंभीर अपराध की श्रेणी में आ जाता है। तीसरा- हिंदुओं को अपने घरों या फिर मन में हनुमान चालीसा का पाठ करने का सुझाव देने वाले सुबह-शाम प्रत्येक दिन मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से सभी को अजान सुनाने का समर्थन करते है। राणा दंपत्ति इसी विकृत नैरेटिव का शिकार हुए है।

महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार में इस प्रकार का कोई पहला मामला नहीं है। फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत का मुंबई स्थित कार्यालय तोड़े जाने के अतिरिक्त 11 सितंबर 2020 को पूर्व सैन्य अधिकारी मदन शर्मा को उनके घर में घुसकर के शिवसेना कार्यकर्ताओं ने इसलिए पीट दिया था, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर व्यंग्य करता कार्टून संदेश फॉरवर्ड किया था। यही नहीं, ठाकरे सरकार के निर्देश पर 4 नवंबर 2020 में प्रख्यात पत्रकार अर्नब गोस्वामी को उनके मुंबई स्थित आवास से किसी आतंकवादी की भांति दबोच लिया गया था। तब गोस्वामी की गिरफ्तारी को दो वर्ष पुराने इंटीरियर डिज़ाइनर अन्वय नाइक की आत्महत्या से जुड़ा होना बताया था। किंतु सच तो यह था कि गोस्वामी तब खुलकर महाराष्ट्र के पालघर में दो हिंदू संतों की भीड़ द्वारा हत्या और फिल्म अभिनेता सुशांत राजपूत आत्महत्या मामलों को लेकर आक्रमक रिपोर्टिंग कर रहे थे।

बात केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं। पश्चिम बंगाल और केरल में दशकों से राजनीतिक विरोधियों से शत्रुवत व्यवहार किया जा रहा है। इन दोनों प्रदेशों में सरकार के वैचारिक अधिष्ठान से असहमति रखने वालों- विशेषकर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की सरेआम निर्मम हत्या कर दी जाती है, जिसका आरोप अक्सर वामपंथियों और जिहादियों पर लगता है। स्वघोषित सेकुलर जमात के लिए अखलाक, जुनैद, पहलु खां, तबरेज आदि मुस्लिमों की निंदनीय हत्याएं घृणा प्रेरित अपराध है, जिससे सेकुलरवाद-लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। किंतु कुशीनगर निवासी बाबर अली के साथ कश्मीर के सज्जाद अहमद, आरिफ अहमद, वसीम अहमद बारी आदि की हत्याओं से देश का सेकुलरवाद जीवित रहता है। जानते है क्यों? क्योंकि यह सभी भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता थे।

बीते दिनों हनुमान जयंती और रामनवमी पर हिंदुओं द्वारा निकाली गई शोभायात्राओं पर कई स्थानों में पथराव हुआ। इसपर स्वयूं सेकुलरवादियों ने प्रश्न उठाया कि आखिर मुस्लिम बहुल क्षेत्र या मस्जिद के पास से हिंदू जुलूस निकालने की क्या आवश्यकता थी। इस मानसिकता की बाबासाहेब डॉ.बी.आर.अंबेडकर ने अपने लेखन कार्य- ‘पाकिस्तान या भारत का विभाजन’ में आलोचना करते हुए कहा था, “…सभी मुस्लिम देशों में किसी मस्जिद के सामने से गाजे-बाजे के साथ बिना आपत्ति के गुजर सकते हैं। यहां तक कि अफगानिस्तान में भी, जहां की व्यवस्था सेकुलर नहीं है- मस्जिदों के पास गाजे-बाजे पर आपत्ति नहीं होती है। किंतु भारत में मुसलमान इसपर आपत्ति करते हैं, केवल इसलिए, क्योंकि हिंदू इसे उचित मानते हैं।”

अक्सर, स्वघोषित सेकुलरवादी-उदारवादी और वामपंथियों-जिहादियों का गठजोड़- महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती और अन्य द्वारा दिए गए विवादित भाषणों पर आंदोलित रहते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से स्वामी नरसिंहानंद के तौर-तरीके और भाषा का समर्थन नहीं करता, क्योंकि मेरा मानना है कि इस प्रकार का आचरण हिंदुओं और इस देश की सनातन संस्कृति का अहित अधिक कर रहा है। अब जिस तरह यह कुनबा यति नरसिंहानंद आदि व्यक्तियों के वक्तव्यों को हिंदुओं की भावना कहकर प्रस्तुत कर रहा है, वह इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा पर या तो चुप है या फिर उसे उनका व्यक्तिगत विचार बताकर गौण कर रहे हैं। हाल ही में रजा ने कहा था, “जिस दिन मुसलमान सड़कों पर आएगा, तो किसी के कब्जे में नहीं आएगा। ये समझ लिया जाए।”

सच तो यह है कि जब तक ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ और ‘मजहबी आजादी’ पर दोहरे मापदंड अपनाए जाते रहेंगे, तब तक यति नरसिंहानंद सरस्वती आदि लोग में देश में प्रासंगिक बने रहेंगे।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *