अमर बलिदानी तिलका मांझी : अंग्रेजों ने उन्हें घोड़े से बाँध कर जमीन पर घसीटा था

अमर बलिदानी तिलका मांझी : अंग्रेजों ने उन्हें घोड़े से बाँध कर जमीन पर घसीटा था

11 फरवरी 1750 क्रांतिकारी तिलका मांझी जयंती

रमेश शर्मा

अमर बलिदानी तिलका मांझी : अंग्रेजों ने उन्हें घोड़े से बाँध कर जमीन पर घसीटा थाअमर बलिदानी तिलका मांझी : अंग्रेजों ने उन्हें घोड़े से बाँध कर जमीन पर घसीटा था

भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में वीरता और बलिदान की अद्भुत घटनायें दर्ज हैं। ऐसे ही एक बड़े संघर्ष का विवरण संथाल परगने में मिलता है। जिसके नायक वनवासी तिलका मांझी थे। उन्हें अंग्रेजों ने चार घोड़ों से बाँध कर जमीन पर घसीटा था, फिर भी वीर तिलका ने समर्पण नहीं किया था।

अमर बलिदानी तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार के सुल्तान गंज जिले में हुआ था। उनका संबंध संथाल क्षेत्र के वनवासियों से है। यह वह समय था, जब मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था, अंग्रेजों की शक्ति बढ़ रही थी। सल्तनतों के आंतरिक संघर्ष से खेती उजड़ रही थी और कुटीर उद्योग बंद रहे थे। अवसर का लाभ उठाकर अंग्रेज बल पूर्वक नागरिकों को पकड़ पकड़ कर बंधुआ मजदूर बना रहे थे। इसका विरोध शुरू हुआ, वीर तिलका मांझी ने युवकों का एक समूह बनाया और अंग्रेजों एवं उनके एजेन्टों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध आरंभ किया। संथाल परगना क्षेत्र में अंग्रेजों ने एक छावनी बना रखी थी, जिसका कमांडर क्लीवलैड नामक अंग्रेज था। वीर तिलका ने आक्रमण कर उस कैंप पर कब्जा कर लिया और क्लीवलैड मारा गया। वहां उपस्थित अंग्रेज सिपाही और उनके एजेंट या तो मारे गये या भाग गये।

वनवासियों का यह विद्रोह 1770 से 1784 तक चला। इसे भारत का आदि विद्रोह माना जाता है। यह संघर्ष कितना प्रबल था, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन चौदह वर्षों के संघर्ष में अंग्रेज और उनके सहयोगी तिलका का नाम सुनकर ही कांप जाते थे।

अंत में अंग्रेजों ने कोई विश्वासघाती खोज लिया और जनवरी 1785 की एक रात अंग्रेजी सेना ने सो रहे क्राँतिकारियों पर हमला बोल दिया। तिलका बंदी बना लिये गये। उन्हें चार घोड़ों के पीछे बाँध कर घसीटा गया, घसीटते हुए पूरे क्षेत्र में घुमाया गया। फिर घसीटते हुए ही भागलपुर ले जाये गये। उनका पूरा शरीर छिल गया था, रक्त रंजित हो गया था। चेतन अवचेतन अवस्था में वे भागलपुर तक गये। कहा जाता है, तब भी उनके प्राण बाकी थे, लेकिन उन्होंने समर्पण करने से इंकार कर दिया। फिर उन्हें पेड़ से लटका दिया गया।

इस घटना के बाद वनवासी युवकों में रोष बढ़ा और एक लंबे अर्से तक अंग्रेजों पर हमले चले। उन दिनों वनवासी क्षेत्र में एक नारा बहुत प्रसिद्ध हुआ था-
“हांसी हांसी चढ़वौ फाँसी”
तिलका मांझी पर बांग्लाभाषी लेखिका महाश्वेता देवी ने एक उपन्यास भी लिखा है ।

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